7251 Girls missing in 2020 Bhopal
भोपाल: बिलखाती नदियों सी…निडर निर्झरों सा…मस्त झोंकों सा..उन्मुक्त लहरों सी….और बेलौस हंसी की तरह होता है अल्हड़ अलबेला बचपन। लेकिन अब इस बिंदास बचपन को किसी की नजर लग गई है, जिन हाथों में किताबें होनी चाहिए जिनकी एक मुस्कान किसी रोते हुए इंसान को हंसा दे..ऐसे फूल से कोमल बच्चों पर वहशियाना जुल्म हो रहे हैं। अपराधियों के शिकार बन रहे हैं नन्हें फरिश्ते और ये सब हो रहा है मध्यप्रदेश में। ये हम नहीं कह रहे हैं बल्कि सरकारी आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि उम्र के जिस पड़ाव में मासूमों को घर के आंगन में खेलना कूदना था। उस उम्र में ये बच्चे बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों में काम कर रहे हैं, दूसरे प्रदेशों में जाकर भीख मांग रहे हैं। रईसों और रसूखदारों के घर पर चाकरी कर रहे हैं। वो भी तब, जब राज्य सरकार ये दावा करती है कि कहीं कुछ गड़बड़ नहीं है। लेकिन जमीन हकीकत बिल्कुल उलट है। नाबालिग लड़कियों के लिए तो हालात और भी खराब हैं। आखिर इसकी वजह क्या है? आखिर वो कौन लोग हैं जो इसके पीछे जिम्मेदार हैं?
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जी हां NCRB की रिपोर्ट की हकीकत जानने जब हमारी टीम राजधानी भोपाल से आदिवासी जिलों में पहुंची और कुछ गांवों में जाकर लोगों से बातचीत की, तो चौंकाने वाले खुलासे हुए। दरअसल आदिवासी जिलों में एक पूरा नैक्सस काम कर रहा है। बच्चों को बहला फुसलाकर दूसरे प्रदेश में ले जाता है। बालगृह से जैसी घटनाएं मीडिया में सामने आई, बच्चों के परिजनों को ये उम्मीद नहीं थी की अपने कलेजे के टुकड़े को जिस भरोसे के साथ विदा किया था उनको इस तरीके से रखा जाएगा। एक कमरे में 19 बच्चे एक साथ? कैसे रहे होंगे? कैसे लोगों की नजर से दूर उन बच्चों को एक कमरे में बंद करके रखा गया होगा? वो भी तब जब स्कूलों में एडमिशन बंद थे। लॉकडाउन का दौर था। हालांकि बच्चों के परिजनों ने इस घटना के बाद बड़ा सबक लिया है, लेकिन फिर भी कैमरे के सामने सच बोलने से कतरा रहे हैं। शायद उन्हें डर है कि उनके बोलने से वो सिस्टम बेनकाब हो जाएगा, जो दावे करता है कि प्रदेश में सब कुछ नॉर्मल है। लेकिन सच तो ये है कि उस सिस्टम ने अब तक आदिवासी इलाकों में न बेहतर स्कूल दे पाई है। न बेहतर अस्पताल, रोजगार और बुनियादी सुविधाओं से कोसों दूर है इलाका। इससका फायदा उठाते हैं वो अपराधी, जिनके निशाने पर हैं बिंदास बचपन।
आंकड़े बताते हैं कि मध्यप्रदेश में औसतन हर रोज 25 से 30 बच्चे गायब हो रहे हैं और इनमें सबसे ज्यादा संख्या लड़कियों की है, जिनकी संख्या तकरीबन 20 के आसपास है। यानी आदिवासी इलाकों से गायब होने वाली लड़कियों की तस्करी दूसरे राज्यों में हो रही है या फिर लड़कियों की खरीद फरोख्त हो रही है? ये बड़ा सवाल है? लेकिन गायब होने वाली ऐसी भी लड़कियां हैं जो सालों तक बरामद नहीं हुई है। NCRB के आंकड़े बताते हैं कि मध्यप्रदेश से पिछले साल 7251 लड़कियां गायब हुईं हैं। इन लड़कियों का सौदा कर दिया गया है या फिर खुद की मर्जी से घर छोड़ दिया है। फिलहाल ये जांच का मसला है, लेकिन मध्यप्रदेश की सेहत के लिए ये ठीक नहीं है। वो भी ऐसे इलाकों से ये आंकड़े सामने आ रहे हैं, जो लिंगानुपात के मामले में देशभर में अव्वल हैं। मंडला, बालाघाट, डिंडौरी, सिवनी, छिंदवाड़ा, अनुपपुर, शहडोल, झाबुआ, अलीराजपुर जैसे जिलों में लिंगानुपात लगभग बराबर का है। लेकिन सबसे ज्यादा लापता होने वाले नाबालिग इन्हीं जिलों के हैं। मंडला जिले के चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के मेंबर योगेश पाराशर बताते हैं कि आदिवासी जिलों के तकरीबन हर गांव में तस्कर सक्रिय हैं। योगेंद्र पाराशर ने ये इशारा भी किया कि नाबालिगों की तस्करी के जरिए मध्यप्रदेश में धर्मांतरण का सिंडिकेट भी अपने पैर पसार रहा है।
