Big Picure with RKM: क्या कांग्रेस भी चाहती हैं कश्मीर में धारा 370 फिर लागू करना? कैसा होगा घाटी का सियासी समीकरण? देखें जम्मू-कश्मीर चुनाव का बिग पिक्चर

एक महत्वपूर्ण विषय यह भी हैं कि लोकसभा चुनाव के बाद घाटी में सीमापार के तरफ से आतंकी गतिविधियां बढ़ी हैं। कई बड़े मुठभेड़ भी हुए जिसमें हमने अपने कई जाबांज जवानों को खोया है।

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  • Publish Date - August 22, 2024 / 11:41 PM IST,
    Updated On - August 22, 2024 / 11:43 PM IST

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Big Picure with RKM: रायपुर। इस वक़्त पूरे देश की नजर कश्मीर पर है, कश्मीर में 10 सालों बाद होने जा रहे विधानसभा चुनाव पर है। कश्मीर में शांतिपूर्ण तरीके से चुनाव होंगे या नहीं? कौन सी पार्टी जीतेगी, कौन सरकार बनाएगा और किस तरह से पार्टियां कश्मीर में गठबंधन करेगी? ये तमाम सवाल आज भारत के मतदाताओं के मन में है। यह चुनाव इसलिए भी अहम हैं क्योंकि धरा 370 के हटाए जाने के बाद यह घाटी में पहला चुनाव है। हालांकि अब कश्मीर का सियासी भूगोल बदल चुका हैं। यहाँ केंद्रशासित प्रदेशों की स्थापना हो चुकी हैं। बात यहां होने वाले चुनाव की करें तो खुद सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिए थे कि यहां 30 सितम्बर से पहले चुनाव कराये जाए।

What will be the political future of Jammu and Kashmir and who will form the government here?

जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनावी कार्यक्रमों का भी ऐलान कर दिया है। जाहिर हैं इसके बाद अब राज्य की सियासी पार्टिया भी एक्टिव हो चुकी हैं। पीडीपी चीफ महबूबा मुफ्ती ने अपने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी है। दूसरी क्षेत्रीय पार्टियों की तरह उन्होंने भी परिवारवाद को बढ़ाते हुए अपनी ही बेटी को चुनाव लड़ाने का ऐलान किया है।

बात करें नेशनल कांफ्रेंस की तो यहां अब्दुल्ला एंड संस ने भी चुनावी तैयारियों की शुरुआत कर दी हैं। उन्होंने एक कदम आगे बढ़ाते हुए अपना घोषणा पत्र भी जारी कर दिया हैं। बात उनके ऐलान की करे तो इसमें कुछ ऐसी बातों को शामिल किया हैं जो कश्मीर को कई दशक पीछे ले जाने वाला है।

‘तोड़ दिया PM मोदी का कॉन्फिडेंस’

बात कांग्रेस की करें तो उन्होंने भी अपनी तैयारियों को भी अमलीजामा पहनना शुरू कर दिया हैं। बुधवार को कांग्रेस चीफ मल्लिकार्जुन खरगे लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के साथ कश्मीर पहुंचे। यहां उन्होंने रात्रिभोज किया और श्रीनगर के लालचौक पर आइसक्रीम का भी लुत्फ़ उठाया। (What will be the political future of Jammu and Kashmir and who will form the government here?) राहुल गांधी ने बताया कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कॉन्फिडेंस तोड़ दिया हैं। ये बात अलग हैं कि पीएम मोदी के नीतियों के चलते ही आज राजनेता कश्मीर में खुले तौर पर घूम रहे हैं। क्योंकि कुछ वर्ष पहले तक लालचौक में आइसक्रीम खाना तो दूर, आप घूम भी नहीं सकते थे।

