Big Picture With RKM: ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ से मजबूत होगा भारत का लोकतंत्र या सिर्फ एक सियासी दांव?.. आखिर क्या होगा इसका राजनीतिक प्रभाव?, देखें बिग पिक्चर..

हम देखते हैं कि, निर्वाचन आयोग के दिशानिर्देशों के मुताबिक़ प्रशासनिक अधिकारी और देश के अर्धसैन्य सुरक्षा बल चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न कराते हैं लिहाजा इन पर निर्वाचन संबंधी दबाव हमेशा बना रहता है।

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  • Publish Date - September 18, 2024 / 11:54 PM IST,
    Updated On - September 18, 2024 / 11:54 PM IST

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Big Picture With RKM: रायपुर। वन नेशन वन इलेक्शन पर कैबिनेट के प्रस्ताव से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक सपना या कहे भाजपा का एक एजेंडा पूरा होने की दिशा में आगे बढ़ा है। हालांकि एक राष्ट्र, एक चुनाव पर कानून और नियम बनाने की कवायद काफी पुरानी है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में कमेटी बनाई गई थी जिन्होंने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। (What impact will One Nation One Election have on Indian politics?) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लालकिले के प्राचीर से भी अपने इस वादे का जिक्र किया था जबकि अपने तीसरे कार्यकाल के सौ दिन पूरे होने पर भी वन नेशन वन इलेक्शन को लागू करने की अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की थी। आज कैबिनेट ने भी इस फैसले पर अपनी मुहर लगा दी है।

बात करें इस कानून के चरणों की तो कैबिनेट में पास होना इसका सबसे आसान चरण था, जबकि इस कानून के मूर्त रूप लेने की असल प्रक्रिया अब शुरू होने वाली है। क्योंकि वन नेशन, वन इलेक्शन के कानून बनने और इसे देश में लागू करने में अभी बहुत सी बाधाएं है। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि प्रधानमंत्री मोदी या उनकी केंद्र की सरकार इन बाधाओं को कैसे पार करती है? हालांकि भाजपा सरकार के पास बहुमत हैं लेकिन यह संवैधानिक संशोधन होगा लिहाजा, कुछ राज्यों की अनुमति भी जरूरी होगी। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी ने 2029 तक इसे व्यवहार में लाने की जो योजना बनाई है वह कैसे पूरा होता हैं, यह देखना दिलचस्प होगा।

‘वन नेशन वन इलेक्शन’ क्या बदलाव लायेगा?

हमारा मानना है कि एक राष्ट्र एक चुनाव, एक बेहतर कदम हैं। ये देश और देश के लोकतंत्र को आगे ले जाना वाला कदम है। इसे देश में जरूर लागू होना चाहिए। क्योंकि ऐसा भी नहीं है कि यह देश के लिए कोई नई चीज हैं। आजादी के बाद हुए चुनाव से लेकर 1967 तक ऐसा होता भी आया है। लेकिन उसके बाद कई कारणों से यह चैन टूट गया और चुनाव अलग-अलग तारीखों में होने लगे। (What impact will One Nation One Election have on Indian politics?) हालांकि जो समस्याएं तब थी वह अब भी है लेकिन संसद में बिल पास होने, इस बिल पर बहस होने और यदि नई कमेटी का गठन होता है उनके द्वारा इन समस्यायों का समाधान ढूंढा जाएगा। लेकिन सवाल आखिर में यही है कि इससे किस तरह का प्रभाव देखने को मिलेगा?

वन नेशन वन इलेक्शन का आर्थिक प्रभाव

हम जो प्रहला प्रभाव देखते है वह हैं आर्थिक बचत का। एक अनुमान के मुताबिक़ 2024 में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव के लिए करीब 1 लाख करोड़ रुपये खर्च किया गया। वही कई अनुमान तो इससे भी ज्यादा है। इसी तरह का खर्च लोकसभा से पहले हुए चार राज्यों के विधानसभा के चुनावों में हुए जबकि अभी जिन दो राज्यों में चुनाव हो रहे है वहां भी इस तरह के खर्च शामिल होंगे। इनमें निर्वाचन आयोग का खर्च, पार्टियों के प्रचार, प्रशासनिक व्यवस्था का खर्च, सुरक्षाबलों को एक जगह से दूसरे जगह भेजने जैसे व्यय शामिल है। तो ऐसे में अगर लोकसभा और राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव एक साथ होते हैं तो सरकार पर बढ़ने वाला यह खर्च और कर्ज से बचा जा सकेगा।

