The Big Picture With RKM : NEET पर अब आर-पार की तैयारी, सदन में जवाब मिलेंगे या सिर्फ सियासी सफाई? सेंगोल पर सियासत कितना सही?

NEET पर अब आर-पार की तैयारी, सदन में जवाब मिलेंगे या सिर्फ सियासी सफाई? NEET Controversy: When will the students get justice?

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  • Publish Date - June 28, 2024 / 12:48 AM IST,
    Updated On - June 28, 2024 / 12:48 AM IST

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रायपुरः NEET Controversy : NEET एग्जाम में धांधली को लेकर पूरे देश में बवाल मचा हुआ है। विद्यार्थियों के साथ-साथ उनके माता-पिता भी इसे लेकर चिंतित हैं कि आगे क्या होगा? एक तरफ नीट पर सीबीआई लगातार कार्रवाई कर इस मामले से जुड़े लोगों को गिरफ्तार कर रही है। वहीं दूसरी ओर इस पर जमकर सियासत भी हो रही है। विपक्ष इस मसले को लेकर सत्ता पक्ष से जवाबदेही तय करने की मांग कर रहा है। दोनों सदनों में सरकार को घेरने की बकायदा रणनीति बना चुका है। अब सवाल ये है कि क्या विपक्ष के सवालों पर सरकार जवाब देगी या फिर केवल सियासी सफाई आएगी? समझते हैं..

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NEET Controversy मेरा मानना है कि नीट में धांधली का मामला इस समय देश का सबसे बड़ा मुद्दा होना चाहिए, क्योंकि नीट का सवाल देश के 24 लाख होनहार छात्रों के साथ जुड़ा हुआ है। सरकार और विपक्ष दोनों को इसके लिए पहल करना चाहिए। जिस तरीके से विपक्ष ने इसके ऊपर अपना पक्ष रखा है, वह बिल्कुल सही कदम है। दूसरी तरफ सरकार भी इस धांधली में संलिप्त लोगों पर लगातार कार्रवाई कर रही है। जैसे सरकार का कहना है कि इस पूरे मामले को लेकर हमने सीबीआई जांच की घोषणा की। उसके बाद एक हाई लेवल कमेटी बनाई और अब यह मामला अब कोर्ट में चल रहा है। सरकार अब यह भी कह रही है कि विपक्ष अगर इस मुद्दे को उठाती है तो हम इसके ऊपर जवाब देने के लिए तैयार हैं।यह एक पॉजिटिव चीज है। लेकिन केवल जवाब देने से बात नहीं बनेगी। यह केवल बिहार और गुजरात का मामला नहीं है, पूरे देश का मामला है। इनसे जुड़े माफियाओं का एक पूरा नेटवर्क है और उसका एक कोई मुखिया है, जो इसके चला रहा है। चूंकि आज का दौर टेक्नोलॉजी और सोशल मीडिया का है। कोई भी चीज मिनटों में पूरे देश में फैल जाती है। नीट की पढ़ाई करने के लिए विद्यार्थी वर्षों लगा देते हैं। मेहनत करके बच्चे पढ़ाई करते हैं और उसके बाद एग्जाम देते हैं। फिर उनको यह पता लगे कि ये एग्जाम तो पूरा फर्जी है। कई लोग पैसे देके पास हो रहे हैं। उसके बाद एग्जाम का निरस्त हो जाना। इन सब के बीच सरकार का यह कहना है कि भाई चीजें हमारे हाथ से निकल गई हैं। वाकई बच्चों के लिए चिंताजनक है। इतना बड़ा देश, जो टेक्नोलॉजी को लेकर बड़ी-बड़ी बातें करता है। उस देश में क्या हम एक एग्जाम सही ढंग से नहीं करवा सकते हैं। पेपर लीक जैसी घटना किसी बड़े देश के लिए अच्छी बात नहीं है। छात्रों के भविष्य के जुड़े नीट जैसे संवेदनशील मुद्दे को लेकर राजनीति तो बिल्कुल नहीं होनी चाहिए। क्योंकि यह हर परिवार जुड़ा हुआ मसला है। हर परिवार से कोई न कोई विद्यार्थी इस तरह की परीक्षा की तैयारी कर रहा है। जो इस प्रकरण में पकड़े गए उनकी बात तो छोड़िए, लेकिन यह उन लोगों के लिए सही नहीं है, जिन्होंने मेहनत करके अच्छे नंबर लाए और इसमें सेलेक्ट हुए। आज वे बहुत ज्यादा परेशान हैं। अनिश्चितता के बीच जी रहे हैं कि कल क्या होगा? इन सब चीजों को दूर करने के लिए अब सरकार को एक पूरी पॉलिसी बनानी चाहिए। इसके ऊपर डे टू डे ब्रीफिंग होनी चाहिए कि क्या किया जा रहा हैं और आगे क्या होगा? इसका एक टाइमलाइन बनाया जाना चाहिए कि सरकार इस संवेदनशील मुद्दें पर कैसे-कैसे आगे बढ़ेगी? ताकि सेलेक्ट हुए छात्र-छात्राओं की चिंता दूर हो सके।

