ग्वालियरः बीजेपी की आधार स्तंभ रहीं राजमाता विजयाराजे सिंधिया की जयंती इन दिनों ग्वालियर चंबल अंचल में चर्चा का विषय बनी हुई है। पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 12 अक्टूबर को राजमाता की जयंती को भव्य रूप से मनाया, तो अब 24 अक्टूबर को सिंधिया की बुआ यानि कि यशोधरा राजे सिंधिया हिंदू तिथि के हिसाब से राजमाता की जयंती को मनाने जा रही हैं। वहीं एक महीने में दो बार जयंती मनाने को लेकर कांग्रेस तंज कस रही है। .आखिर क्या है पूरा मामला?
12 अक्टूबर को ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपनी दादी राजमाता विजयाराजे सिंधिया की 102वीं जयंती भव्य रूप से मनाई थी। इसमें सिंधिया के समर्थक और शिवराज सरकार के 9 मंत्रियों ने उपस्थिति दर्ज कराई थी। लेकिन अब यशोधरा राजे सिंधिया 24 अक्टूबर को हिंदू तिथि के हिसाब से राजमाता की जयंती मनाने जा रही हैं। यानि सिंधिया परिवार राजमाता की जयंती को एक महीने में दो अलग-अलग तिथि में मना रहा है। साथ ही शाक्ति प्रदर्शन कर रहा है। जिसको लेकर राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं, तो वहीं कांग्रेस बुआ-भतीजे के इस कदम पर तंज कस रही है और कह रही है कि राजमाता की विरासत को संभालने के लिए बुआ और भतीजे की लड़ाई सड़क पर आ गई है।
24 अक्टूबर के कार्यक्रम में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को यशोधरा राजे सिंधिया ने आमंत्रण भेजा है। उन्होने स्वीकृति भी दे दी है। खास बात ये भी है कि… चंबल की बीजेपी में ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर को प्रतिद्वंदी के तौर पर देखा जाता रहा है। इतना ही नहीं राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया भी कार्यक्रम में मौजूद रहने वाली हैं। वहीं बीजेपी के सांसद विवेक शेजवलकर का कहना है कि यशोधरा राजे करवाचौथ के दिन राजमाता को पहले से याद करती आ रही हैं इसमें कुछ नया नहीं है।
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3 वैसे कुल मिलाकर देखा जाए तो राजमाता विजयाराजे सिंधिया का योगदान बीजेपी से लेकर जनसंघ की स्थापना में रहा है। जिसको लेकर समय-समय पर सिंधिया परिवार के लोग भुनाते रहे हैं। खुद पीएम मोदी भी मध्यप्रदेश में जब लोकसभा और विधानसभा चुनाव में प्रचार के लिए आए थे। उस समय हर चुनावी सभा में राजमाता का जिक्र करते थे। ऐसे में ज्योतिरादित्य सिंधिया को लगातार बीजेपी में हाइट मिल रही है और कहीं न कहीं यशोधरा राजे सिंधिया साइड लाइन हो रही हैं। ऐसे में कहीं न कहीं। यशोधरा राजे सिंधिया, खुद की अहमियत को बताने की कोशिश में लग गयी हैं। अब देखना होगा कि सिंधिया परिवार में विरासत को अपनाने की खींचतान कहां तक जाती है।
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