Big Picture With RKM: रायपुर: हरियाणा चुनाव को लेकर दावा किया जा रहा हैं कि वहां इस बार कांग्रेस की लहर है और भाजपा के खिलाफ एंटी इंकम्बेंसी हैं। भाजपा की सत्ता से विदाई हो रही है और कांग्रेस हरियाणा चुनाव में वापसी कर रहे है। हालांकि ऐसा नहीं है। (How will the factional Congress form the government in Haryana?) मीडिया रिपोर्ट और स्थानीय स्तर पर सक्रिय लोगों से बातचीत से पता चलता है कि हरियाणा का यह विधानसभा चुनाव एकतरफा नहीं है। ऐसा दावा भी पूरी तरह सही नहीं है कि हरियाणा में कांग्रेस जीतकर ही लौटेगी।
दरअसल हम पिछले कुछ चुनाव और नतीजों पर नजर डाले तो पहले भी इस तरह के हालात देखने को मिलते रहे है। बात अगर छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और उत्तराखंड की करें तो यहां भी माना जा रहा था कि कांग्रेस वापसी करेगी लेकिन जब चुनावी परिणाम आये तो यह सभी दावे फेल हो गए और भाजपा ने ज्यादा सीटों के साथ चुनावों में जीत हासिल की। बहरहाल कल यानि शनिवार को हरियाणा में मतदान है और नतीजे 8 को घोषित होंगे और तभी आखिरी नतीजे भी सामने होंगे।
हरियाणा के चुनावी समीकरण को नजदीक से देखे तो कहा जाता है कि राज्य में 32 बिरादरियां चुनावों को प्रभावित करती है। चुनाव जीतने वाली पार्टियों को इन बिरादरियों का ज्यादा से ज्यादा समर्थन हासिल होता है। इन्ही बिरादरी में एक हैं जाटों की। हरियाणा में जाटों की संख्या सबसे ज्यादा है और यही वजह हैं कि हरियाणा को जाटलैंड भी कहा जाता है। इस बार के चुनाव में जाटों का समर्थन कांग्रेस को मिलता हुआ दिखाई पड़ रहा है। इसलिए यह धारणा बन गई है कि कांग्रेस हरियाणा में सफलता हासिल करेगी। खुद कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा ने दावा किया है कि उन्हें जाटों का समर्थन हासिल है। लेकिन असली खेल यही हो रहा है। (How will the factional Congress form the government in Haryana?) जाटों के अलावा दूसरी बिरादरियों ने मौन धर लिया है। उन्होंने अबतक अपने पत्ते नहीं खोले है। अब कल जब मतदान होगा तो देखना दिलचस्प होगा कि जाटों के अलावा अन्य बिरादरी के वोटरों ने किसे अपना समर्थन दिया है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि यह वोट भाजपा के पक्ष में जाये। पिछले 10 सालों से सरकार में मौजूद बीजेपी के खिलाफ भी हरियाणा के वोटरों में नाराजगी है। इस नाराजगी को कांग्रेस ने बेहतर तरीके से भुनाया भी है। भाजपा के भीतर आपसी खींचतान भी देखा जा रहा है। अनिल विज खुद को अगले सीएम के तौर पर पेश कर रहे है तो इसी तरह सीटों के बंटवारे पर भी असहमति देखी गई है। लेकिन खबर यही है कि भाजपा को एक बड़े जनसमूह का समर्थन मिल रहा है।
अब बात अगर कांग्रेस की करें तो वहां भी विचित्र किस्म की स्थिति है। कांग्रेस यहां भारी गुटबाजी से जूझ रही है। इनमें पहला गुट है पूर्व सीएम भूपिंदर सिंह हुड्डा का है जो आगे बढ़कर इस चुनावी कमान को संभाले हुए है। वे प्रियंका गांधी के करीबी है। दूसरा गुट कुमारी सैलजा का है जो सोनिया गांधी की करीबी मानी जाते है। हमने अक्सर सोनिया गांधी के साथ सैलजा को देखा है। वह उनके साथ राजीव गांधी के दौर से है। खुद राजीव गांधी ने कुमारी सैलजा को सियासत में उतारा था। दलित समाज की कद्दावर नेत्री कुमार सैलजा पूर्ववर्ती नरसिम्हा राव की सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रह चुकी है। लेकिन इस बार उनकी नाराजगी भी दिखाई देती रही है। तीसरा और अंतिम गुट रणदीप सुरजेवाला का है जो कि राहुल गांधी के करीबी है। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि इस गुटबाजी का कांग्रेस और इस चुनाव पर कितना असर पड़ता है।
इसके अलावा हरियाणा में कई छोटी पार्टियां भी है जो कांग्रेस से गठबंधन के बजाये अकेले ही चुनाव लड़ रही है। इनमे आम आदमी पार्टी प्रमुख है। या फिर चौटाला की पार्टी या मायावती की बसपा जो चुनावी उम्मीदवारों के साथ ताल ठोंक रहे है। (How will the factional Congress form the government in Haryana?) तो संभव है कि यह वोट कटवा पार्टी कई विधानसभा सीटों पर नतीजों को प्रभावित करे। तो ऐसे में यह धारणा आखिरी नहीं है कि हरियाणा में कांग्रेस जीत रही है। यहां के परिणाम कुछ भी हो सकते है। यह हमें आठ अक्टूबर को ही देखें को मिलेंगे।