इसके साथ ही राहुल ने एनसी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का भी ऐलान कर दिया। लेकिन सवाल यह हैं कि क्या कांग्रेस नेशनल कांफ्रेंस के उस ऐलान से सहमत हैं जिसमें उन्होंने कश्मीर में फिर से धारा 370 लागू किये जाने की बात की है? इस मामले पर कांग्रेस ने मौन साध लिया है। एनसी ने इससे आगे बढ़कर यह भी कहा हैं कि वह कश्मीर में 1953 से पहले वाली स्थिति बहाल करेंगे। इस पर भी कांग्रेस का क्या स्टैंड होगा यह भी नहीं पता। उन्होंने तो यहां तक ऐलान कर दिया कि वह सत्ता में आते ही जेल में बंद कैदियों को रिहा कर देंगे तो, क्या वह आतंकियों के रिहाई की बात कर रहे हैं? इस पर भी कांग्रेस का स्टैंड जानना जरूरी है। हालांकि एनसी ने जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा दिलाने की बात जरूर कही हैं। भाजपा भी इसकी पक्षधर रही है।

इन सबसे बीच एक बात साफ़ हैं कि कांग्रेस एनसी के कंधो पर सवार होकर कश्मीर के चुनावी वैतरणी में उतरने जा रही हैं। लोकसभा में एक भी सीट नहीं जीत पाने वाली कांग्रेस को उम्मीद हैं कि वह इस गठबंधन के बल पर जम्म्मू-कश्मीर में कुछ विधानसभा सीटें हासिल कर लेगी। फिलहाल एनसी के पास राज्य की दो लोकसभा हैं। ये और बात है कि खुद उनके अध्यक्ष चुनाव हार गए थे। कांग्रेस ने यह भी कहा हैं कि वह गठबंधन के लिए पीडीपी से भी चर्चा करेंगी। तो एक सियासी तस्वीर वहां अभी तैयार हो रही हैं जिसे देखना काफी दिलचस्प होगा।

दूसरी तरफ हम भाजपा की स्थिति भी देख सकते हैं जो एक अलग राह पर बढ़ती नजर आ रही हैं। जम्मू में हुए परिसीमन के बाद सीटों में बढ़ोत्तरी हुई हैं। ऐसे में भाजपा को उम्मीद हैं कि वह जम्मू से ही बहुमत के लिए जरूरी आंकड़े वाले सीटें हासिल कर लेगी। भाजपा के लिए सम्भावना यह भी हैं कि वह लोकसभा की तरह ही कुछ प्रयोग करें। (What will be the political future of Jammu and Kashmir and who will form the government here?) मसलन पिछले लोकसभा में उन्होंने श्रीनगर से उम्मीदवार खड़ा नहीं किया था और स्थानीय उम्मीदवारों को अपना समर्थन दिया था तो मुमकिन हैं इस बार भी कुछ ऐसी ही स्थिति देखने को मिले। ताकि सीटों की कमी होने पर बहुमत का जुगाड़ इन स्वतंत्र सीटों वाले विधायकों से हो जाये।

सक्रिय राजनीतिक दल और उनके नेताओं के अलावा जम्मू-कश्मीर में कुछ ऐसे भी चेहरे हैं जो फ़िलहाल शांत हैं। इनमे पूर्व कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद और भीम पार्टी के नेता भी शामिल हैं। इनका सियासी भविष्य किस ओर बढ़ेगा यह तय नहीं है। तो अभी अंतिम समीकरण का अनुमान लगा अपना कठिन है। लेकिन यह तय हैं कि पिछले लोकसभा चुनाव में राज्य के मतदाताओं ने जिस तरह से मतदान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया वैसा ही उत्साह विधानसभा चुनावों में भी नजर आएगा। एक महत्वपूर्ण विषय यह भी हैं कि लोकसभा चुनाव के बाद घाटी में सीमापार के तरफ से आतंकी गतिविधियां बढ़ी हैं। कई बड़े मुठभेड़ भी हुए जिसमें हमने अपने कई जाबांज जवानों को खोया है। ऐसे में घाटी में शांतिपूर्ण और सुरक्षित ढंग से चुनाव करा पाना आयोग के लिए चुनौतीपूर्ण होगा।

बहरहाल हमारी शुभकामनाये हैं कि कश्मीर में शान्तिपूर्ण चुनाव हो। मजबूत सरकार बने और राज्य को शांति, सुरक्षा, खुशहाली, उन्नति और प्रगति के राह पर आगे ले जाये।

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