रायपुरः Discussion on NEET मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल को लेकर शुरू दिन से ही कयास लगाए जा रहे थे कि इस बार उनका कार्यकाल चुनौतीपूर्ण रहने वाला है। ऐसा ही कुछ इन दिनों देखने को मिल रहा है। 3.0 में मोदी सरकार पहले दिन से ही घिरी हुई नजर आ रही है। पहले नीट परीक्षा में गड़बड़ी का मुद्दा और अब फिर दिल्ली कैनोपी हादसे को लेकर विपक्ष सरकार को घेर रही है। सदन को स्थगित करना पड़ा, लेकिन नतीजा नहीं निकल पाया। अब सवाल ये है कि क्या NEET पर बात जरूरी है या फिर सियासत? आखिर चर्चा से कौन भाग रहा है?
Discussion on NEET पीएम मोदी के तीसरे कार्यकाल में कुछ तो बदला है। अब बीजेपी की पूर्ण बहुमत के साथ सरकार में नहीं है। घटक दलों के साथ मिलकर सरकार बनी है। उधर विपक्ष में कांग्रेस की सीटें बढ़कर डबल हो गई है। मोदी ने अपने पहले और दूसरे कार्यकाल में विपक्ष को बिल्कुल दरकिनार करके रखा हुआ था। एकक्षत्र उनका राज चल रहा था।पीएम मोदी ऐसा शासन फिर से चलाने की कोशिश करते नजर आ रहे हैं। उनका कहना है कि भाई कुछ नहीं बदला है। हमारी चाल-ढ़ाल नहीं बदली है। हम वैसे ही है। जनता ने हमें समर्थन दिया है और हम बहुमत में आए हैं। हम वैसे ही सरकार चला रहे हैं। लेकिन विपक्ष ये मानने को तैयार नहीं है। विपक्ष ने कहा कि ऐसी बात नहीं है। जनता ने हमें भी आवाज दी है। ज्यादा संख्या बल हमको दिया है। हम ज्यादा संख्या में पार्लियामेंट में आए हैं तो हमारी आवाज भी सुननी पड़ेगी। यही खींचतान हमको आजकल रोज दिखाई दे रही है कि दोनों पक्ष एक-दूसरे पर हावी होना चाहते हैं। आज की बात करें तो दो बड़े मुद्दे छाए रहे। पहला नीट पेपर लीक का और दूसरा दिल्ली एयरपोर्ट पर कैनोपी के धराशायी होने का। दोनों मुद्दों पर आज विपक्ष सत्ता पक्ष को घेरने की कोशिश की। नीट के पेपर लीक के ऊपर चर्चा की बात करें तो जब आज संसद बैठी तो विपक्ष ये चाहता था कि स्थगन प्रस्ताव के जरिए हमें नीट पेपर लीक मामले पर बोलने दिया जाए और सरकार उस पर पहले बहस कराएं। इस पर जब नेता प्रतिपक्ष गांधी ने बोलना शुरू किया तो स्पीकर ने उन्हें मना किया कि पहले राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के जरिए चर्चा करेंगे। उस बीच इस तरह के आरोप भी लगे कि राहुल गांधी का माइक बंद कर दिया गया। दूसरी तरफ संसदीय परंपरा के पीछे सरकार भी छिपती नजर आई। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पहले सेशन में ही होता है। कार्यवाही के दौरान इसी मसले पर खींचतान होती रही। आरोप-प्रत्यारोप का दौर चला। विपक्ष ने कहा कि हमारा माइक बंद कर दिया। ये जनता की आवाज को सुनना नहीं चाहते हैं। छात्रों के हित में बात नहीं करना चाहते हैं। सत्ता पक्ष कहता रहा कि हम हर बात का जवाब देना चाहते हैं। हम हर बात का जवाब देने को तैयार हैं। हम इस पर बहस करते हैं। हमने इस पर पूरी जांच प्रक्रिया चला रखी है। हालांकि ये सदन के बाहर हुआ। मेरे हिसाब से बेहतर यह होता कि जो नीट या अन्य पेपर लीक जैसे बच्चों का भविष्य जुड़े मुद्दों पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। बेहतर यह होता कि परंपरा के अनुसार धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा करने के बाद विपक्ष इस मुद्दे को उठाता। क्योंकि राष्ट्रपति ने भी अपने भाषण में इस बात का मेंशन किया था कि पेपर लीक की जांच कराई जा रही है। विपक्ष के पास यह मौका था। नीट के मुद्दे को पुरजोर से उठाते और इस पर शिक्षा मंत्री जवाब देते। नीट को लेकर सदन में चर्चा हो सकती थी, लेकिन यह होगा नहीं। क्योंकि सवाल तो राजनीति करने का है। नीट के मुद्दे पर चर्चा करने की मंशा तो किसी की नहीं है। मंशा तो राजनीति करने की है। एक-दूसरे के ऊपर आरोप-प्रत्यारोप करने की है। अगर आप छात्रों और जनता के हित में सोचते तो इसका हल निकल सकता था। लेकिन शुक्रवार को संसद में यह मसला एक बार फिर राजनीति की भेंट चढ़ गई। विपक्ष कह रहा है कि हम सवाल उठा रहे हैं और सरकार की ओर से जवाब आ रहा है कि हम उत्तर देने को तैयार है। इससे हुआ कुछ नहीं हुआ और संसद को एक जुलाई तक स्थगित करना पड़ा।
