भोपाल, दो दिसंबर (भाषा) दुनिया की सबसे भीषण औद्योगिक त्रासदी ‘भोपाल गैस त्रासदी’ की घटना के 40 साल बाद अब बंद हो चुकी यूनियन कार्बाइड कंपनी के कारखाने के अंदर 337 मीट्रिक टन खतरनाक अपशिष्ट अभी पड़ा हुआ है, जबकि केंद्र सरकार इसके निपटान के लिए मध्यप्रदेश सरकार को पहले ही 126 करोड़ रुपये दे चुकी है। सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सोमवार को यह जानकारी दी।
वर्ष 1984 में दो-तीन दिसंबर की दरम्यानी रात को यूनियन कार्बाइड के कारखाने से अत्यधिक जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी) लीक हुई थी, जिससे 5,479 लोगों की मौत हो गई थी और पांच लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए थे।
भोपाल गैस पीड़ित संघर्ष सहयोग समिति के सह-संयोजक और त्रासदी से जुड़ी एक रिट याचिका में हस्तक्षेपकर्ता एनडी जयप्रकाश ने कहा कि संयंत्र के अंदर और आसपास 1.1 मिलियन टन दूषित मिट्टी पड़ी हुई है, जिसके कारण जल स्रोत भी प्रभावित हुए हैं।
उन्होंने कहा कि इस मामले की सुनवाई मंगलवार को होगी। इस साल 11 सितंबर को मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने 2004 में दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए कारखाने से खतरनाक कचरे को हटाने का काम शुरू करने में हो रही देरी पर नाराजगी जताई थी।
न्यायमूर्ति विवेक रूसिया और न्यायमूर्ति अवनींद्र कुमार सिंह की खंडपीठ ने मध्यप्रदेश प्रदूषण बोर्ड के अध्यक्ष को मामले को व्यक्तिगत रूप से देखने को कहा था।
पीठ ने कहा था कि केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकार को इस उद्देश्य के लिए मार्च में 126 करोड़ रुपये दिए जाने के बावजूद काम शुरू नहीं हुआ है। रिट याचिका पर 24 अक्टूबर को होने वाली सुनवाई दिवाली की छुट्टियों के कारण नहीं हो सकी।
‘भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन एंड एक्शन’ की रचना ढींगरा ने दावा किया, ‘‘2004 में उच्च न्यायालय में रिट याचिका दायर किए जाने के एक साल बाद यानी 2005 में केंद्र और मध्यप्रदेश सरकार ने बंद पड़े यूनियन कार्बाइड के कारखाने की सतह पर पड़े करीब 345 मीट्रिक टन कचरे को एकत्र किया। लेकिन यह वहां पड़े कुल खतरनाक कचरे के 0.05 प्रतिशत से भी कम है।’’
ढींगरा ने कहा कि 2012 में उच्चतम न्यायालय ने माना था कि जहरीले कचरे ने कारखाने के आसपास बसे 22 समुदायों के भूजल को दूषित कर दिया है और उसने मध्य प्रदेश सरकार को आसपास के लोगों को पाइप से साफ पेयजल उपलब्ध कराने का आदेश दिया था।
उन्होंने कहा, ‘‘रिट याचिका दायर किए जाने के दस साल बाद यानी अगस्त 2015 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने इंदौर के पास पीथमपुर में एक केंद्र में परीक्षण के तौर पर करीब 10 टन कचरे को जला दिया। उसने बाकी कचरे के लिए भी यही सिफारिश की।’’
ढींगरा ने बताया कि मध्यप्रदेश सरकार ने 345 टन कचरे को जलाने के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दायर की थी, जिसमें दावा किया गया था कि इससे इंदौर के पीने के पानी का स्रोत यशवंत सागर बांध प्रदूषित होगा।
उस समय, जर्मन कंपनी ‘डॉयचे गेसेलशाफ्ट फर इंटरनेशनल जुसामेनारबीट’ (जीआईजेड) ने हैम्बर्ग में 345 टन यूनियन कार्बाइड कचरे को 54 करोड़ रुपये की लागत से वहां ले जाकर जलाने की पेशकश की थी, लेकिन बाद में उस देश में जनता के विरोध के बाद फर्म ने मध्यप्रदेश सरकार को दिया गया अपना प्रस्ताव वापस ले लिया।
ढींगरा ने दावा किया कि पिछले साल जून में मध्य प्रदेश सरकार ने घोषणा की कि वह पीथमपुर में 126 करोड़ रुपये की लागत से कचरे को जलाएगी।
जयप्रकाश ने कहा कि 126 करोड़ रुपये की इस योजना में कुछ ‘गड़बड़’ लग रहा है, क्योंकि जर्मन कंपनी द्वारा प्रस्तावित योजना 54 करोड़ रुपये की थी।
जयप्रकाश ने कहा कि यह करदाताओं के पैसे का दुरुपयोग है, क्योंकि इस योजना के अनुसार प्रत्येक टन को जलाने की लागत 40 हजार से 50 हजार रुपये के बीच है।
उन्होंने कहा कि वे इस मामले में उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाएंगे।
ढींगरा ने कहा, ‘‘जमीन पर पड़े कचरे को एकत्र किया जा सकता है और बंद-लूप वाले भस्मक में सुरक्षित रूप से निपटाया जा सकता है, जो डाइऑक्सिन और फ्यूरान के स्तर की निगरानी कर सकता है, जो मनुष्य के लिए ज्ञात सबसे जहरीले रसायन हैं। या इसे स्टेनलेस कंटेनरों में संग्रहीत किया जा सकता है और डॉव केमिकल्स को इसे अमेरिका ले जाने के लिए कहा जाना चाहिए।’’
भाषा दिमो संतोष
संतोष