Big Picture with RKM: रायपुर: आज दो अलग-अलग अदालतों ने दो अलग-अलग और अहम निर्णय पारित किये हैं। पहले बात हम सुप्रीम कोर्ट के आरक्षण पर दिए फैसले की करेंगे। उच्चतम न्यायालय ने आज राज्यों को यह अनुमति दे दी कि वह अगर चाहे तो अनुसूचित जातियों और जनजातियों के आरक्षण के भीतर उनके उपश्रेणियों को कोटा देना चाहते हैं तो दे सकते है। (How much will the latest reservation decision benefit BJP?) इस फैसले में सात जजों की बैंच शामिल रहे और फैसला 6-1 के बहुमत से आया। पूर्व में इस फैसले को लेकर सबसे बड़ा संदेह यह था कि यह कही आर्टिकल 40 के अंदर मौजूद समानता के अधिकार का हनन तो नहीं करते लेकिन, आज के फैसले ने इस तस्वीर को साफ़ कर दी।
अब हम इस फैसले को उदहारण से समझेंगे। हम देखते कि तमिलनाडु और कर्नाटक में एसटी, एससी और ओबीसी के उप श्रेणियों को आरक्षण देने की व्यवस्था पहले से कायम है। इस नियम के तहत तमिलनाडु में अति पिछड़ी जनजातियों को आरक्षण का लाभ मिल रहा हैं। इसी तरह कर्नाटक में एसटी के कोड़वा और माड़िया जनजाति भी इसका लाभ हासिल कर रहे है। बात करें बिहार की तो यहां भी महादलित आयोग का गठन किया गया है जो यह पता लगाएगी कि एसटी और एससी के भीतर कितनी ऐसी जातिया हैं जिन्हें जरूरत के बावजूद आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा है।
लेकिन हम अगर इस पूरे फैसले की बिग पिक्चर देखें तो कोर्ट ने अपने फैसलों में संतुलन बनाने का प्रयास भी किया। उन्होंने राज्यों को साफतौर पर कहा है कि वह अपने लाभ के लिए इसका इस्तेमाल न करें। सुको ने साफ़ किया कि राज्य अपनी मर्जी और फायदे के लिए उप श्रेणियाँ नहीं बना सकती। उन्हें हर हाल में नियम-कायदों का पालन करना होगा। सभी बदलाव न्यायिक समीक्षा के अंतर्गत होंगे। कोर्ट ने साफ किया कि आपत्ति होने पर कोर्ट में इसकी सुनवाई भी संभव होगी। इन सबके बीच जस्टिस गवई ने अहम टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि सब केटेगरी को आरक्षण का लाभ देने के दौरान क्रीमी लेयर का ध्यान रखा जाएगा। यानि उन्हें आपको हटाना होगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि जातियों अपने पिछड़ेपन का सबूत भी देना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने आज इस प्रकरण पर जो सबसे अहम टिप्पणी की वह यह थी कि शिक्षा और नौकरी में कम प्रतिनिधित्व को आधार बनाया जा सकता हैं लेकिन संख्या को नहीं।
Big Picture with RKM: अब बात इस फैसले के परिणाम या प्रभाव पर करते हैं। फिलहाल देश की राजनीति के केंद्र में जातियों का मुद्दा छाया हुआ हैं। सत्तादल भाजपा और कांग्रेस के बीच जाति जनगणना को लेकर पहले ही सड़क से संसद तक बहस जारी है। लेकिन इसका प्रभाव आने वाले दिनों में होने वाले चुनावों और उनके परिणामों में देखने को मिलेगा। यानी महाराष्ट्र, झारखण्ड और हरियाणा और फिर बिहार में भी जहां अगले साल विधानसभा के चुनाव है। (How much will the latest reservation decision benefit BJP?) अहम बात यह भी हैं कि एससी और एसटी को मिल रहे आरक्षण के भीतर ही सरकारों को यह कोटा तय करना होगा। इसके लिए आरक्षण की सीमा को बढ़ाया नहीं जा सकेगा। लेकिन सवाल यही है कि क्या चुनावी लाभ लेने के लिए राजनीतिक दल या सत्ताधारी दल किसी निश्चित उप