भोपाल।Face To Face Madhya Pradesh: 1984 में हुई भोपाल गैस त्रासदी, विश्व की सबसे बड़ी ओद्योगिक दुर्घटना है, वक्त गुजरता गया और यूनियन कार्बाइड का जहरीला वेस्ट 40 सालों तक भोपाल के सीने पर पड़ा सबसे खतरनाक दाग बना रहा। अब लंबी अदालती प्रक्रिया के बाद इसके निष्पादन के लिए, किसी स्थाई समाधान के लिए कदम बढ़ाए गए हैं, लेकिन गैस त्रासदी के जख्म इतने घातक रहे हैं कि इससे जुड़े डर ने राजधानी तो क्या पूरे प्रदेश को दशकों से जकड़ रखा है। वहीं डर आशंकाओं, सवालों के साथ कुछ लोगों के विरोध का कारण बना हुआ है। आरोप ये भी हैं कि कुछ लोग इसी डर की आड़ में सियासी स्कोप भी ढूंढ रहे हैं, कुल मिलाकर भोपाल गैस कांड के कचरे के स्थाई समाधान के अंतिम चैप्टर में क्यों है विरोध का व्यवधान , क्या ये सियासी है ?
नए साल 2025 की पहली जनवरी की रात को राजधानी भोपाल से 12 हाईली सिक्योर्ड कंटेनर्स में यूनियन कार्बाइड का जहरीला कचरा भोपाल से पीथमपुर, इंदौर भेजा जा चुका है। ये जहरीला वेस्ट, कचरा निष्पादन के लिए, भोपाल में यूनियन कार्बाइट संयत्र यानि गैस त्रासदी वाली जगह से 20 किलोमीटर दूर, इंदौर में रामकी कंपनी को भेजा गया जिसके लिए बनाए गए ‘ग्रीन कॉरिडोर’ में सुरक्षा के लिए 100 से ज्यादा पुलिसकर्मी तैनात किए गए, रामकी कंपनी के बाहर भी 200 से ज्यादा जवानों के साथ-साथ 50 निजी बाउंसर्स की तैनाती रही।
गैस त्रासदी के बाद राजधानी में पड़े यूनियन कार्बाइड के कचरे के भोपाल से इंदौर पहुंचने के साथ ही इसे लेकर शंका और विरोध के स्वर तीखे हो गए, जिसपर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने लोगों को भरोसा दिलाया कि सरकार को जनता की फिक्र है, साथ ही नसीहत भी दी कि ऐसे मुद्दे पर कुछ लोग सियासत ना करें। मुख्यमंत्री के आश्वासन और समझाइश के बावजूद पक्ष-विपक्ष के नेताओं ने चिंता जताते हुए, इस गंभीर मुद्दे पर सरकार से पूरी जवाबदेही के साथ कचरा निष्पादन की बात मांग की।
Face To Face Madhya Pradesh: वैसे, 1984 में हुए भोपाल गैस कांड का हर हिस्सा विरोध और भारी क्षति से भरा रहा। भोपालवासियों के लंबे संघर्ष के बाद, अगस्त 2004 से दिसंबर 2024 तक लंबी चली अदालती प्रक्रिया से होते हुए अब इस जहरीले कचरे के निष्पादन के लिए ये इंदौर के पीथमपुर तक पहुंचाया गया है , जहां आस-पास के पूरे इलाके के लोग इसके विरोध में उठ खड़े हुए हैं। सरकार का दावा है, सबकुछ ठीक होगा, भारोसा दिया गया है कि सरकार उनके साथ है, लेकिन सवाल ये है कि आश्वासन के सहारे लोगों इस भीषण त्रासदी से उपजे कचरे के निष्पादन का विरोध थम पाएगा , सवाल ये भी क्या इस विरोध की आंच पर कोई सियासी रोटियां सेंक रहा है ?