भोपाल/धार, दो जनवरी (भाषा) भोपाल में बंद पड़े यूनियन कार्बाइड कारखाने से बृहस्पतिवार को धार पहुंचे भोपाल गैस त्रासदी से जुड़े 337 टन जहरीले कचरे और उसके बाद हुए विरोध प्रदर्शनों के बीच मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने ‘संदेह करने वालों’ को संबोधित किया और कहा कि इस मुद्दे का राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिए।
यादव ने कहा कि कचरे में 60 प्रतिशत मिट्टी और 40 प्रतिशत नेफ्थोल शामिल है जिसका उपयोग कीटनाशक मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी) बनाने के लिए किया जाता है और यह ‘बिल्कुल भी हानिकारक नहीं है।’
उन्होंने कहा, ‘वैज्ञानिकों के अनुसार इसका जहर लगभग 25 साल तक रहता है और यह त्रासदी 40 साल पहले हुई थी।’
1984 में दो और तीन दिसंबर की दरम्यानी रात भोपाल में यूनियन कार्बाइड कीटनाशक कारखाने से अत्यधिक जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी) गैस लीक हुई थी, जिससे 5,479 लोगों की मौत हो गई थी और हज़ारों अन्य लोगों को गंभीर, दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ा। इसे दुनिया की सबसे खराब औद्योगिक आपदा के रूप में माना जाता है।
भोपाल गैस त्रासदी के चालीस साल बाद, बंद हो चुके यूनियन कार्बाइड कारखाने से 337 टन कचरे को धार जिले की एक इकाई में निपटान के लिए स्थानांतरित किया गया है। इसे बुधवार रात करीब नौ बजे 12 सीलबंद कंटेनर ट्रकों में ‘ग्रीन कॉरिडोर’ के माध्यम से भोपाल से 250 किमी दूर स्थित धार जिले के पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र तक ले जाया गया।
एक पुलिस अधिकारी ने दिन में बताया कि कड़ी सुरक्षा के बीच, वाहन बृहस्पतिवार सुबह करीब साढ़े चार बजे पीथमपुर के एक कारखाने में पहुंचे, जहां कचरे का निपटान किया जाएगा।
मुख्यमंत्री ने भोपाल में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि वैज्ञानिक अध्ययन किए गए हैं और अपशिष्ट को नष्ट करने की प्रक्रिया में एक सुरक्षित तकनीक का उपयोग किया जाएगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि इस मुद्दे पर राजनीति नहीं की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि सभी शंकाओं का उत्तर इस तथ्य से मिलता है कि हम (इतने वर्षों से) कचरे के साथ जी रहे हैं ।
मुख्यमंत्री ने विश्वास दिलाया, ‘कांग्रेस या निपटान प्रक्रिया का विरोध करने वालों को राजनीति में शामिल नहीं होना चाहिए। मैं यह सब उन लोगों को समझाने के लिए कह रहा हूं जो संदेह कर रहे हैं। इस कचरे के निपटान के बारे में आशंकाएं निराधार हैं। उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर पीथमपुर में वैज्ञानिक पद्धति से कचरे का निपटान किया जा रहा है।”
उन्होंने कहा कि अदालत के निर्देशों के साथ यह प्रक्रिया कई विभागों के सुझावों, परीक्षणों, व्यापक अध्ययनों के बाद शुरू हुई जो इससे पहले दुनिया में कहीं भी नहीं किए गए।
यादव ने कहा, ‘राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग और अनुसंधान संस्थान नागपुर, राष्ट्रीय भूभौतिकीय संस्थान हैदराबाद, भारतीय रासायनिक प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईसीटी) और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जैसे विभिन्न केंद्रीय संस्थानों ने ये अध्ययन किए।
2013 में केरल के कोच्चि स्थित संस्थान में जांच के लिए इस कचरे का 10 टन परिवहन किया गया और बाद में पीथमपुर में परीक्षण किया गया।
यादव ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने सभी रिपोर्टों की गहन जांच के बाद ही इस (निपटान) प्रक्रिया की अनुमति दी।
इस बीच, प्रदेश कांग्रेस प्रमुख जीतू पटवारी ने कहा कि विशेषज्ञों के अनुसार इस कचरे के निपटान से पीथमपुर और इंदौर के लोगों में कैंसर का खतरा बढ़ सकता है।
कांग्रेस नेता ने कहा, ‘हम इस मुद्दे का राजनीतिकरण नहीं करना चाहते। लेकिन जब तक विशेषज्ञ पीथमपुर में कचरा निपटान पर स्पष्ट राय नहीं बना लेते, तब तक इस प्रक्रिया को रोक दिया जाना चाहिए।’
उन्होंने यह भी कहा कि उच्च न्यायालय ने कचरे के निपटान के लिए निर्देश जारी किए हैं, लेकिन यह निर्दिष्ट नहीं किया कि इसे धार जिले के पीथमपुर में किया जाना चाहिए।
धार में कचरा पहुंचने के कुछ घंटों बाद वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने कहा कि विषाक्त कचरे का निपटान वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों के साथ विस्तृत चर्चा के बाद किया जाना चाहिए, क्योंकि इसका नागरिकों पर असर पड़ता है।
1989 से 2019 तक इंदौर से सांसद रही महाजन ने कहा, ‘भोपाल गैस त्रासदी को याद करके हमारा दिल दहल जाता है। यूनियन कार्बाइड कारखाने से निकलने वाले जहरीले कचरे का निपटान किया जाना चाहिए। हालांकि, वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों और स्थानीय निवासियों के साथ विस्तृत चर्चा के बाद ऐसा किया जाना चाहिए, क्योंकि यह लोगों के स्वास्थ्य का सवाल है।’’
इसबीच, पटवारी ने महाजन से उनके इंदौर निवास पर मुलाकात की और निपटान योजना को रोकने के लिए उनसे मदद मांगी।
भोपाल गैस त्रासदी राहत और पुनर्वास विभाग के निदेशक स्वतंत्र कुमार सिंह ने बुधवार को कहा, ‘‘यदि सब कुछ ठीक पाया जाता है, तो कचरे को तीन महीने के भीतर जला दिया जाएगा। अन्यथा, इसमें नौ महीने तक का समय लग सकता है।’’
उन्होंने बताया कि शुरुआत में कुछ कचरे को पीथमपुर स्थित निपटान इकाई में जलाया जाएगा और अवशेष (राख) की जांच की जाएगी ताकि पता लगाया जा सके कि कोई हानिकारक तत्व बचा है या नहीं।
उन्होंने बताया कि अपशिष्ट निपटान प्रक्रिया से निकलने वाला धुआं विशेष चार-परत फिल्टर से होकर गुजरेगा, ताकि आसपास की हवा प्रदूषित न हो। उनके अनुसार एक बार जब यह पुष्टि हो जाती है कि जहरीले तत्वों का कोई निशान नहीं बचा है, तो राख को दो-परत वाली झिल्ली से ढक दिया जाएगा और यह सुनिश्चित करने के लिए उसे जमीन में दबा दिया जाएगा कि यह किसी भी तरह से मिट्टी और पानी के संपर्क में न आए।
सिंह ने बताया कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों की देखरेख में विशेषज्ञों की एक टीम इस प्रक्रिया को अंजाम देगी।
इस बीच, लोगों के एक समूह ने निपटान योजना के खिलाफ पीथमपुर में विरोध प्रदर्शन किया और कहा कि इस मुद्दे पर शुक्रवार को ‘बंद’ मनाया जाएगा। रविवार को भी इसी तरह का विरोध प्रदर्शन हुआ।
भाषा दिमो
राजकुमार
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