Betul Lok Sabha seat 2024: 1996 से अब तक बैतूल लोकसभा सीट पर कांग्रेस नहीं लगा पाई सेंध, क्या इस बार रामू टेकाम करा पाएंगे वापसी? जानें समीकरण

Betul Lok Sabha seat 2024: 1996 से अब तक बैतूल लोकसभा सीट पर कांग्रेस नहीं लगा पाई सेंध, क्या इस बार रामू टेकाम करा पाएंगे वापसी? जानें समीकरण

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  • Publish Date - May 4, 2024 / 06:07 PM IST,
    Updated On - May 4, 2024 / 06:07 PM IST

बैतूल: Betul Lok Sabha seat 2024 देश के 13 राज्यों के 88 लोकसभा सीटों पर 26 अप्रैल को दूसरे चरण का मतदान खत्म हो चुका है। जिसके बाद अब तीसरे चरण का मतदान 7 मई को होगा। वहीं मध्यप्रदेश में तीसरे चरण में मुरैना, भिंड, ग्वालियर, गुना, सागर, विदिशा, भोपाल, राजगढ़ और बैतूल सीट पर चुनाव है। बात करें बैतूल लोकसभा सीट की तो यहां बीएसपी प्रत्याशी के निधन के बाद पहले चरण में होने वाला मतदान रद्द हे गया था। जिसके बाद अब इस लोकसभा सीट पर सात मई को वोटिंग होने जा रहा है।

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बैतूल लोकसभा चुनाव के प्रत्याशी

Betul Lok Sabha seat 2024 बैतूल लोकसभा चुनाव सीट की बात करें तो यहां लंबे समय से बीजेपी ही परचम लहरा रही है। पिछले चुनावों के दौरान बीजेपी ने इस सीट पर दुर्गा दास उइके को उतारा था औऱ कांग्रेस ने रामू टेकाम को टिकट दिया था। बीजेपी ने इस सीट पर दुर्गादास उइके को प्रत्याशी बनाया है। दूसरी ओर कांग्रेस ने राम टेकाम को टिकट दिया है।

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क्या हैं जातिगत समीकरण

जातिगत समीकरणों के लिहाज से बात करें तो यहां इस सीट पर आदिवासी मतदाता आरक्षित है। यहां 45 प्रतिशत प्रतिशत (एसटी )आदिवासी मतदाता है। बैतूल सीट पर एससी एसटी के बाद 55 प्रतिशत ओबीसी और सामान्य वर्ग प्रभावी होता है, जबकि अल्पसंख्यक वोटर्स भी यहां अहम है जो कि फैसले को पलटने में भी निर्णायक साबित हो सकते हैं। इस सीट पर आदिवासी मतदाता का मतदान चुनावी परिणाम निर्धारित करता है।आदिवासी सीट होने के कारण राजनैतिक की दृष्टि से इस लोक सभा में हमेशा समृद्ध राजनेता का हस्तक्षेप रहता है।

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बैतूल लोकसभा का चुनावी इतिहास

बैतूल लोकसभा में सबसे पहले 1952 में चुनाव हुआ था। तब कांग्रेस के भीकूलाल चांडक ने जीत दर्ज की थी। 1957, 1962, 1967 और 1971 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी जीत दर्ज करती रही। लेकिन 1977 में सुभाष चंद्र अहूजा ने भारतीय लोकदल की टिकट पर यहां से जीत दर्ज की और कांग्रेस से यह सीट छीन ली। 1980 में कांग्रेस के गुफरान आजम संसद बने। इसके बाद 1984 में अशलम शेरखान ने कांग्रेस की टिकट पर जीत हासिल की। असलम शेर खान अंतरराष्ट्रीय हाकी खिलाड़ी थे। उन्होंने 1975 में कुआलालंपुर में आयोजित विश्वकप में भारतीय हाकी टीम में शामिल रहकर स्वर्ण पदक जीतने में विशेष भूमिका निभाई थी।

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1996 से लगातार जीत रही बीजेपी

मां ताप्ती की उद्गम स्थली और सतपुड़ा के जंगलों से घिरे बैतूल संसदीय क्षेत्र में आदिवासी वर्ग के मतदाताओं का अच्छा प्रभाव है, ऐसे में यहां आदिवासी वर्ग ही हार-जीत का फैसला करता है। बात अगर बीजेपी की जाए तो बैतूल लोकसभा सीट पर भाजपा की मजबूत पकड़ मानी जाती है, 1996 से बीजेपी लगातार बैतूल सीट पर चुनाव जीत रही है। हालांकि पार्टी चुनावों में चेहरे जरूर बदलती रही, लेकिन जीत का सिलसिला बरकरार रहा है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने यहां बड़ी जीत हासिल की थी, जबकि कांग्रेस ने 1991 में आखिरी बार इस सीट पर जाती हासिल की थी। ऐसे में इस बार चुनाव का भी दिलचस्प होने की पूरी उम्मीद है।

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बेरोजगारी की कमी

बैतूल लोकसभा सीट पांच विधानसभा क्षेत्रों में निवास करने वाले लोगों को बुनियादी सुविधाओं के अलावा सरकार और माननीयों से यह उम्मीद है कि वे उन्हें रोजगार के लिए पलायन करने की समस्या से मुक्ति दिला दें। जिले में भरपूर वन संपदा होने के बाद भी आज तक वनोपज पर आधारित उद्योग की स्थापना नहीं हो पाना बेरोजगारी का प्रमुख कारण बना हुआ है।

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