भोपालः Analysis of fire in Satpura building मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के सतपुड़ा भवन में 14 घंटों तक लगी भीषण आग तो बुझ गई है, लेकिन आग पर सियासत की तपिश अब भी जारी है। कांग्रेस, राज्य सरकार पर भ्रष्टाचार के सबूत मिटाने के लिए जानबूझ कर आग लगाने का संगीन आरोप लगा रही है तो वहीं बीजेपी और सरकार बैक फुट पर है। पहले मंत्रालयों और सचिवालयों में बार-बार आग लगने की घटनाएं क्यों होती हैं और आखिर तमाम जांचों और लापरवाहियों के बावजूद जिम्मेदारों पर कार्रवाई क्यों नहीं होती?
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Analysis of fire in Satpura building मध्य प्रदेश की सबसे ताकतवर प्रशासनिक बिल्डिंग यानी भोपाल का सतपुड़ा भवन सियासत के केंद्र में है। वजह है सतपुड़ा की भीषण आग। सोमवार दोपहर करीब साढ़े 3 बजे सतपुड़ा की तीसरी मंजिल पर लगी आग देखते ही देखते पूरी बिल्डिंग में फैल गई। 14 घंटों तक 300 कर्मचारियों और दर्जनों वाहनों की कड़ी मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया जा सका। इस आग में तीसरे से छठवें फ्लोर तक सब खाक हो गए और तीन विभागों के कामकाज का ब्यौरा भी। मंत्रालय और सचिवालयों में अग्निकांड कोई नई बात नहीं है। इससे पहले भी 25 जून 2012 को इसी सतपुड़ा भवन में आग लगी थी। उस वक्त हेल्थ घोटाले की जांच चल रही थी। अगले साल 2013 में विधानसभा चुनाव थे। 4 सितंबर 2018 को भी सतपुड़ा और विंध्याचल भवन में आग लगी थी। तब सतपुड़ा की आग पर तत्काल काबू पा लिया गया था लेकिन विंध्याचल की आग विकराल हो गई थी और सैकड़ों जरूरी दस्तावेज जल गए। तब दो महीने बाद विधानसभा के चुनाव होने थे और इस बार भी सियासत के सवालों की तपिश पुरजोर है क्योंकि 4 महीने बाद MP में विधानसभा के चुनाव हैं।
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सतपुड़ा की आग ने कांग्रेस को बड़ा मुद्दा दे दिया है। पीसीसी चीफ कमलनाथ ने साजिश के आरोप लगाए हैं तो वहीं नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह आधा दर्जन विधायकों के साथ सतपुड़ा भवन पहुंच गए लेकिन सुरक्षाकर्मियों ने जब उन्हें गेट से ही लौटा दिया तो तमाम विधायक सतपुड़ा भवन के सामने ही धरने पर बैठ गए।
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आधी रात होते होते आग बुझ तो गई लेकिन सुलगी सियासत ने सरकार की पेशानी पर बल ला दिए। CM शिवराज सिंह ने जांच कमेटी के सदस्यों और मंत्रियों के साथ हाईलेवल मीटिंग की। आग के गंभीर पहलुओं पर जरूरी निर्देश दिए। गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कांग्रेस के आरोपों को बेबुनियाद बताया। साल 2013 और 2018 में लगी आग की भी हाई लेवल जांच की गई थी लेकिन जांच रिपोर्ट में किसी को भी दोषी नहीं पाया गया। अब चुनाव के ठीक पहले लगी इस आग पर भी कांग्रेस संदेह जता रही है। सियासत की ये मौजूदा तपिश.. चुनावी मौसम में आगे कितनी और गरमाहट पैदा करेगी ये भी एक सवाल है।