रायपुरः Analysis of Rahul Gandhi’s speech 18वीं लोकसभा के गठन के बाद ससंद के पहले सत्र के छठवें दिन राष्ट्रपति के अभिभाषण को लेकर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा की गई। नेता प्रतिपक्ष चुने जाने के बाद राहुल गांधी ने जोरदार भाषण दिया। उन्होंने सबसे पहले संविधान की कॉपी लेकर भाषण की शुरुआत की और कई मुद्दों पर सरकार को घेरने की कोशिश की। राहुल गांधी के इस आक्रमक तेवर का जवाब पीएम मोदी को खुद देना पड़ा। इतना ही सरकार के कई मंत्री भी उन्हें जवाब देने के लिए खड़े हुए। राहुल के बयान को लेकर जमकर गहमागहमी की स्थिति भी बनी। तो चलिए समझते हैं इसके मायने क्या हैं?
Analysis of Rahul Gandhi’s speech सोमवार को सदन में जिस तरीके से राहुल गांधी ने भगवान शिव की फोटो लेके अपने भाषण की शुरुआत की और एक-एक करके मुद्दों को उठाया। राहुल गांधी के आज के भाषण को अंग्रेजी की मशहूर कहावत ‘बुल इन ए चाइना शॉप’ के जरिए समझ सकते हैं। वैसे तो इसका एक नेगेटिव मतलब भी होता है, लेकिन राहुल के भाषण के जरिए समझते हैं तो इसका मतलब A person who breaks things हो सकता है। राहुल गांधी ने लगातार कई मुद्दों को उठाया। इस दौरान उन्होंने संसद की कई परंपराओं को दरकिनार कर दिया। इसके बाद सत्ता पक्ष के कई सांसदों ने उन्हें रूलबुक गिनाई। स्पीकर ने भी कहा कि आप रूल बुक का पालन कीजिए। आप तो इसी की बात करते हैं। इन सभी चीजों को दरकिनार करते हुए मानो राहुल गांधी ने ये कह रहे थे कि आज तो मैं अपनी बात बोलूंगा। मैं पहली बार नेता प्रतिपक्ष बना हूं और अपनी बात मैं कहकर रहूंगा। उन्होंने संसदीय परंपरा की धज्जियां उड़ा दी। अभी तक वह बैक बेंचर थे। दूसरे शब्दों में कहे तो दूसरी या तीसरी लाइन के बेंच पर रह के बोलते रहे हैं, लेकिन नेता प्रतिपक्ष के बाद अब उनकी जगह बदल गई है और फ्रंट लाइन में आ गए हैं। मैं 30 साल से लगभग संसद को देख रहा हूं। संसद मैंने कवर भी किए। संसद के अंदर मैंने कार्यवाही देखी है और वहां की परंपराओं से भी वाकिफ भी हूं। संसद को लोकतंत्र का सबसे बड़ा मंदिर कहा जाता है। जैसे हम लोग मंदिरों में जाने से पहले कुछ नियमों का पालन करते हैं, ठीक उसी तरह संसद के लिए भी कुछ नियम बनाए गए हैं। कुछ परंपराएं बनी है। सोमवार को राहुल गांधी ने इन परंपराओं को दरकिनार कर दिया। भाषण के दौरान राहुल गांधी स्पीकर की तरफ अपनी पीठ करके सदस्यों को सीधी बात कर रहे थे। उन्हें अन्य सांसदों ने टोका भी, लेकिन वे अंत तक तक इस बात को नहीं माने। एक सांसद होने के नाते मर्यादाओं का पालन करना जरूरी होता है। आप अपनी बात भी रखें और जिन लोगों के बारे में बात कर रहे हैं, उनके साथ अच्छा व्यवहार करें। किसी भी ऐसे व्यक्ति का नाम ना लें, जो संसद में मौजूद ना हो या फिर जो भी आप आरोप लगा रहे हैं, उनके सबूत या उनके रिफरेंस आपके पास हो। मतलब आपका विचार अच्छा होना चाहिए। सोमवार को संसद में दिए गए उनका भाषण अब तक सबसे लंबा भाषण है। इससे पहले वे संसद में इतने लंबे समय तक कभी नहीं बोले हैं। उन्होंने अपनी सभी बातें पूरे जोश के साथ कहीं। वे स्पीकर और अन्य सांसदों के रोक-टोंक के बाद भी लंबे समय तक बोलते रहे। इसका मतलब होता है कि बुल इन चाइना शॉप। ये कहावत राहुल गांधी के भाषण पर सटीक बैठती है।