दूसरे मुद्दें की बात करें तो दिल्ली एयरपोर्ट में कैनोपी का मामला छाया रहा। यह केवल एक घटनाक्रम हो सकता है। बीतें दिनों मध्यप्रदेश के जबलपुर से ऐसा ही एक मामला सामने आया था। चुनाव से डूमना एयरपोर्ट पर भी कैनोपी गिर गई थी। वहां दो कारें दब गई थी। अयोध्या से भी ऐसी ही तस्वीरें आई है, जहां एक नई रोड धंस गई। रामलला के मंदिर में भी पानी रिसने की खबरें आई। बिहार में पिछले चार हफ्तों में करीब चार पुल तो ढह गए। वहां भी एनडीए की सरकार है। दिल्ली का मामला मोदी के दावों के कारण बड़ा लग रहा है। क्योंकि पीएम मोदी कहते हैं कि मेरी सरकार में कोई करप्शन नहीं है। मेरी सरकार में जनता का पैसा जनता की सेवा के लिए लग रहा है और हर चीज क्वालिटी से हो रही है। जब सरकार की ओर से क्रप्शन नहीं होने की छवि बनाई जाती है और इस तरह की घटना होती है तो फिर यह आरोप ज्यादा जोर से चिपकते हैं। इसके साथ ही परेशानी का सबब भी बनता है। इस दौरान निर्माण का समय मायने नहीं रखता है कि यह दूसरी सरकार थी। 15 साल पहले बनी थी। आज सरकार आपकी है तो ये आरोप आपके उपर ही लगेगा। इस तरीके का नैरेटिव विपक्ष बनाने में सफल हो गया। इन सभी चीजों को देखकर लगता है कि इस बार मोदी सरकार की राह आसान नहीं है। उन्हें पूरी हर चीजों का जवाब देना पड़ेगा। उनकी जवाबदेही मांगी जाएगी। इन आरोपों से कैसे बचे इस पर भी मोदी और बीजेपी को सोचना पड़ेगा। क्योंकि पिछले 10 सालों जैसी स्थिति नहीं है कि आप पूरी तरीके से बहुमत में है और विपक्ष आपका कमजोर है। अब स्थिति बदल गई है। संसद का चरित्र और चेहरा बदल गया है और उसके अनुरूप मोदी सरकार को अपने को ढालना पड़ेगा।
इधर, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में सरकारों ने वर्षों से चली आ रही गंभीर समस्याओं पर एक बोल्ड स्टेप्स ली हैं। छत्तीसगढ़ में सीएम साय ने यूनिफाइड कमांड की बैठक ली, तो दूसरी तरफ मध्यप्रदेश सरकार पेपर लीक और नकल के खिलाफ नए कानून लाने की तैयारी कर रही है। सरकारों के नो टॉलरेंस मैसेज के मायनों की बात करें तो पिछले कुछ दिनों से दोनो राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने लगातार दिल्ली दौरे पर गए हैं और बड़े नेताओं से मिले हैं। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव तो केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से दो बार मिल चुके हैं। इससे समझ में आ रहा है कि दोनों राज्यों के जरिए बीजेपी अन्य प्रदेशों के लिए उदाहरण पेश करने के मूड में हैं। जिन राज्यों में बीजेपी को अच्छा बहुमत मिला और उसकी पूरी मजबूती की सरकार है, वहां पर उसको ऐसे काम करके दिखाने हैं, जो दूसरे राज्यों के लिए उदाहरण बने। खासकर उन राज्यों के लिए जहां आने वाले दिनों में विधानसभा चुनाव होने हैं। बीजेपी वहां यह कह सकें कि जहां पर उनकी सरकार होती है वहां पर हम काम करके दिखाते हैं। जैसे कि छत्तीसगढ़ में बीजेपी सरकार टारगेट लेकर चल रही है कि 3 साल में नक्सलवाद को खत्म कर देंगे। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री साय भी ये बात कह चुके हैं। इसका क्रियान्वयन हम देख भी रहे हैं कि लगभग 6 महीनों में 150 नक्सलियों का सफाया किया गया। हालांकि हमारे जवानों को भी इस दौरान नुकसान पहुंचा है। आज हुई यूनिफाइड कमांड की बैठक से ऐसा लगता है कि नक्सवाद के खात्मे को लेकर सेट टारगेट को कैसे अचीव किया जाए, इस पर योजना बनाई गई होगी। इसी तरह चुनाव के बाद राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके पेपर लीक और नीट के संदर्भ में भाजपा सरकार पर यह आरोप लगाया था कि मोदी सरकार मध्यप्रदेश के व्यापम मॉडल को सरकार पूरे देश में लागू करना चाह रही है। यही वजह है कि मध्यप्रदेश में सरकार ने यह घोषणा की कि हम पेपर लीक को रोकने के लिए कानून ला रहे हैं। इस तरह की गड़बड़ियों में एक करोड़ का जुर्माना और 10 साल की जेल का प्रावधान किया गया है। इससे लगता है कि सभी बीजेपी शासित राज्यों को हाईकमान की ओर से ऐसा कहा गया है कि आप उत्तर प्रदेश की तरह पेपर लीक जैसे विषयों के लिए नियम कानून लाइए। ताकि लोगों के मन में डर फैले और इस तरह का कृत्य ना करे। साथ ही मध्यप्रदेश व्यापमं पर लगे दाग हट जाए। राज्य सरकारों के साथ अगर मिलके केंद्र सरकार ऐसा काम कर रही है तो उसको अपने केंद्र में भी देखना पड़ेगा कि जो नैरेटिव उसके खिलाफ खड़े हो रहे हैं या जो उसकी साख पर जो बट्टा लगाया जा रहा है उससे वो कैसे बाहर निकलें।