इंदौर (मध्यप्रदेश), चार सितंबर (भाषा) इंदौर में होलकर शासकों का राज खत्म हुए बरसों बीत चुके हैं, लेकिन कलाकारों के एक परिवार ने होलकर शैली की पर्यावरण हितैषी गणेश प्रतिमाएं बनाने की परंपरा करीब 250 साल से कायम रखी है।
इस परिवार के मूर्तिकार श्याम खरगोनकर (71) ने बुधवार को ‘‘पीटीआई-भाषा’’ को बताया, ‘‘मेरे पुरखे मोरोपंत खरगोनकर इंदौर की तत्कालीन होलकर शासक देवी अहिल्याबाई के दरबार में कलाकार थे। एक बार देवी अहिल्याबाई ने उन्हें कहा कि वह ऐसी गणेश प्रतिमा बनाएं जिससे होलकर परंपराओं की झलक मिले।’’
उन्होंने बताया कि देवी अहिल्याबाई के आदेश पर उन्होंने ऐसी गणेश प्रतिमा बनाई जिसमें हिंदुओं के प्रथम पूज्य देवता को वरदान देने की मुद्रा में पूरे ठाठ-बाट से बैठा दिखाया गया था और गणेश उस पारम्परिक पगड़ी में नजर आए थे जो होलकर शासक पहना करते थे।
खरगोनकर ने कहा, ‘‘हमारा परिवार करीब 250 साल से इस खास शैली की गणेश प्रतिमाएं पीढ़ी-दर-पीढ़ी बनाता आ रहा है। अपने हाथों से भगवान गणेश की प्रतिमाएं बनाने में हमें जो आनंद मिलता है, उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता।’
उन्होंने बताया कि होलकर शैली की गणेश प्रतिमाएं बनाने का काम पूरे धार्मिक विधि-विधान से किया जाता है। मूर्तिकार ने बताया, ‘‘हमारे परिवार के लोग वसंत पंचमी के दिन शुभ मुहूर्त पर गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ कर मूर्तियां बनाना शुरू करते हैं। इन पर रंग-रोगन का काम भी शुभ मुहूर्त में ही किया जाता है।’’
खरगोनकर ने बताया कि होलकर शैली की गणेश प्रतिमाएं पीली मिट्टी और पर्यावरण हितैषी रंगों से बनाई जाती हैं और इनके निर्माण में मशीनों का इस्तेमाल नहीं किया जाता।
मूर्तिकार ने बताया कि होलकर परंपरा के मुताबिक हर साल उनके परिवार की बनाई मूर्ति ही शहर के राजबाड़ा (पूर्व होलकर शासकों का महल) में धूम-धाम से स्थापित की जाती है।
उन्होंने बताया कि स्थापना से पहले गणेश प्रतिमा को पालकी पर विराजमान किया जाता है और बैंड-बाजों की धुन पर राजबाड़ा ले जाया जाता है।
खरगोनकर ने बताया कि गणेशोत्सव के दौरान कई आम श्रद्धालु भी उनके परिवार की बनाई मूर्तियां स्थापित करते हैं।
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मनीषा
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