अगर हम उनके भाषण की समीक्षा करें तो उनके भाषण को कुछ पैरामीटर्स पर रखे जा सकते हैं। सबसे पहले बात तो यह है कि राहुल गांधी को अब यह समझना चाहिए कि चुनाव खत्म हो चुके हैं। अब सरकार बन चुकी है। वह विपक्ष के नेता बन चुके हैं तो भाषण चुनावी नहीं होना चाहिए। आज का उनका भाषण संसदीय नहीं, बल्कि चुनावी भाषण ज्यादा लगा। संसद या फिर विपक्ष के नेता जैसा उनका भाषण नजर नहीं आया। इसे कुछ पैरामीटर्स के जरिए समझते हैं:-
01. एग्रेशनः सोमवार को सदन में उनका व्यवहार बिल्कुल एग्रेसिव था। हमेशा से वे एग्रेसिव रहे हैं। चूंकि विपक्ष का संख्या बल बड़ा है तो यह आत्मविश्वास उनके अपने भाषण में दिखा। लेकिन मेरा यह मानना है कि अगर कंट्रोल्ड एग्रेशन होगा तो ज्यादा बेहतर होगा। एग्रेसिव होना चाहिए, बिल्कुल अपनी बात पूरी पूरजोर तरीके से रखनी चाहिए। जोश के साथ रखनी चाहिए, लेकिन एक कंस्ट्रक्टिव एग्रेशन होना चाहिए। जिस तरीके का राहुल ने आज एग्रेशन दिखाया, वह थोड़ा नियम-कानून को फॉलो करता हुआ नहीं दिखा। मुझे लगता है कि पहला भाषण है। आगे वे सीख जाएंगे।
02. कंटेंट : संसद में दिए गए उनके भाषण के कंटेट की बात करें तो आज के भाषण में राहुल गांधी ने कुछ मुद्दों को बेहतरीन ढंग से उठाया। राहुल के बारे में हमने अक्सर सुना है कि कुछ भी बोल के चले जाते हैं। आज ये वाली बात नहीं दिखी। उन्होंने बहुत जरूरी मुद्दों को उठाया। चाहे वह नीट एग्जाम या पेपर लीक होने की बात हो या फिर बेरोजगारी और महंगाई की बात हो। उन्होंने कुछ बातें किसानों के लिए भी कही। यह बहुत सही था। विपक्ष का काम ही यही है कि इन मुद्दों को पुरजोर तरीके से, पूरी मजबूती के साथ संसद में उठाएं और सरकार से जवाब मांगें। यह काम राहुल गांधी ने आज भली-भांति किया, लेकिन कुछ मुद्दे उन्होंने बेवजह उठाए, जिनका कोई मतलब नहीं था। जिनको संसद में बोलने की कोई जरूरत नहीं थी। कुछ लोगों के ऊपर उन्होंने पर्सनल अटैक करने की कोशिश की, जिसकी जरूरत नहीं थी। हालांकि राहुल गांधी बीजेपी को चिढ़ाने में सफल हो गए। हमने देखा कि खुद प्रधानमंत्री और उनके पांच-पांच मंत्रियों को पलटवार के लिए उठना पड़ा। राहुल गांधी जब बोल रहे थे, तो उसका तुरंत वहीं पर जवाब देना पड़ा या फैक्ट चेक करना पड़ा। कुल मिलाकर यह कहे कि राहुल अपने इस मकसद में कामयाब रहे कि अगर वे सरकार को परेशान करने के लिए सोच के आए थे वे इसमें सफलता हासिल कर ली।