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जब छत्तीसगढ़ के रायपुर से नाबालिग 19 नाबालिग बच्चे बरामद हुए, ठीक उसी दिन तेलंगाना से 15 नाबालिग लड़कियों को भी बरामद किया गया था। मध्यप्रदेश से जब नाबालिग लड़कियां गायब हो रहीं थी, तब कोरोना महामारी के चलते प्रदेश में लॉकडाउन लगा था। चप्पे-चप्पे पर पुलिस का पहरा था। हर कोई संक्रमण के डर से अपने आप को सुरक्षित करने के लिए घरों में कैद था। हाईवे पर पुलिस का पहरा था, बावजूद इसके एक ही जिले के एक ही ब्लॉक की इतनी लड़कियों की तस्करी दूसरे राज्यों में कैसे मुमकिन हो पायी। मंडला जिले के चाइल्ड वेलफेयर कमेटी को केरल से एक और हैरान करने वाली खबर मिली। दरअसल केरल की कोर्ट ने मंडला जिले की चाइल्ड वेलफेयर कमेटी को पत्र लिखकर ये खबर दी की मंडला जिले की 3 नाबालिग लड़कियां जो लापता थी उनके साथ केरल में दुष्कर्म हुआ है। चाइल्ड वेलफेयर कमेटी की अध्यक्ष प्रीति पटेल ने आईबीसी 24 से बातचीत के दौरान ये सवाल भी उठाए कि लॉकडाउन के वक्त लड़कियों की तस्करी होना सिस्टम की बड़ी लापरवाही है।
7251 Girls missing in 2020 Bhopal : तो क्या वाकई मध्यप्रदेश नाबालिग बच्चों के लिए अब सुरक्षित नहीं रहा? NCRB की रिपोर्ट भी इस ओर इशारा करती है। साल 2020 को लेकर जारी रिपोर्ट क्राइम इन इंडिया-2020 के मुताबिक प्रदेश में बच्चों के साथ होने वाले अपराध के मामलों में बड़े पैमाने पर इजाफा हुआ है जिसके चलते मध्यप्रदेश देश में बच्चों के लिए सबसे असुरक्षित राज्य बन गया है। वहीं आदिवासी इलाकों की बात करें तो यहां भी प्रदेश की जनता को शर्मिंदगी उठानी पड़ रही है।
साल – केस
2019 – 1922
2020 – 2401
NCRB की रिपोर्ट को लेकर मध्यप्रदेश में सियासत भी जमकर हो रही है। विपक्षी दल कांग्रेस को भी सरकार को घेरने का एक बड़ा मौका हाथ लगा है। खासकर आदिवासी वर्ग के कांग्रेस विधायकों को, जो इस मुद्दे को हक मंच पर उठाकर सरकार को लगातार घेर रहे हैं। पूर्व की कांग्रेस सरकार में जनजातीय विभाग के मंत्री रहे कांग्रेस विधायक ओमकार सिंह मरकाम ने आईबीसी 24 से बातचीत में कहा कि NCRB की रिपोर्ट ने बीजेपी सरकार के सुशासन की पोल खोल दी है। न सिर्फ बच्चे लापता हो रहे हैं बल्कि मध्यप्रदेश में धर्मांतरण भी तेजी से बढ़ा है। कुल मिलाकर आरोप प्रत्यारोप और दावों के बीच मध्यप्रदेश के आदिवासी इलाकों में आज भी तस्वीर जस की तस बनी हुई है। न पीने को पानी है, न स्कूलों का कोई खास नेटवर्क। आज भी बच्चों की पहुंच से स्कूल कोसों दूर हैं। ऐसा नहीं है कि आदिवासी इलाकों के बच्चे पढ़ने में दिलचस्पी नहीं रखते। बच्चे भी चाहते हैं कि वो शहर के बच्चों के मुकाबले खड़े हो सकें। जनप्रतिनिधियों ने अगर थोड़ा भी ध्यान दिया होता तो कम से कम आदिवासी इलाके के हर गांव की तस्वीर कुछ अलग ही होती बच्चों के कंधे में स्कूल बैग होती और चेहरे पर मुस्कान। प्रदेश के सभी लापता बच्चे अपने आंगन में खेल रहे होते और NCRB की रिपोर्ट में मध्यप्रदेश में राम राज नजर आता।