Big Picture With RKM: रायपुर। झारखंड और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों के लिए आज प्रचार-प्रसार ख़त्म हो चुका है। इसी तरह उत्तर प्रदेश के जिन नौ सीटों पर उप चुनाव होने है वहां भी कैम्पेनिंग थम चुकी है। इस तरह नेताओं को इन चुनावों को लेकर जितनी भी बयानबाजी करनी थी वह पूरी हो चुकी है। (Who will win the assembly elections of Maharashtra and Jharkhand?) फिर वह चुनावी वादे हो, नेताओं के बीच जहरीली बयानबाजी हो, मुद्दों की बात हो या बिना मुद्दों की। इस तरह जो कुछ भी इन चुनावों में होना था हो चुका है। अब 23 नंवबर को मतदान होगा, उम्मीदवारों, प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम में कैद हो जाएगी।
बात अगर चुनावों के परिमाणों की करें तो फ़िलहाल कुछ वक़्त से देखा गया हैं कि भारत में चुनावी नतीजों का आकलन मुश्किल रहा है। हालांकि हम परिणामों को लेकर कयास तो जरूर लगा सकते है। बात अगर महाराष्ट्र की करें तो यहाँ चुनावी मुद्दे बदलते रहे है। इसकी शुरुआत कई हिस्सों में बंट चुकी पार्टियों के बीच खुद को असली पार्टी साबित करने को लेकर हुई थी। इसके बाद उम्मीद ,जताई जा रही थी कि लाडकी बहन योजना इस चुनाव में असर डाल सकती है। फिर मुख्यमंत्री शिंदे को गद्दार भी कहा गया और आखिर में महाराष्ट्र का चुनाव ‘बटेंगे तो कटेंगे’ से लेकर ‘एक है तो सेफ है’ के नारों तक आ पहुंचा। इस तरह महाराष्ट्र के इस पूरे चुनाव में देखा गया कि जनता के मुद्दे पूरी तरह गायब थे। नारों के आधार पर चुनाव लड़े गये और सियासी दलों के बीच इस बात की कोशिश होती रही कि आखिर किस तरह अपने वोट बैंक को मजबूत रखा जाएँ।
इस पूरे चुनाव में जिस तरह की भाषा का प्रयोग हुआ और जिस तरह की बयानबाजी नेताओं की तरफ से की गई यह काफी निचले स्तर की थी। लेकिन इसके पीछे की वजह यह भी रही कि यह स्पष्ट हो ही नहीं सका कि आखिर मतदाता का झुकाव किस तरफ है। महायुति और महा अघाड़ी के बीच लड़े गये इस चुनाव में जनता ने अपने पत्ते नहीं खोले। दूसरा यह भी कि महाराष्ट्र में भाजपा की गठबंधन वाली महायुति की सरकार हैं जबकि कुछ महीने पहले संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में मतदाताओं ने अपना भरोसा महा विकास अघाड़ी पर जाहिर किया था। (Who will win the assembly elections of Maharashtra and Jharkhand?) ऐसे में हर दल को इस बात की उम्मीद हैं कि वह इस बार महाराष्ट्र की सत्ता पर काबिज हो रही है। इसी तरह के परिणाम लोकसभा में हरियाणा में भी देखने को मिले थे जहां कांग्रेस की अगुवाई वाले ‘इंडिया’ गठबंधन ने शानदार प्रदर्शन किया था लेकिन विधानसभा चुनाव में वहां अप्रत्याशित तौर पर बीजेपी ने बाजी मारी थी। इस परिणाम ने भाजपा को इस बात की उम्मीद दी हैं कि लोकसभा चुनावों में पटखनी के बाद भी वह उन राज्यों में सरकार में लौट सकती है।
बात झारखण्ड की करें तो यहां भाजपा के लिए बड़ी चुनौती यह थी कि आदिवासियों की अगुवाई करने वाली झामुमो सत्ता में थी। ऐसे में आदिवासी वोटबैंक को पाले में लाना भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण था। बीजेपी ने यहाँ माटी, बेटे, रोटी का नारा बुलंद किया और आदिवासियों के सामने इस बात का प्रचार किया कि अगर झामुमो यहाँ फिर सत्ता पर काबिज होती है तो ऐसे में प्रदेश में फिर से घुसपैठ शुरू हो जाएगा। इसके जवाब झारखण्ड ने भाजपा को बाहर बताते हुए दावा किया कि वह आदिवासियों को संस्कृति को खतरे में डाल सकते हैं। भाजपा उन्हें नुकसान पहुंचा सकती हैं। महाराष्ट्र की तरह ही चुनावी लड़ाई यहां भी देखने को मिली है। झारखण्ड में भी भाषणों का स्तर बिलकुल निम्न स्तर का रहा।
बहरहाल अब 20 को मतदान है जबकि 23 को परिणाम आएंगे। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि जनता किस पार्टी पर अपना विश्वास जाहिर करती है।