ग्वालियर: ownership rights to the occupier मध्यप्रदेश में सरकारी जमीन पर बरसों से जमे लोगों को, उस भूमि का मालिकाना हक देकर शिवराज सरकार मास्टर स्ट्रोक खेलने जा रही थी, लेकिन जनता ठीक से समझ नहीं पाई। हालत ये है कि सरकार तो मालिकना हक देना चाहती है, लेकिन अवैध कब्जा करके रहने वाले लोग प्रीमियम रशि देने को तैयार नहीं हैं। बल्कि ये सारी कागजी कार्रवाई मुफ्त में चाहते हैं। हालत ये है कि ग्वालियर में करीब 2 लाख से ज्यादा परिवार हैं जो इसकी जद में आते है, लेकिन कलेक्ट्रेट में आवेदन केवल 16 हजार लोगों के आए हैं।
ownership rights to the occupier शिवराज सरकार ने 31 दिसंबर 2014 के पहले बसे लोगों को बड़ी राहत दी थी। सरकार ऐसे लोगों को उस जमीन का मालकिना देने जा रही थी, जिसमें सरकार ने उस जमीन के कब्जाधारी व्यक्ति को बाजार रेट से प्रीमियम देने का प्रावधान रखा था। कब्जा वाली जमीन की कुल कीमत का प्रीमियम देना था।
इस हिसाब से ग्वालियर की कलेक्ट्रेट में जमीन का मलिकाना हक पाने वाले लोगों की लाइन लग गई। 2 लाख लोगों में से 16 हजार लोगों ने आवेदन भी जमा कर दिए, जिसमें 14 हजार से ज्यादा आवेदनों को स्वीकृत कर दिया गया। लेकिन हैरत की बात ये है कि किसी अवैध कब्जाधारी व्यक्ति ने, अपने मकान को वैध कराने के लिए प्रीमियम राशि जमा नहीं कराई है।
सरकार के इस फैसले के तहत 30 साल तक का पट्टा दिया जाएगा। सियासी गलियारों में कहा जा रहा है कि ये शिवराज सरकार का निकाय और 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले बड़ा मास्टर स्ट्रोक है। वहीं कांग्रेस का कहना है कि इससे पहले भी 2018 के चुनाव में शिवराज सरकार ने ऐसा किया था। कलेक्टर के मुताबिक जिले में लगभग दो लाख से ज्यादा ऐसे परिवार हैं, जो सरकारी जमीनों पर अवैध रह रहे हैं। इनमें से आवेदन सिर्फ 16 हजार लोगों ने किए है। लेकिन उनमें से भी किसी ने सरकार को उस मकान को वैध करने के लिए प्रीमियम राशि जमा नहीं की।