भोपालः Rewa Lok Sabha Election 2024 देश में लोकसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। मध्यप्रदेश की 29 सीटों के लिए चार चरणों में वोट डाले जाएंगे। वाइट टाइगर्स के लिए पूरे देश में अपनी पहचान बनाए रखने वाली रीवा संसदीय सीट में 26 अप्रैल को वोटिंग होगी। इससे पहले यहां की सियासत अब गर्म हो चुकी है। भाजपा ने यहां एक बार फिर मौजूदा सांसद जनार्दन मिश्रा को चुनावी मैदान पर उतारा है। वहीं कांग्रेस ने नीलम अभय मिश्रा को प्रत्याशी बनाया है। इसके अलावा बसपा ने अभिषेक पटेल को बतौर उम्मीदवार चुनावी मैदान में भेजा है। निर्दलीय़ अन्य दलों के मिलाकर यहां कुल 14 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं। रीवा में भाजपा मोदी के चेहरे और विकास के नाम पर लोगों के बीच है। वहीं कांग्रेस पार्टी इस बार के लोकसभा चुनाव में स्थानीय मुद्दों को ज्यादा महत्व दे रही है।
रीवा संसदीय क्षेत्र में मततादाओं की संख्या की बात करें तो यहां कुल मतदाता 27,82,375 है। इनमें 14,49,516 पुरुष और 13,32,834 महिलाएं शामिल है। वहीं थर्ड जेंडर के 25 मतदाता भी यहां हैं। जिले में ब्राह्मण वोटर्स की संख्या सबसे ज्यादा है। करीब 6 लाख वोटर ब्राह्मण समुदाय से आते हैं। रोजगार, पीने का पानी, सिंचाई का पानी, पलायन, मंहगाई समेत कई मुद्दे यहां हावी है। कांग्रेस इसे और हवा देकर भाजपा को घेरने में जुटी हुई है।
रीवा लोकसभा में सिरमौर, सेमरिया, त्योंथर, मऊगंज, देवतालाब, मंगावन, रीवा, गुढ़ विधानसभाओं को शामिल किया गया है। वहीं अगर 2019 के लोकसभा चुनाव की बात की जाए तो यहां बीजेपी की ओर जनार्दन मिश्रा मैदान में थे जबकि कांग्रेस ने इस सीट से सिद्धार्थ तिवारी को मौका दिया था। जहां जनार्दन मिश्रा को यहां से 5,83,745 वोट मिले थे, जबकि सिद्धार्थ तिवारी को 2,70,938 वोट मिले थे। दोनों के बीच करीब 3 लाख वोटों का अंतर रहा।
Rewa Lok Sabha Election 2024 अपने अभूतपूर्व विरासत को समेटे हुए रीवा की राजनीति भी दिलचस्प रही है। सिरमौर, सेमरिया, त्योंथर, मऊगंज, देवतालाब, मंगावन, रीवा, गुढ़ विधानसभा इस सीट में शामिल है। इस सीट पर हुए अभी तक के चुनावों में यहां की जनता ने किसी भी पार्टी को लंबे समय तक टिकने नहीं दिया। 1952 से 67 तक लगातार चार आम चुनाव में रीवा की जनता ने कांग्रेस के उम्मीदवार को विजयी बनाया। इसके बाद 1971 में रीवा के राजा मार्तण्ड सिंह पहली बार निर्दलीय के रूप में यहां से लोकसभा पहुंचे। रीवा की धरती से वे पहले गैर कांग्रेसी सांसद थे। इमरजेंसी के बाद 1977 के आम चुनाव में यहां की जनता ने पहली बार जनता पार्टी के उम्मीदवार यमुना प्रसाद शास्त्री को जीत का सेहरा पहनाया। इसके बाद 80 और 84 में लगातार दो बार राजा मार्तण्ड सिंह निर्दलीय और कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में लोअर हाउस पहुंचे।
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1989 के चुनाव में यमुना प्रसाद शास्त्री एक बार फिर जीते, लेकिन इस बार उनकी पार्टी जनता दल रही। इसके बाद 1991 और 96 के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी भीम सिंह पटेल और बुद्धसेन पटेल जीते। 98 के चुनाव में पहली बार भारतीय जनता पार्टी रीवा में अपना परचम फहराने में सफल रही। इस बार पार्टी के प्रत्याशी चंद्रमणि त्रिपाठी चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे। करीब 14 साल बाद 1999 में एक बार फिर कांग्रेस ने वापसी की और सुंदरलाल तिवारी रीवा के सांसद बने। 2004 के चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार चंद्रमणि त्रिपाठी एक बार फिर चुनाव जीते और सांसद बने। 2009 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी के उम्मीदवार देवराज सिंह पटेल रीवा से जीतकर संसद पहुंचे। इसके बाद 2014 और 2019 में लगातार दो बार बीजेपी प्रत्याशी जनार्दन मिश्र यहां से जीतकर सांसद बने।
रीवा लोकसभा सीट में किसी भी दल का हमेशा बोलबाला नहीं रहा है। अगर पिछले 8 लोकसभा चुनावों पर नजर डालें तो 3 बार बसपा, 4 बार भाजपा और 1 बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की है। इसीलिए विश्लेषक इस सीट को लेकर किसी तरह की भविष्यवाणी करने से बचते हैं। वजह बसपा की मजबूत उपस्थिति भी है। 2019 में बसपा को मिले 91 हजार से ज्यादा वोटों को छोड़ दें तो पार्टी को हर चुनाव में डेढ़ से दो लाख तक वोट मिले हैं। बसपा को मिलने वाले वाले ये वोट किसी के भी हार जीत का खेल बिगाड़ सकते हैं। बसपा की ओर से अभिषेक पटेल मैदान में हैं। वे युवा चेहरा हैं और 2023 का विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं।
Rewa Lok Sabha Election 2024 वर्ष 1991 में रीवा लोकसभा सीट ने बसपा को भीमसिंह पटेल के रूप में पहला सांसद दिया था। रीवा लोकसभा क्षेत्र में बसपा के संस्थापक स्व. कांशीराम की सक्रियता 1989 में तेज हो गई थी, वर्ष 1991 में हुए लोकसभा चुनाव में बसपा ने भीमसेन पटेल को रीवा से टिकट दिया और वे चुनाव जीत गए । बाद में वर्ष 1996 एवं 2009 के चुनाव में भी बसपा प्रत्याशी की जीत हुई।
दूसरे लोकसभा चुनाव में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उनके स्टाफ में रसोइया रहे शिवदत्त उपाध्याय को रीवा लोकसभा सीट से कांग्रेस का उम्मीदवार बनाया था। इस दौर में कांग्रेस का टिकट पा जाने वाला उम्मीदवार स्वयं को विजयी मान लेता था। वर्ष 1957 और अगले चुनाव वर्ष 1962 में भी शिवदत्त उपाध्याय जीते।
जनता पार्टी के तत्कालीन कद्दावर नेता व गोवा मुक्ति आंदोलन में भाग लेने और वहां मिली पुर्तगाल सेना की प्रताड़ना से दोनों आंखों की दृष्टि गंवा चुके पं. यमुना प्रसाद शास्त्री वर्ष 1977 में चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे थे। वे वर्ष 1989 में भी सांसद रहे।