Damoh Lok Sabha Chunav 2024 : राहुल सिंह लोधी Vs तरवर सिंह लोधी..! कांग्रेस-बीजेपी ने नए चेहरों पर खेला दांव, क्या BJP के किले को भेद पाएगी Congress?

Damoh Lok Sabha Chunav 2024 : आज हम आपको मध्यप्रदेश की दमोह लोकसभा सीट के राजनीतिक समीकरण के बारे में बताएंगे।

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  • Publish Date - April 17, 2024 / 01:27 PM IST,
    Updated On - April 17, 2024 / 01:27 PM IST

Damoh Lok Sabha Chunav 2024  : दमोह। लोकसभा चुनाव के लिए पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को है। जिसके लिए आज से चुनावी प्रचार थम जाएगा। मध्यप्रदेश की 29 सीटों में से 6 सीटों पर वोटिंग होगी। तो वहीं अब दूसरे चरण के लिए भी तैयारियां शुरू हो गई है। दूसरे चरण में मध्यप्रदेश की टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा, होशंगाबाद, बैतूल सीटों पर वोटिंग होगी। बता दें कि दूसरे चरण का मतदान मध्यप्रदेश में 26 अप्रैल को है। आज हम आपको मध्यप्रदेश की दमोह लोकसभा सीट के राजनीतिक समीकरण के बारे में बताएंगे।

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Damoh Lok Sabha Chunav 2024  : बता दें कि दमोह लोकसभा सीट बीजेपी का गढ़ है। पूर्व केंद्रीय मंत्री और मध्यप्रदेश शासन में मंत्री प्रहलाद पटेल दमोह सीट से सांसद थे। इस बार बीजेपी और कांग्रेस ने नए चेहरों पर दांव लगाया है। बीजेपी ने जहां राहुल सिंह लोधी को मैदान में उतारा है तो वहीं कांग्रेस ने बंडा से पूर्व विधायक तरवर सिंह लोधी को मैदान में उतारा है। जानकारी के लिए बता दें कि दमोह में 8 विधानसभा सीटें आती हैं। जिसमें सागर की तीन देवरी, रहली और बंडा… दमोह की चारों विधानसभा दमोह, हटा, पथरिया और जबेरा… छतरपुर की एक बड़ा मलहरा दमोह लोकसभा के अंतर्गत आती है। इन सभी सीटों पर जातिगत समीकरण की बात करें तो इन क्षेत्रों में ‘लो​धी’ समाज की सबसे ज्यादा संख्या है। जिस वजह से बीजेपी और कांग्रेस ने ‘लोधी’ फेक्टर से उम्मीदवारों को उतारा है।

 

राहुल सिंह लोधी Vs तरवर सिंह लोधी

राहुल लोधी ने पहला विधानसभा चुनाव कांग्रेस की टिकट से 2019 विधानसभा चुनाव में दमोह सीट से लड़ा था जिसमें उन्होंने बीजेपी के दिग्गज नेता जयंत मलैया का हराकर किले को भेदने का काम किया था। 2019 में मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार भी बनी लेकिन कांग्रेस की सरकार 11 महीने तक ही टिक पाई और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने विधायकों के साथ कांग्रेस से इस्तीफा ​दे दिया और बीजेपी में शामिल हो गए। जिसके बाद कांग्रेस की सरकार गिर गई और बाद में फिर बीजेपी की सरकार बनी।

इसके बाद राहुल सिंह लोधी और उनके भाई जो बड़ा महलरा से कांग्रेस के विधायक थे दोनों ने बीजेपी का दामन थाम लिया। जिसके बाद दमोह में उपचुनाव हुआ और कांग्रेस से बीजेपी में आए राहुल लोधी को टिकट दिया गया। लेकिन इस सीट पर फिर से कांग्रेस ने अपना परचम लहराया और कांग्रेस के अजय टंडन से जीत हासिल की। 2023 विधानसभा चुनाव में राहुल लोधी को बीजेपी ने टिकट नहीं दिया जिसके बदले फिर से पूर्व मंत्री जयंत मलैया को टिकट दिया। 2023 विधानसभा चुनाव में जयंत मलैया ने जीत हासिल की लेकिन बीजेपी ने राहुल लोधी को विधानसभा का टिकट न देकर लोकसभा के मैदान में उतार दिया। वहीं कांग्रेस से बंडा के पूर्व विधायक तरवर सिंह लोधी को भी विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था जिसके बाद कांग्रेस ने दमोह से लोकसभा का टिकट दिया है।

 

लोकसभा चुनाव 2019 में राजनीतिक समीकरण

मध्य प्रदेश का दमोह लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र भारत की चुनावी राजनीति में अपने महत्वपूर्ण स्थान रखता है। 2019 के आम चुनावों में, यहा‍ँ बहुत मजेदार चुनावी मुकाबला देखने को मिला था। भाजपा के प्रत्याशी प्रहलाद पटेल ने पिछले चुनाव में 3,53,411 मतों के अंतर से जीत दर्ज़ किया। उन्हें 7,04,524 वोट मिले। प्रहलाद पटेल ने कांग्रेस के उम्मीदवार प्रताप सिंह लोधी को हराया जिन्हें 3,51,113 वोट मिले। दमोह की जनसांख्यिकी विविधताओं से भरी है और चुनावी नजरिए से यह मध्य प्रदेश के लोक सभा क्षेत्रों में रोचक और अहम है। इस निर्वाचन क्षेत्र में विगत 2019 के लोक सभा चुनाव में 65.82% मतदान हुआ था।

 

दमोह लोकसभा की खासियत

दमोह लोकसभा सीट कई मामलों में महत्वपूर्ण है। यहां पर मानव सभ्यता के विकास से पहले भी मानव रहा करते थे। पाषाण युग के यहां पर कई सबूत मिलते हैं। दमोह जिला बीजेपी की अहम सीटों में से एक माना जाता है जहां बीजेपी का पूरे क्षेत्र में वर्चस्व है। इतिहास के अनुसार यह क्षेत्र लंबे वक्त तक पाटलिपुत्र के समुद्रगुप्त, चंद्रगुप्त और स्कंद गुप्त के साम्राज्य में आता था। दमोह से करीब 35 किलोमीटर प्रसिद्ध जैन तीर्थ कुंडलपुर मौजूद है। यहां पर पहाड़ियों के बीच 65 मंदिर बने हुए हैं। यहां पर जैन धर्म के अनुयायियों की विशेष आस्था है।

दमोह में अब तक चुनी गई एक ही महिला सांसद

जब से दमोह लोकसभा सीट पर चुनाव हो रहे है तब से लेकर अब तक केवल एक ही महिला सांसद चुनी गई है। महिला जनप्रतिनिधियों को महत्व देने के मामले में दमोह की यह उपलब्धि है कि यहां से वर्ष 1962 में सहोद्रा राय सांसद चुनी गई थीं। उस दौर में महिलाओं का राजनीति में दखल वैसे भी कम हुआ करता था। हालांकि, इसके बाद भाजपा और कांग्रेस किसी भी दल ने महिला उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया।

 

 

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