श्रेणियों को आरक्षण का लाभ देंगे यद्यपि कोर्ट ने इसके लिए अपने नियमों को साफ़ और स्पष्ट कर दिया है। लेकिन यह तय है कि भारत जैसे देश जहां जाति आधारित राजनीति होती रही हैं वहां अपने फायदे के लिए राजनीतिक दल इसका इस्तेमाल करेंगे। यह और बात हैं कि सियासी दलों के फैसले कोर्ट में जायेंगे यानि कानूनी फेर में पड़ेंगे लेकिन तब तक चुनाव भी हो चुके होंगे। तो इस तरह से राजनीतिक दलों को वोट बैंक की सियासत करने का एक और मौका मिल गया है।
दूसरा फैसला इलाहाबाद हाईकोर्ट की है जिसमें कहा गया कि मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर हिन्दू पक्ष की जो याचिकाएं है उन्हें सुनी जा सकती है। हालांकि मुस्लिम पक्ष ने एक बार फिर से 1991 पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम का हवाला देते हुए इसका विरोध किया। लेकिन कोर्ट ने यह स्वीकारा कि यह स्थल एएसआई द्वारा संरक्षित है और ऐसे में हिन्दू पक्ष के 18 याचिकाओं को सुना जाना चाहिए।
अब सवाल उठता हैं कि क्या कोर्ट के इस फैसले से भाजपा को किसी तरह का सियासी फायदा होगा? हम देखते हैं कि भाजपा के धर्म आधारित राजनीति में अयोध्या, मथुरा और वाराणसी में मंदिर निर्माण प्राथमिकताओं में रहा हैं। राम मंदिर निर्माण के बाद ‘अयोध्या तो झांकी हैं, काशी और मथुरा बाकी है’ जैसे नारे भी लगाए जाते रहे है। लेकिन इसके पीछे का बिग पिक्चर देखें तो मालूम चलता है कि काशी और मथुरा का मुद्दा अयोध्या से पूरी तरह अलग हैं। अयोध्या का राम मंदिर आंदोलन काफी पुराना था। यह सिर्फ आंदोलन नहीं बल्कि जन आंदोलन बन चुका था। भाजपा ने इसके लिए कई यात्रायें निकाली, मस्जिद ढहायें और इस पूरे मंदिर आंदोलन को जीवित रखा। हालांकि यह भी सत्य हैं कि मंदिर निर्माण के बाद आज बीजेपी अयोध्या हार चुकी है, फिर इसकी और भी कई वजहें हो लेकिन यह सत्य है।
Big Picture with RKM: इसी तरह का असर काशी यानी वाराणसी में देखने को मिला है। यहां भी मंदिर का सर्वे हो चुका है और लग रहा हैं कि संभवतः फैसला हिन्दूओं के पक्ष में आ सकता हैं लेकिन हमने पिछले चुनाव में यहां के चुनावी नतीजों को भी देखा कि किस तरह चार से पांच लाख के अंतर से जीत हासिल करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जीत का अंतर इस बार घटकर महज डेढ़ लाख ही रह गया। बात अगर मथुरा के श्री कृष्णजन्मभूमि का करें तो संभव हैं दोनों ही जगहों पर मंदिर के पक्ष में फैसले आ जाये लेकिन यह कह पाना काफी कठिन हैं कि इसका फायदा भाजपा को सीधे तौर पर बड़े पैमाने पर मिलें। (How much will the latest reservation decision benefit BJP?) ऐसा इसलिए भी क्योंकि आज के मतदाताओं के मुद्दे खुद के सरोकारों से जुड़े है। मंदिर-मस्जिद से अलग उनके अपने विषय इन मुद्दों से अधिक मायने रखते हैं। मसलन महंगाई, रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दे।
इसलिए अब काशी और मथुरा में मंदिर के मुद्दे अयोध्या राममंदिर के मुद्दे की तरह जन आंदोलन नहीं बन पाएंगे। यह मुद्दे सिर्फ न्यायलयों तक ही सीमित रहेंगे और पक्ष में फैले के बावजूद भाजपा इसे वोटबैंक के तौर पर इस्तेमाल नहीं कर पायेगी। क्योंकि आज मतदाता और जनता जागरूक हो चुकी है। वह उन्हें ही वोट करेगी जो उनके भले की सोचेगा, बेहतरी पर ध्यान देगा।