Gold City Ka Rahasya : कटनी। धर्म और प्रजा की रक्षा के लिए कटनी जिले की धरा पर एक से बढ़कर एक शख्स हुए हैं। जिन्होंने अपनी जान की बाजी लगाकर लोगों की रक्षा की है। उन्हीं में शामिल है कटनी जिले से महज 15 किलोमीटर दूर बिलहरी में रहने वाला राज कर्ण की। जिनकी वीरता, शौर्यता और पराक्रम को आज भी याद किया जा रहा है। उनकी निशानियां आज भी बिलहरी में मौजूद हैं।
Gold City Ka Rahasya : कभी सोने की चिडिय़ा कहलाने वाले भारत में एक से बढ़कर एक किस्से भरे पड़े हैं। कई बेहद चमत्कारिक हैं। इन पर सहसा विश्वास नहीं हो पाता, लेकिन प्रमाणों के आगे इनकी सच्चाई को झुठला पाना भी संभव नहीं लगता। इन्हीं में से एक है कटनी के समीप स्थित बिलहरी नगर। कभी राजा कर्ण की राजधानी रहे बिलहरी में बिखरे अवशेष ही इसकी सदियों पुरानी वैभव गाथा को सुनाते नजर आते हैं। कहा जाता है कि इस नगर के राजा कर्ण के पास एक दैवीय अक्षय पात्र था, जिससे वे हर रोज ढ़ाई मन (करीब 100 किलो) सोना निकालते थे और उसमें से सवा मन सोना दान भी कर देते थे।
बिलहरी में नौंवी एवं दसवीं शताब्दी के अवशेष विखरे पड़े हैं। खंडहर महल व देवस्थानों के साथ चंडी माता का वह मंदिर भी है। जिसमें राजा करण रोज पूजन किया करते थे। स्थानीय बुजुर्ग लोगो के अनुसार मां चंडी राजा कर्ण की उपासना से इतना प्रसंन्न थीं कि प्रतिदिन उन्हें ढाई मन सोना देतीं थी। राजा कर्ण सूर्योदय से पहले चंडी देवी के मंदिर जाते थे जहां विशाल कड़ाहे में तेेल उबलता था। जिसमें राजा कर्ण कूद जाते थे और उनका मांस भक्षण करने के बाद देवी उन पर अमृत छिड़क कर उन्हें जीवित करती थीं और ढाई मन सोना प्रदान करती थीं।
देवी से प्राप्त सोने में से करीब सवा मन सोना, राजा कर्ण सुबह गरीबों को दान में दिया करते थे। ये राजा कर्ण द्वापर युग के कर्ण से अलग थे। इनमें नाम की समानता तो थी है, ये भी महाभारत काल के दानवीर कर्ण की तरह ही दानी थे। बिलहरी निवासी बुजुर्ग बताते है कि राजा प्रतिदिन सवा मन सोना दान किया करते थे।