03. सत्यताः अब उनके भाषण में सत्यता की भी बात कर लेते हैं। जब पार्लियामेंट में कोई सांसद या नेता भाषण देता है तो उसका सबूत या फिर कोई रेफरेंस पेश करना पड़ता है और और इस बात का हल्ला भी हो रहा है। अमित शाह ने भी राहुल गांधी को कहा कि आप अपने आरोपों को सत्यापित करें। उसके बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस भी की। यह खबर भी आई कि कि शाह इसी मसले को लेकर स्पीकर से भी मुलाकात की। अग्निवीर, किसानों की आय सहित कई ऐसे मुद्दे थे, जिनकी सत्यता की पुष्टि वे नहीं कर पाए। अग्निवीर योजना पर राहुल गांधी को स्पीकर कह सकते हैं कि भाई आप अपनी बात को स्थापित करिए, नहीं तो रिकार्ड ये यह बात हटाई जा सकती है, लेकिन अब कुछ नहीं होने वाला है। राहुल को जो बोलना था बोल गए, जो उनको इफेक्ट क्रिएट करना था वह उन्होंने कर दिया। अगर यह कहूं कि आज पूरे संसद को हिलाने में कामयाब रहे तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। उन्होंने अपनी बातों से विपक्ष में जोश भरा। बीजेपी को परेशान किया। उनके मंत्रियों को यहां तक कि प्रधानमंत्री को उठकर बार-बार इंटरफेयर करना पड़ा। अमित शाह जैसे नेता को स्पीकर से संरक्षण मांगना पड़ गया। अभी तो यह तो शुरुआत है, अभी तो बीजेपी के पास भी अपने दिग्गज नेता हैं उनको भी बोलने का मौका मिलेगा। अब यह देखना होगा कि वह राहुल गांधी के इस भाषण की क्या काट लेकर आते हैं। क्योंकि कल प्रधानमंत्री का भी भाषण होना है।
सदन में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने अपनी स्पीच में हिंदुओं को लेकर एक टिप्पणी भी की, जिसे लेकर अब सियासत गर्म हो गई है। हालांकि यह निशाना बीजेपी पर था, लेकिन क्या यह विपक्ष के लिए सेल्फ गोल तो नहीं है? दरअसल, राहुल के हिंदू वाली बात को हवा प्रधानमंत्री मोदी ने खुद दी। उन्होंने खुद होकर कहा कि पूरे हिंदू समाज को हिंसक कहना राहुल गांधी को शोभा नहीं देता है। अब इसके ऊपर राजनीति शुरू हो गई है। मेरा मानना है कि राहुल गांधी को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उन्हें कोई भी ऐसी बात नहीं करनी चाहिए, जिससे कि वह बीजेपी की पिच पर खेलते दिखें। हिंदुत्व, धर्म, शिव भगवान की तस्वीर दिखाने जैसी बातें बीजेपी की पिच है। इस पर राहुल गांधी को नहीं खेलना चाहिए। राहुल गांधी को अपनी बात कहना चाहिए। वे अपनी बात बेहतर तरीके से कह सकते हैं। आज राहुल गांधी ने इसे दिखाया। कई बातें उन्होंने बहुत अच्छे तरीके से रखी, लेकिन यहां वे चुक गए। हिंदूत्व की बात को बीजेपी ले उड़ी और आप उनकी पिच पर चले गए और अबउन्होंने एक नैरेटिव बनाना शुरू कर दिया है। इस पूरे मसले को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस भी हुई। भाजपा की सभी संस्थाओं के साथ मुख्यमंत्रियों ने यह बयान दिया कि राहुल गांधी हिंदुओं को बुरा बोल रहे हैं। हिंदुओं को हिंसक बोल रहे हैं। इस तरीके से एक नैरेटिव बीजेपी ने बनाना शुरू कर दिया। राहुल गांधी को बीजेपी की पिच पर कूदने की कोई जरूरत नहीं है। राहुल गांधी, कांग्रेस और विपक्ष को अपनी बात मजबूती से रखना चाहिए, लेकिन बीजेपी की पिच पर नहीं खेलें। अगर आप बीजेपी की पिच पर खेलने चले गए तो फिर आपकी मात होना निश्चित मानिए। ऐसा होता दिखा भी है। शाम होते-होते इंदौर में भी कई सारे लोगों ने विरोध सड़क पर उतरकर विरोध जताया और ये जल्दी ये उसका पीछा नहीं छोड़ने वाली है।