छतरपुर: आपको शाहजहां की की वो कहानी याद होगी जिसने अपनी मरहूम मोहब्बत मुमताज की याद में ताजमहल का निर्माण कराया था। (Radha Krishna Mandir In Wife Memory) जाहिर है मोहब्बत तो हर कोई करता है लेकिन अपने साथी याद में हर कोई ताजमहल खड़ा नहीं कर सकता।
लेकिन आज हम एक ऐसे रिटायर्ड शिक्षक की बात कर रहे है जिसने अपनी दिवंगत धर्मपत्नी के लिए ताजमहल नहीं लेकिन एक मंदिर जरूर निर्मित कराया। यह मंदिर है श्री राधा और कृष्ण की। रिटायर्ड शिक्षक ने इस निशानी के लिए अपनी पूरी जिंदगी की जमा पूँजी लगा दी।
दरअसल छतरपुर में एक रिटायर्ड शासकीय शिक्षक ने अपनी मरहूम पत्नी की याद में स्वयं के लगभग 2 करोड रुपए खर्च करके राधा कृष्ण का मंदिर बनवा डाला। इसे प्रेम प्रतीक का मंदिर नाम दिया गया है। छतरपुर शहर और आसपास के इलाकों में इस मंदिर की खूब चर्चा है क्योंकि इस मंदिर को बनवाने के लिए देश के विभिन्न इलाकों से चुन-चुनकर पत्थर ले गए हैं। वहीं विभिन्न राज्यों से कारीगरों को बुलाया गया है जिन्होंने झूमर और कांच की कारीगरी को अंजाम दिया है और मूर्तियों का संबंध भी बहगवान कृष्ण के जन्मस्थान से है।
छतरपुर के शिक्षा विभाग में रहे डॉ बेनी प्रसाद चंद सूर्य की पत्नी का स्वर्गवास कई वर्ष पहले हो गया था। धार्मिक कार्यों से हमेशा जुड़े रहे डॉक्टर चंदसौरिया ने अपनी पत्नी के देहांत के बाद अपना रिटायरमेंट होते ही इस मंदिर के काम में अपना सब कुछ न्यौछावर करने की ठानी और खुद के पास बचत के रूप में रखें नकद डेढ़ करोड़ रुपए को इस मंदिर में लगा दिया। उन्होंने खुद के व्यापार से आने वाले गिट्टी व अन्य सामग्री को भी इसमें लगाया है इस मंदिर की अनुमानित लागत लगभग दो करोड रुपए बताई जा रही है।
हैरानी की बात ये है कि शिक्षक ने किसी से भी कोई सहयोग स्वीकार नहीं किया है। इस मंदिर में जो संगमरमर लगा है वह मकराना से लाया गया है और सबसे उच्च क्वालिटी का संगेमरमर है। मूर्तीयों की कास्तकारी जयपुर में हुई है। डॉक्टर चांसोरिया बताते हैं कि ताजमहल में लगे संगमरमर से भी अच्छी क्वालिटी का यह संगमरमर है जो ज्यादातर विदेश में एक्सपोर्ट कर दिया जाता है। इसके अलावा मंदिर की छत पर जो कांच की कारीगरी की गई है वह पुणे के कारीगरों ने विशेष तौर पर यहां काफी लंबा समय व्यतीत करके बनाई है। मंदिर के लकड़ी के पट उतनी ही भव्य हैं जितने बरसाने में राधा कृष्ण मंदिर के पट है और उनकी डिजाइन को भी वैसा ही रखा गया है। उनकी लकड़ी विशेष रूप से पूरे सागौन की लकड़ी है जो किसी दुसरे राज्य से मंगाई गई है। इसके अलावा राधा कृष्ण की बहुत ही मनमोहक संगमरमर की मूर्तियों को इस स्थान से मंगवाया गया है।
जहां श्री कृष्ण भगवान का जन्म हुआ था कुल मिलाकर छतरपुर के नरसिंहगढ़ मंदिर प्रांगण में इस भव्य मंदिर का निर्माण काफी लंबे समय में हुआ, लेकिन यह आस्था का प्रतीक बन चुका है। इसका नाम भी प्रेम प्रतीक का मंदिर है अपनी पत्नी की मूर्ति भी इन्होंने इस मंदिर में स्थापित करवाई है और रोजाना भी अपनी पत्नी से इसी बहाने रूबरू होते रहते हैं। इसके अलावा जब डॉक्टर बीपी चंदसौरिया से पूछा गया कि आप अपनी पत्नी के साथ बिताए हुए समय को कैसे याद करते हैं तो उन्होंने भरे गले से इसका जवाब दिया कि हमारे बीच कभी कोई भी बात नहीं हुआ। मैं आजकल पति-पत्नियों को देखता हूं कि वह जरा जरा सी बात पर झगड़ा करते हैं और कोर्ट तक पहुंच जाते हैं और कई मामलों में अलग-अलग होने या तलाक की नौबत आ जाती है, लेकिन मैं मंदिर इसलिए बनवाया है ताकि पति-पत्नी के निस्वार्थ प्रेम व निश्चल आस्था को दर्शाता यह मंदिर लोगों को यह प्रेरणा दे सके।