Second phase voting lok sabha election 2024 bjp nda india alliance analysis: नईदिल्ली। देश में चुनावी आचार संहिता के कारण कोई सर्वे या ओपिनियन पोल आपके सामने नहीं रख सकते, लेकिन पिछले चुनावों के वोटिंग पैटर्न को यदि डीकोड किया जाए तो काफी कुछ समझा जा सकता है।
Voting Analysis: लोकसभा चुनाव में दूसरे चरण की वोटिंग भी संपन्न हो गई है। लेकिन पहले चरण की तरह एक बार फिर जनता मतदान के मामले में कुछ उदासीन दिखी। क्योंकि वोटिंग प्रतिशत उम्मीद के मुताबिक नहीं बढ़ा। कई राज्यों में पिछले लोकसभा चुनाव के रिकॉर्ड भी टूट गए हैं, यूपी ,बिहार, महाराष्ट्र, राजस्थान के ज्यादातर इलाकों में 2019 की तुलना में कम मतदान हुआ है।
ऐसे में इस समय सबके मन में सवाल है कि आखिर दूसरे चरण के बाद आगे कौन चल रहा है? बीजेपी के नेतृत्व वाला एनडीए या इंडिया वाले? पिछले दोनों चरणों में चुनावों के वोटिंग पैटर्न को डीकोड करके अंदाजा लग सकता है कि कम वोटिंग का फायदा और नुकसान किसे ज्यादा रहने वाला है।
सर्वप्रथम ये जान लेते हैं कि 2019 की तुलना में कहां कितनी वोटिंग हुई है-ताजा आंकड़े साफ बताते हैं कि सिर्फ कर्नाटक में ही पिछली बार की तुलना में ज्यादा वोटिंग हुई है, बाकी सभी राज्यों में गिरावट देखने को मिली है। कहीं ये गिरावट 10 फीसदी से भी ज्यादा की है। अब जानकार मानते हैं कि तीन कारणों की वजह से मतदान कम होता है, या तो हीटवेव की स्थिति ने लोगों को बूथ से दूर किया, या फिर इस बार चुनाव को लेकर उत्साह नहीं है। कई बार सरकार के प्रति उदासीनता भी कम वोटिंग की वजह बनती है।
समझने वाली बात ये है कि यूपी की कई सीटों पर कम मतदान जरूर हुआ है, लेकिन ये कह देना कि ये केंद्र सरकार के खिलाफ पड़ा है, ऐसा नहीं कहा जा सकता। एक्सपर्ट्स के मुताबिक इस समय कई ऐसी सीटें मौजूद हैं जहां पर प्रत्याशी ही विपक्ष द्वारा काफी कमजोर उतारे गए हैं। उस वजह से वहां बीजेपी की जीत तय मानी जा रही है। ऐसे में अगर वहां पर कम वोटिंग भी हुई है तो जीत का मार्जिन छोटा हो सकता है, उससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ने वाला। कम वोटिंग का सबसे ज्यादा असर उन सीटों पर पड़ता है जहां पर मुकाबला आमने-सामने का होता हो।
दूसरे चरण में भी कुछ ऐसी सीटें हैं जहां पर दोनों बीजेपी और इंडिया गठबंधन के मजबूत उम्मीदवार मैदान में खड़े हैं। ऐसी सीटों पर कम मतदान की वजह से हार-जीत का अंतर काफी कम हो जाता है। यही वो समीकरण है जो दोनों बीजेपी और इंडिया गठबंधन को चिंता में डाल रहा है। महाराष्ट्र की कम वोटिंग भी कन्फ्यूज करने वाली साबित हुई है। अगर किसी एक के पक्ष में सहानुभति होती, अगर उद्धव या शरद पवार को अपार समर्थन मिलता, उस स्थिति में भी वोट प्रतिशत बढ़ना लाजिमी था। लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं है और दूसरी सबसे कम वोटिंग महाराष्ट्र में ही हुई है।
अब कई बार जब सरकार नहीं बदलनी होती, तब भी कम मतदान होता है क्योंकि जनता आश्वस्त होती है कि उनका नेता जीत ही जाएगा। अब देश में इस समय जैसा माहौल है, ज्यादातर लोग बीजेपी से ज्यादा नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट देने की बात कर रहे हैं। ऐसे में कम वोटिंग को भी बीजेपी अपने पक्ष में बताने की कोशिश कर रही है।
आंकड़ों की बात करें तेा पिछले 17 लोकसभा चुनावों में पांच बार मतदान कम हुआ है, उस स्थिति में 4 बार सरकारें बदल चुकी हैं। वहीं 7 बार जब मतदान बढ़ा है, तब सरकार बदली हैं। ऐसे में ये वोटिंग पैटर्न तो दोनों इंडिया और एनडीए को थोड़ी उम्मीद और थोड़ा तनाव देने का काम कर रहा है।
read : दलित उद्यमियों को कारोबारी गुर सिखाने के लिए बीवाईएसटी, दलित इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स के बीच समझौता
read: Mamata Banerjee Injured: हेलिकॉप्टर से गिरीं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, सिर पर आई चोट