भोपाल । शांति का टापू कहे जाने वाले मध्य प्रदेश की फिज़ा इन दिनों थोड़ी अशांत है। प्रदेश में पिछले 6 महीने में क़रीब 479 दंगे दर्ज किए गए हैं। जिसमें 30 फीसदी से अधिक मामले सांप्रदायिक हिंसा के हैं। कांग्रेस इसमें एक नया एंगल लेकर आई है, उनका कहना है कि बीजेपी दंगों के लिए उन विधानसभाओं को टारगेट कर रही है। जहां कांग्रेस के विधायक हैं। इस बयान में कितना दम है। क्या ये दंगे सच में प्रयोजित है, क्या कांग्रेस PFI के साथ मिली हुई है. इन्ही सवालों के जवाब जानने के लिए आज 6 माह, सैकड़ों दंगे।
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मध्यप्रदेश कांग्रेस के मीडिया प्रभारी के इस दावे में कितनी सच्चाई है। ये अंदाजा लगाना फिलहाल मुश्किल है। लेकिन ये हकीकत है कि मध्यप्रदेश में पिछले दिनों जितनी भी सांप्रदायिक घटनाएं हुईं हैं. वो कांग्रेस विधायकों के ही क्षेत्र में हुई हैं। कांग्रेस के दावे पर यकीन करने से पहले हाल की तारीखों पर गौर करना भी ज़रुरी है। 10 अप्रैल को खरगोन के जिस इलाके में दंगे भड़के वहां से रवि जोशी कांग्रेस के विधायक हैं।
बड़वानी के सेंधवा में भी 10 अप्रैल को रामनवमी के दिन कांग्रेस विधायक ग्यारसीलाल रावत के विधानसभा क्षेत्र में सांप्रदायिक हिंसा हुई। 3 मई को बुरहानपुर में कांग्रेस के समर्थित निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा के विधानसभा क्षेत्र में हिंसा भड़काने की कोशिश हुई लेकिन पुलिस ने इन कोशिशों को नाकाम कर दिया। 3 मई को ही सिवनी में गोकशी के आरोप में हिंसा हुई और 2 आदिवासियों का सरेबाज़ार कत्ल कर दिया गया। इत्तेफाकन ये भी कांग्रेस विधायक का ही क्षेत्र था।18 मई को कांग्रेस विधायक प्रियव्रत सिंह के विधानसत्रा क्षेत्र के जीरापुर में मस्जिद के बाहर दलित दूल्हे की बारात पर पत्थरबाजी हुई। हिंसा को रोकने के लिए पुलिस बल लगाना पड़ा (ग्राफिक्स आउट) जाहिर है ये तारीखें बड़े सवाल खड़े कर रही हैं।
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मध्यप्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। लेकिन कांग्रेस को डर है कि बीजेपी चुनावों के पहले मजहबी नफरत का माहौल बना रही है। अगर बीजेपी कामयाब होती है तो कांग्रेस को बड़ा नुकसान होगा। लिहाजा कांग्रेस इन्हीं तारीखों के हवाले से बीजेपी को एक्सपोज़ करने की कोशिश कर रही है। ये दावा भी कर रही है कि बीजेपी साजिशन कांग्रेस विधायकों के क्षेत्र में मजहबी नफरत का माहौल बना रही है।
हालांकि बीजेपी कांग्रेस के इन दावो से इत्तेफाक नहीं रखती। मध्यप्रदेश में पिछले 6 महीनों के दौरान सांप्रदायिक घटनाओं में तेज़ी से इजाफा हुआ है। कई जगह पुलिसिंग भी फेल हुई है। दंगाइयों के घर मामा का बुलडोजर चल रहा है। लेकिन इतने गंभीर मसले पर दोनों ही दलों की डर्टी पॉलिटिक्स आम आदमी को हजम नहीं हो रही है. तो दूसरी ओर चुनावों के ठीक पहले कांग्रेस के आरोपों ने बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं।