भोपाल: देशभर में कोयला के संकट से हाहाकार मचा है। इसका सीधा असर पर बिजली उत्पादन पर दिखने लगा है। मध्यप्रदेश के पावर प्लांट्स में भी सिर्फ 1 से दो दिन का कोयला बचा है। ऐसे में बिजली संकट की आशंका गहराने लगी है। चूंकि मुद्दा सीधे-सीधे जनता से जुड़ा है, तो कांग्रेस ने भी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। वहीं उर्जा मंत्री दावा कर रहे हैं कि लोगों को घबराने की जरूरत नहीं है। लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बैठक लेकर जरूरी निर्देश दिया है। अब सवाल ये है कि ऐसे हालत क्यों बने? आखिर कब तक हम बिजली उत्पादन के लिए कोयले पर निर्भर रहेंगे?
Read More: कोरोना से मौत के बाद मुआवजे का दर्द, मदद के बदले सियासी शोर मचा रहे राजनीतिक दल
मध्यप्रदेश में बिजली संकट बीजेपी सरकार की मुश्किलें बढ़ा सकता है। पावर प्लांट्स में कोयले का स्टाक खत्म हो रहा है और आवक नहीं होने से बिजली उत्पादन भी प्रभावित हो रहा है। हालात ये है कि प्रदेश के कई पावर प्लॉन्ट्स में 1 से 2 दिन का कोयला बचा है। बात करें प्रदेश के सबसे बड़े सिंगाजी थर्मल पावर की तो यहां सिर्फ 2 दिन का ही कोयला बचा है। प्रदेश में बिजली की डिमांड 10 हजार मेगावाट तक पहुंच चुकी है और थर्मल, वॉटर, सोलर और विंड एनर्जी से 3900 मेगावाट ही बिजली का उत्पादन हो पा रहा है। बची हुई बिजली सेंट्रल पुल से ली जा रही है। एमपी पावर जनरेटिंग कंपनी के मुताबिक कंपनी के प्लांट्स को रोज 52 हजार टन कोयले की जरूरत पड़ती है। वहीं निजी थर्मल पावर के लिए 25 हजार टन और सेंट्रल थर्मल पावर प्लांट के लिए 111 हजार टन कोयले की जरूरत रोज पड़ती है। कोयले की कमी से प्रदेश में बिजली संकट की आशंका गहराने लगी है, जिसे लेकर कांग्रेस एक बार फिर सरकार को घेरने का मौका मिल गया है। वो इसे लालटेन युग की वापसी बता रही है।
कोयले की किल्लत और विपक्ष के आरोपों के बावजूद ऊर्जा विभाग ने दावा है कि प्रदेश में बिजली संकट के हालात नहीं है। बिजली सरप्लस है। हालांकि इससे निपटने के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने कोयले के लिए 8 लाख मीट्रिक टन का टेंडर जारी कर दिया है।
जाहिर है मध्यप्रदेश में बिजली की खपत सबसे ज़्यादा रबी के सीजन में होती है। ऊपर से त्योहारों का सीजन अलग है। अगले 2 महीने में बिजली की डिमांड 16 हजार मेगावाट तक पहुंच सकती है। फिलहाल मध्यप्रदेश सरकार 10 हजार मेगावाट बिजली की आपूर्ति कर पा रही है। मतलब साफ है कि अतिरिक्त 6 हजार मेगावाट बिजली की डिमांड पूरी करना सरकार के लिए मुश्किलों भरा दौर भी हो सकता है।