Khargone-Barwani Lok Sabha Seat: सालों से रेल के मुद्दे पर इस सीट पर लड़ा जा रहा चुनाव, फिर भी पूरी नहीं हो पाई मांग, जानें खरगोन-बड़वानी लोकसभा सीट का समीकरण

Khargone-Barwani Lok Sabha Seat: सालों से रेल के मुद्दे पर इस सीट पर लड़ा जा रहा चुनाव, फिर भी पूरी नहीं हो पाई मांग

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  • Publish Date - May 11, 2024 / 08:20 PM IST,
    Updated On - May 11, 2024 / 08:21 PM IST

Khargone-Barwani Lok Sabha Seat: देशभर में आज चौथे चरण के लिए चुनाव प्रचार थम गया है। 13 मई को देशभर में चौथे चरण पर मतदान होंगे। इसमें मध्यप्रदेश की आठ सीटों पर वोटिंग होगी। मतदान को लेकर पुलिस प्रशासन ने तैयारियां पूरी कर ली है। बात करें खरगोन लोकसभा सीट की तो यहां कुल 05 उम्मीदवार मैदान में हैं। गजेंद्र सिंह पटेल बीजेपी उम्मीदवार और वर्तमान बीजेपी सांसद, कांग्रेस से पोरलाल खरते, BSP से शोभाराम डावर, CPI से देवीसिंह नरगावे और नरसिंह सोलंकी निर्दलीय प्रत्याशी हैं। खरगोन-बड़वानी लोकसभा में कुल 253 मतदान केंद्र बनाए गए हैं।

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मतदाताओं की संख्या

खरगोन बड़वानी लोकसभा में कुल 20 लाख 46 हजार 030 मतदाता है। जिनमे पुरुष 10 लाख 23 हजार 892 और महिला मतदाता 10 लाख 22 हजार 109 तथा अन्य मतदाता 29 है। वही 18 से 19 वर्ष के युवा मतदाताओं की संख्या 75 हजार 971 है।

समीकरण और मुद्दे

समीकरण – खरगोन बड़वानी लोकसभा क्षेत्र में जातीय समीकरण की बात की जाए तो लोकसभा की पांच सीट आदिवासी बहुल है, जिसमें भील, भिलाला और बारेला समाज बसता है। लोकसभा चुनाव में यही आदिवासी समाज जीत और हार तय करते है। बीजेपी उम्मीदवार गजेंद्र सिंह पटेल आदिवासी भिलाला समाज से आते है तो वहीं, कांग्रेस उम्मीदवार पोरलाल खरते बारेला समाज से आते है। इसके अलावा पूरे लोकसभा में मुस्लिम, पाटीदार, यादव, ब्राह्मण, राजपूत और एससी समाज के वोटर भी निर्णायक भूमिका में है।

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खरगोन बड़वानी लोकसभा में राजनीतिक समीकरण की बात की जाए तो वर्तमान में पांच विधानसभा कांग्रेस के कब्जे में है, जिनमें कसरावद, भगवानपुरा, सेंधवा, राजपुर और बड़वानी विधानसभा शामिल है। जबकि, बीजेपी के कब्जे में केवल तीन सीट है, जिनमें खरगोन, महेश्वर और पानसेमल विधानसभा शामिल है।

मुद्दे

  1. खरगोन लोकसभा क्षेत्र में सबसे बड़ा और प्रमुख मुद्दा रेल का है। आजादी के बाद से खरगोन बड़वानी लोकसभा क्षेत्र में रेल नहीं आ पाई।
  2. दूसरा प्रमुख मुद्दा रोजगार के पर्याप्त साधन नहीं होने से खासकर आदिवासी और गरीब मजदूर पलायन को मजबूर है।
  3. तीसरा सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि पूरे निमाड़ के इलाके को सफेद कटोरा याने कि कपास फसल की खेती के लिए जाना जाता है, लेकिन पूरे लोकसभा क्षेत्र में खरगोन की सहकारी सूत मिल को छोड़कर कोई भी बड़ा काटन उद्योग नहीं खुला है। यहां तक कि खरगोन और बड़वानी जिले में अधिकांश कॉटन जिनिंग और प्रेसिंग फेक्ट्रिया बंद हो गई।
  4. शासकीय इंजीनियरिंग कालेज के साथ साथ कृषि प्रधान जिला होने के बावजूद अभी तक शासकीय कृषि महाविद्यालय नहीं खुल पाया, जबकि यहां से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता स्वर्गीय सुभाष यादव और उनके बेटे सचिन यादव के साथ खरगोन के वर्तमान बीजेपी विधायक बालकृष्ण पाटीदार कृषि राज्यमंत्री रह चुके हैं।
  5. पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान ने खरगोन को मेडिकल कालेज की सौगात जरूर दी है, लेकिन केवल वॉल बाउंड्री के लिए ही धनराशि स्वीकृत की थी। धरातल पर कुछ नहीं है। खरगोन बड़वानी जिले के अधिकांश सुदूर गांवों में शिक्षा,स्वास्थ्य,सड़क और पेयजल जेसे गंभीर मुद्दे हैं।
  6. खरगोन की जीवन दायिनी कही जाने वाली कुंदा नदी में शहर के गंदे नाले मिलने से कुंदा नदी भी प्रदूषित होती नजर आ रही है।

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 खरगोन-बड़वानी लोकसभा सीट का इतिहास

खरगोन-बड़वानी लोकसभा सीट की बात करें तो साल 1952 से 1962 तक इसे निमाड़ लोकसभा सीट कहा जाता था। इसके बाद इस सीट का नाम खरगोन दिया गया। यह पहले जनरल सीट थी, लेकिन 2009 में इस अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित कर दिया गया। 1998 में खरगोन से अलग कर बड़वानी जिला निर्मित किया गया। बड़वानी जिले की समस्त कर अनुसूचित जनजाति की सीटों को खरगोन लोकसभा में शामिल कर लिया गया।

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1952 से शुरू हुए खरगोन (तब नाम निमाड़) संसदीय क्षेत्र के चुनाव में शुरुआती दौर में कांग्रेस का कब्जा रहा, लेकिन 10 वर्ष बाद ही 1962 में जनसंघ ने कांग्रेस से यह सीट छीन ली। वर्ष 1977 (जनता पार्टी) के अलावा भी वर्ष 1989 से वर्ष 1998 तक लगातार भाजपा ने अपना वर्चस्व यहां पर कायम रखा। इसके बाद दो चुनावों में कांग्रेस जीती। इसके बाद भाजपा ने फिर अपना यह गढ़ प्राप्त कर लिया। खरगोन संसदीय सीट पर 17 आम चुनाव और एक उपचुनाव हुआ है। भाजपा के रामेश्वर पाटीदार सर्वाधिक पांच बार सांसद रहे। वहीं कांग्रेस के रामचंद्र विट्ठल ‘बड़े’ और सुभाष यादव दो-दो बार सांसद रहे।

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