भोपाल। Face To Face Madhya Pradesh: शेक्सपीयर ने कहा था कि नाम में क्या रखा है और यहां सारा बखेड़ा नाम पर ही टिका हुआ है । नाम है तो उसका धर्म क्या है गांव-शहरों के नाम बदलने की नई जिद मौजूदा राजनीति में तेजी से मुखर हो रही है। इतिहास के दाग मिटाने के इस मुहिम के पीछे सियासी मकसद है या आहत अतीत ? मौलाना लिखने में पेन अटकता था। यह कहकर सूबे के मुखिया डॉ मोहन यादव ने उज्जैन जिले के तीन 3 पंचायतों के नाम बदलने के एलान किया और अब एक बार फिर उज्जैन सहित प्रदेश के अलग अलग इलाकों से नाम बदलने की मांग उठ खड़ी हुई है। उज्जैन महाकाल मंदिर के आसपास के क्षेत्रों के मुग़लकालीन नामों को बदलने की मांग कर दी है। मांग है कि बेगम बाग,अंडा गली और तोपखाना जैसे नाम बदले जाएं।
अब नाम बदलने की बात हुई है तो दूर तलक तो जाना ही है। खंडवा से बीजेपी सांसद ज्ञानेश्वर पाटिल ने भी मुख्यमंत्री के एलान का स्वागत करते हुए अपने संसदीय क्षेत्र में खैगांव का नाम बदलने की बात कह दी। उधर कांग्रेस ने नाम बदलने की कवायद को मूल मुद्दों से ध्यान भटकाने की राजनीति कहते हुए कहा यदि नाम बदलना ही है तो अनुसूचित जाति,जनजाति के नाम पर जाति सूचक गांव के नाम बदलें जिसपर बीजेपी ने करारा हमला किया और ये कहने से नहीं चूके कि कांग्रेसी तो गज़नवी की आराधना करना चाहते है।
Face To Face Madhya Pradesh: शेक्सपियर ने भले ही कहा हो नाम में क्या रखा है, लेकिन एमपी सरकार ऐसा नहीं मानती इसलिए मप्र में मुगलकालीन नाम बदलने की फेहरिस्त में लगातार नाम जुड़ते जा रहे है। तर्क दिया जा रहा है कि गुजरे जमाने में रखे मुगल कालीन नामों से गुलामी की मानसिकता से आजादी मिलेगी। बहरहाल देखना होगा कि नाम बदलने का ये अभियान और इससे उठा सियासी तूफान क्या रुख अख्तियार करता है।