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संवेदनशील मुद्दों पर नहीं होनी चाहिए राजनीति

शुक्रवार को सदन में अगर विपक्ष इस मुद्दे को उठाती है तो उनको राजनीति से उपर उठकर सवाल-जवाब करना चाहिए। पूरजोर तरीके से छात्रों की समस्याएं और परीक्षा का सिस्टम पर लगे दाग को दूर करने के लिए आवाज बुलंद करना चाहिए। साथ ही कुछ उपाय भी बताए। ठीक इसी तरह सरकार को अपना पक्ष रखना चाहिए कि इस मसले पर उन्होंने अभी तक क्या किया है। अपने भविष्यगत प्लान को भी बताना चाहिए, जिससे छात्र और उनके पेरेंट्स की चिंता दूर हो सके। छात्रों और उनके अभिभावक आश्वस्त हो सकें कि जो हुआ सो हुआ, लेकिन आगे जो होगा तो कम से कम मेहनत का फल मिल सके। नीट और अन्य पेपर लीक जैसे छात्रों के भविष्य से जुड़े हुए मामलों पर राजनीति नहीं होना चाहिए।

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फिर सामने आया सैंगोल का मुद्दा, क्या हैं इसके मायने?

गुरुवार को सदन में एक फिर सदन में सेंगोल का मामला गूंजा। समाजवादी पार्टी के सांसदों ने इस मुद्दे को उठाया। इसके बाद देश में राजतंत्र बनाम लोकतंत्र की नई लड़ाई देखने को मिल रही है। इस पर मेरा मानना है कि यह बिल्कुल बेईमानी बहस है। मेरे हिसाब से इन सब चीजों में बिल्कुल भी संसद का वक्त जाया नहीं करना चाहिए। नए संसद भवन के उद्घाटन के समय 28 मई को पीएम मोदी ने तमिलनाडु के 20 सन्यासियों के सैंगोल को स्थापित कर दिया। उन्होंने कहा कि ये पहले नेहरू के जमाने में ये हुआ था। ये बात वहीं पर खत्म हो जाना चाहिए था। मेरा तो यह भी मानना है कि आज जैसे हुआ कि राष्ट्रपति के आगे-आगे उसे सैंगोल को लाया गया। ये सब करने की जरूरत बिल्कुल भी नहीं है। संसद को पुरानी परंपराओं से चलाया जाना चाहिए। नई परंपराएं क्यों बनाना? क्योंकि सैंगोल बहुत ज्यादा ऐतिहासिक नहीं है। यदि आप इतिहास को पढ़ेंगे तो कहीं पर इससे संबंधित अच्छी जानकारी दर्ज नहीं है कि संगोल को जब दिया गया तभी सत्ता का परिवर्तन हुआ है। ब्रिटिश राष्ट्र से हिंदू इंडियन गवर्नमेंट बनी। ये सिंबॉलिक है तो इसको केवल सिंबॉलिक ही रहने दिया जाना चाहिए। अब उसमें विपक्ष की ओर से सवाल उठाना कि सैंगोल की जगहसंविधान की प्रति रख दी जाए। यह भी सही नहीं है। भई संविधान के अंदर ही तो पूरी पार्लियामेंट काम कर रही है। आप शपथ ले रहे हो तो भी संविधान की शपथ ले रहे ह। कुल मिलाकर इस तरीके के जो मुद्दे सत्ता पक्ष और विपक्ष की ओर से उठाए जाते हैं ये बिल्कुल बेइमानी है। यह संसद का समय बर्बाद करने वाला है। ये एक सिंबॉलिक चीज है, जो होनी थी हो गई। उसे लगे रहने दीजिए। ये डिबेट ये केवल और केवल वक्त जाया करने के लिए है। संसद में नीट के कैसे एग्जाम अच्छे हो, उस पर बात होनी चाहिए। देश आगे कैसे बढ़े? इकोनॉमी कैसे स्ट्रांग हो? इन सब मुद्दों पर बात होनी चाहिए।