आदर्श आचार संहिता एक बड़ी रूकावट

सरकार के कामकाज, उनकी योजनाओं को लागू करने या फिर जनकल्याण से जुड़े नए फैसले लेने के बीच आदर्श आचार संहिता एक बड़ी बाधा मानी जाती रही है। हमने देखा है कि पिछ्ले साल मध्यप्रदेश समेत चार राज्यों के विधानसभा चुनाव संपन्न हुए थे। इसके लिए सितम्बर 2023 में आदर्श आचार संहिता प्रभावी हुई जो कि तीन महीनों तक जारी रही। इस आचार संहिता के शिथिल होते ही लोकसभा के चुनाव सामने आ गए और मार्च-अप्रैल में फिर से एक बाद आचार संहिता प्रभावी हो गया। इससे सरकारों के कामकाज ठप्प पड़ गए। (What impact will One Nation One Election have on Indian politics?) हालंकि आदर्श अचार संहिता के दौरान अन्य काम जारी रहते है, सिर्फ नए निर्णय नहीं लिए जा सकते। लेकिन जब सरकार ही नई हो तो उन्हें हर हाल में नए निर्णय लेने होते है। इस तरह सबसे बड़ी रूकावट आदर्श आचार संहिता की ही होती हैं। सरकारें जो बड़े-बड़े वादे कर चुनाव जीतती है और सत्ता में आती है, वह फैसले नहीं ले पाते तो एक राष्ट्र, एक चुनाव के लागू होने से देश में बार-बार प्रभावी होने वाले चुनावी आदर्श आचार संहिता से सरकारों, सरकारी कर्मचारियों और आमजनों को बड़ी राहत मिलेगी।

प्रशासन और सुरक्षा बलों पर बड़ा दबाव

हम देखते हैं कि, निर्वाचन आयोग के दिशानिर्देशों के मुताबिक़ प्रशासनिक अधिकारी और देश के अर्धसैन्य सुरक्षा बल चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न कराते हैं लिहाजा इन पर निर्वाचन संबंधी दबाव हमेशा बना रहता है। निर्वाचन के लिए एक राज्य से दूसरे राज्यों में अफसरों को विभिन्न जिम्मेदारियों के साथ भेजा जाता है। उनकी ट्रेनिंग होती हैं। इसी तरह सुरक्षा के लिए भी बड़ी संख्या में सैन्य बलों को एक जगह से दूसरी जगह भेजा जाता है जिसका दबाव उनपर हमेशा बना रहता हैं। ऐसे में अगर देश में वन नेशन, वन इलेक्शन लागू होता है तो प्रशासन और सुरक्षा बलों पर भी दबाव पूरी तरह से सिमट कर रह जाएगा या कहे ख़त्म हो जाएगा।

राजनीतिक माहौल में सुचिता, स्वच्छता

भारत के संबंध में अक्सर कहा जाता है कि देश हमेशा चुनावी मोड में रहता है और यह सच भी हैं। पिछले साल के सितम्बर से लेकर दिसंबर तक छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना में चुनाव हुए। इसके बाद अप्रैल से लेकर जून तक देशभर में लोकसभा के चुनाव हुए। अभी जम्मू-कश्मीर और हरियाणा के चुनाव हो रहे हैं। नवंबर में झारखंड और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं जबकि जनवरी फरवरी में दिल्ली राज्य में चुनाव होंगे। (What impact will One Nation One Election have on Indian politics?) तो इस तरह भारत का राजनैतिक माहौल पूरे साल चुनावी रहता हैं। नेता प्रचार-प्रसार के दौरान भड़काऊं बयानबाजी करते है, अनर्गल प्रलाप होते है। विकास कार्य और जनकल्याण के कामों से अलग नेता, मंत्री आरोप-प्रत्यारोपों में उलझे रहते है और इन सब में जो चीज पीछे छूट जाता हैं वह है देश का विकास। ऐसे में अगर पूरे देश में सभी चुनाव एक साथ होते हैं तो राजनीतिक माहौल में भी स्वच्छता बनी रहेगी। नेता, मंत्री अपने जिम्मेदारियों में व्यस्त रहेंगे न कि चुनावी और पार्टियों के कामकाज में।

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