MP Politics: भोपाल। आदिवासियों के बाद अब दलित उत्पीड़न के लिए एमपी सुर्खियों में है। गुना में एक युवक को पेशाब पिला दी गई। सिर मुंडवाकर मुंह में कालिख पोत दी। हरदा में नाई ने एक दलित के बाल काटने से इनकार कर दिया और सागर में जमीन विवाद में लड़ते-लड़ते पिछले 9 महीन में एक दलित परिवार के 3 लोग मर गए। कांग्रेस ने इस मुद्दे को हाथों हाथ लिया। दिग्विजय सिंह सागर में पीड़ितों से मिलने पहुंच गए। राहुल ने फोन लगा लिया, जीतू पटवारी ने ढांढस बंधाया। इधर बीजेपी कह रही है कि दोषियों पर कार्रवाई होगी।
मध्यप्रदेश के तीन जिलों की इन तीनों घटनाओं पर फिलहाल सियासत गरम है। गुना में जहां दबंगों ने युवक को तालिबानी सजा दी। बदमाशों ने युवक को पहले पेशाब पिलाई फिर मुंडन कर मुंह पर कालिख पोत दी। हरदा में छुआछूत के मामले में नाई ने दलित होने पर बाल काटने से इनकार कर दिया। जबकि सागर में जमीन विवाद को लेकर न्याय के लिए लड़ते-लड़ते पिछले 9 महीने में चाचा-भतीजे के मर्डर के बाद भतीजी ने भी आत्महत्या कर ली।
कांग्रेस तीनों घटनाओं के जरिए बीजेपी सरकार की नीयत पर सवाल खड़े कर रही है। कांग्रेस ये दावा कर रही है कि बीजेपी के राज में दलित, आदिवासी सुरक्षित नहीं है। इन्हें टारगेट किया जा रहा है। वो भी दबंगों के जरिए। दबंग भी वो जिन्हें सत्ता का संरक्षण हासिल है। खासकर सागर की घटना को लेकर एमपी में बवाल मचा हुआ है। खुद राहुल गांधी ने सागर की घटना पर प्रतिक्रिया देकर देशभर में दलित आदिवासियों पर हो रहे जुल्म को लेकर बहस छेड़ दी है।
राहुल गांधी ने एक्स पर पोस्ट शेयर करते हुए लिखा है। “नरेन्द्र मोदी ने ‘कानून का राज’ खत्म कर दिया है। मध्यप्रदेश में इस दलित परिवार के साथ भाजपा नेताओं ने जो किया है वह सोच कर ही मन पीड़ा और क्रोध से भर गया।” यह शर्म की बात है कि भाजपा के राज में सरकार पीड़ित महिलाओं की जगह हमेशा उनके गुनहगारों के साथ खड़ी मिलती है।
MP Politics: हालांकि बीजेपी इस पूरे मामले में एक्शन लेने और कांग्रेस पर राजनीति करने का आरोप लगा रही है। राहुल गांधी के पहले प्रियंका गांधी ने भी सागर के मामले में प्रतिक्रिया देकर आखिरी चरण के चुनाव में माइलेज लेने की कोशिश की है। कांग्रेस की ये कोशिश है कि मध्यप्रदेश की इन घटनाओं के जरिए देशभर में बीजेपी के राज में बदहाल दलित आदिवासियों की पिक्चर पेश की जाए। ताकि इस वर्ग के वोटर्स का आशीर्वाद कांग्रेस को मिल सके। जबकि बीजेपी ये जताने की कोशिश कर रही है कि दलितों को बीजेपी के रहते डरने की जरूरत नहीं है। लेकिन सवाल ये है कि सरकार बदलने के बाद भी दलितों की स्थिति में बदलाव आखिर हो क्यों नहीं रहा।