Lok Sabha Election 2024 : देश में लोकसभा चुनाव का बिगुल बजने के साथ ही चुनाव मैदान में जहां कई ऐसे प्रखर वक्ता दिखेंगे जो वाक् कौशल से सबका ध्यान खीचेंगे तो अनेक पर्दे के पीछे रहकर रणनीति तैयार कर पार्टी की जीत का खाका तैयार करेंगे। इन प्रमुख नेताओं और रणनीतिकारों पर सबका ध्यान केंद्रित रहने वाला है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी उन 10 प्रमुख राजनीतिक हस्तियों में शामिल हैं जो किसी न किसी स्तर पर चुनावी विमर्श तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी।
लगातार तीसरे कार्यकाल के लिए प्रयासरत प्रधानमंत्री मोदी न केवल भारत पर अपने चुनावी प्रभुत्व की मुहर लगाना चाहते हैं, बल्कि पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के रिकॉर्ड की बराबरी करते हुए लगातार एक और जीत के साथ इतिहास रचने की कोशिश में हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ‘‘मोदी की गारंटी’’ और ‘‘विकसित भारत’’ के ईद-गिर्द चुनावी विमर्श को खड़ा करने की कोशिश करेंगे। 73 वर्षीय मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के आत्मविश्वास के साथ चुनाव में उतर रहे हैं और उन्होंने अपने अगले कार्यकाल के लिए खाका पर काम भी शुरू कर दिया है।
केंद्रीय मंत्रिमंडल में अघोषित ‘नंबर 2’ और भाजपा के ‘चाणक्य’ कहे जाने वाले अमित शाह एक बार फिर अपनी पार्टी की रणनीति में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। चाहे अनुच्छेद 370 को निरस्त करना हो या संशोधित नागरिकता कानून (सीएए), उन्होंने गृह मंत्री के रूप में कई मुश्किल परिस्थितियों में सरकार को संभाला है। 59 वर्षीय शाह एक बार फिर चुनावी युद्ध के मैदान में अपने सैनिकों का नेतृत्व करते हुए एक सेनापति के अवतार में नजर आएंगे।
कांग्रेस अपने पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को पार्टी के लिए ‘वैचारिक धुरी’ कहती है। कन्याकुमारी से कश्मीर तक की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ ने उनकी छवि में बदलाव किया, लेकिन राज्यों के विधानसभा चुनावों में हार ने इस पर सवालिया निशान लगा दिया है कि उनकी यात्रा कितनी प्रभावी थी।
अपनी ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ के साथ, 53 वर्षीय गांधी फिर से लोगों के लिए ‘न्याय’ सुनिश्चित करने के उद्देश्य से जनता के बीच हैं। यह लोगों को पसंद आएगा या नहीं, यह सिर्फ समय ही बताएगा।
कांग्रेस के कार्यकर्ता से शुरुआत कर अध्यक्ष तक पद तक पहुंचे मल्लिकार्जुन खरगे सक्रिय राजनीति में पांच दशक का अनुभव रखते हैं। उन्होंने अक्टूबर, 2022 में पार्टी की कमान संभाली। 81 वर्षीय खरगे को अब कांग्रेस का नेतृत्व करते हुए अपनी सबसे कड़ी परीक्षा का सामना करना पड़ रहा है।
तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है। लेकिन इससे पहले विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के साथ प्रदेश में उनकी पार्टी और कांग्रेस के बीच सीट बंटवारे को लेकर ऊहापोह की स्थित लंबे समय तक बनी रही। 69 वर्षीय बनर्जी पश्चिम बंगाल में भाजपा को कड़ी टक्कर देती हैं और भारतीय जनता पार्टी के साथ द्वंद्व में उलझी हुई हैं। भाजपा ने संदेशखालि के मामले को लेकर उन पर हमले तेज कर दिए हैं।
जब विपक्षी दलों के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन की बात आती है तो ममता बनर्जी का मंत्र ‘एकला चलो’ का होता है, लेकिन वह भाजपा के विरोध में वैचारिक मुद्दे पर दृढ़ दिखती हैं।
बिहार की सत्ता में बने रहने और आसानी से राजनीतिक गठबंधन बदलने के अपने कौशल के लिए जाने जाने वाले कुमार ने लोकसभा चुनाव से पहले एक बार फिर पाला बदला है। 73 वर्षीय नेता का राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में जाना, ‘इंडिया’ गठबंधन के लिए एक बड़ा झटका साबित हुआ। उनके भाजपा के साथ हाथ मिलाने से बिहार में नाटकीय रूप से स्थिति बदल गई है। अब लोगों को उनके नवीनतम ‘पाला बदलने’ पर निर्णय देना है।
शरद पवार भारतीय राजनीति के दिग्गजों में शुमार किए जाते हैं। अपने ही भतीजे अजित पवार से परेशान और धोखा खाने वाले 83 वर्षीय मराठा नेता शायद अपने करियर के आखिरी पड़ाव में सबसे कठिन लड़ाई लड़ रहे हैं। कभी हार न मानने वाले रवैये के लिए पहचाने जाने वाले पवार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के लिए मुश्किल साबित हो सकते हैं। उनकी पहल पर ही महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी अस्तित्व में आया।
द्रमुक सुप्रीमो ने तमिलनाडु में अपना प्रभुत्व स्थापित किया है और दक्षिणी राज्य में भाजपा के खिलाफ विपक्ष की बड़ी ताकत हैं। स्टालिन से तमिलनाडु में विपक्षी गठबंधन को महत्वपूर्ण चुनावी बढ़त दिलाने की उम्मीद है। 71 वर्षीय स्टालिन गांधी परिवार के कट्टर समर्थक हैं, लेकिन उनकी पार्टी के नेताओं की ‘सनातन धर्म’ पर विवादास्पद टिप्पणियों ने कई मौकों पर ‘इंडिया’ गठबंधन को बैकफुट पर ला दिया और उत्तर में उन्हें नुकसान हो सकता है।
राजद नेता फिर से बिहार में विपक्ष में हैं, लेकिन ‘इंडिया’ गठबंधन में उनका कद बढ़ गया है। 34 वर्षीय यादव ने बिहार में विपक्षी समूह का उत्साहपूर्वक नेतृत्व किया है और कई लोग उन्हें बिहार में उनके पिता लालू प्रसाद की विरासत के सक्षम उत्तराधिकारी के रूप में देखते हैं। वह राजग के गणित को बिगाड़ पाएंगे या नहीं, इसका इम्तिहान लोकसभा चुनाव में होगा।
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) प्रमुख ने अक्सर विधानसभा चुनावों में विपक्षी गठबंधन के लिए ‘खेल बिगाड़ने’ की भूमिका निभाई है और कुछ नेताओं ने उन्हें भाजपा की ‘बी-टीम’ करार दिया है। 54 वर्षीय ओवैसी तेलंगाना के अलावा देश के विभिन्न हिस्सों में अपनी पार्टी के बढ़ने और चुनाव लड़ने के अधिकार को लेकर दृढ़ रहे हैं। क्या वह विपक्षी दलों या भाजपा का गणित बिगाड़ देंगे, यह देखना भी दिलचस्प रहेगा।