नई दिल्ली। World Diabetes Day: आज के दौर में गलत खान-पान की वजह से लोग कई तरह की बीमारियों से घिरे हुए हैं। इन सबसे परेशान करने वाली बीमारी है डायबिटीज। यह एक ऐसी बीमारी है जिससे आज कल हर घर में देखने को मिलती है। डायबिटीज की चपेट में आने के पीछे कई आमतौर पर कई कारण होते हैं, जिसमें लाइफ-स्टाइल सबसे जरूरी पहलू है। कई बार अनुवांशिक लक्षणों के कारण भी ये बीमारी लोगों को हो जाती है। सही दिनचर्या, व्यायाम और बेहतर खान-पान न हो पाने के कारण डायबिटीज लोगों के बीच घर बना रही है। वहीं पिछले तीन दशकों में मरीजों की संख्या दोगुनी हो गई है।
एक नए अध्ययन के अनुसार, पिछले 30 सालों में दुनिया भर में डायबिटीज के मरीजों की संख्या दोगुनी हो गई है। ‘द लैंसेट ‘ में प्रकाशित इस अध्ययन के अनुसार, 2022 में वयस्कों में डायबिटीज का आंकड़ा 14 फीसदी तक पहुंच गया, जो 1990 में 7 फीसदी था। आज करीब 80 करोड़ लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं। यह वृद्धि खासकर कम और मध्यम आय वाले देशों में अधिक देखी गई है, जहां इलाज के लिए सुविधाओं की कमी है।
यह अध्ययन ‘एनसीडी रिस्क फैक्टर कोलैबोरेशन’ और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सहयोग से किया गया है। इसमें बताया गया है कि जहां अमीरी है, वहां इसका प्रसार कम हो रहा है। इस अध्ययन में 1,000 से ज्यादा पुराने अध्ययनों का विश्लेषण किया गया है, जिनमें 14 करोड़ से ज्यादा लोगों के आंकड़े शामिल हैं।
डायबिटीज में इतनी बढ़ोतरी मुख्य रूप से जीवनशैली में बदलावों के कारण हो रही है। अधिकतर मामलों में टाइप-2 डायबिटीज पाया गया है, जो मोटापा, खराब खानपान और शारीरिक गतिविधियों की कमी से जुड़ा हुआ है। टाइप-1 डायबिटीज, जो आमतौर पर कम उम्र में होता है, ठीक होना ज्यादा मुश्किल होता है क्योंकि इसमें शरीर में इंसुलिन की कमी हो जाती है। वहीं, टाइप-2 डायबिटीज आमतौर पर मध्यम उम्र या वृद्ध लोगों में होती है। पिछले अध्ययनों में चेतावनी दी गई थी कि 2050 तक 130 करोड़ से ज्यादा लोग डायबिटीज का शिकार हो सकते हैं।
रिपोर्ट कहती है, “डायबिटीज का बोझ और इलाज की कमी, कम आय वाले देशों में ज्यादा है।” इस स्थिति से गरीब और अमीर देशों के बीच स्वास्थ्य में अंतर और भी गहरा हो गया है, जिससे लाखों लोग गंभीर जटिलताओं और असमय मौत के खतरे में हैं।
30 साल और उससे अधिक उम्र के वयस्कों में से 59 फीसदी यानी लगभग 44.5 करोड़ लोगों को 2022 में डायबिटीज का कोई इलाज नहीं मिला। सब-सहारा अफ्रीका में तो केवल 5 से 10 फीसदी लोगों का ही इलाज हो पा रहा है। कैमरून की याउंडे यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ज्याँ क्लॉउद मबान्या ने कहा, “इससे गंभीर स्वास्थ्य जटिलताओं का खतरा बढ़ जाता है।”
उन्होंने बताया कि, इलाज की कमी सिर्फ आंकड़ों तक सीमित नहीं है। इससे लोगों की सेहत पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। बिना इलाज के डायबिटीज से दिल की बीमारियां, किडनी की समस्या, नसों में खराबी, दृष्टि में कमी और कई मामलों में अंग खराब होने का खतरा बढ़ जाता है। भारत में इसका सबसे बड़ा असर देखा गया है। दुनिया में जिन लोगों को इलाज नहीं मिला, उनके करीब एक तिहाई यानी 14 करोड़ से ज्यादा लोग भारत में रहते हैं. पाकिस्तान में भी लगभग एक तिहाई महिलाएं अब डायबिटीज की शिकार हैं, जबकि 1990 में यह आंकड़ा 10 फीसदी से भी कम था।
अध्ययन के लेखकों ने मोटापे और खानपान को टाइप-2 डायबिटीज का मुख्य कारण बताया। यह समस्या विशेष रूप से उन देशों में गंभीर है जहां तेजी से शहरीकरण और आर्थिक विकास के चलते खानपान और दिनचर्या में बदलाव हुआ है। महिलाओं पर इसका असर बहुत ज्यादा हो रहा है।
अध्ययन ने डायबिटीज का पता लगाने के लिए दो तरह की जांच की – फास्टिंग प्लाज्मा ग्लूकोज स्तर और ग्लाइकेटेड हीमोग्लोबिन परीक्षण। इससे सुनिश्चित किया गया कि दक्षिण एशिया जैसे क्षेत्रों में मामले छूटे न रहें, जहां सिर्फ ग्लूकोज टेस्ट के आधार पर निदान में कमी रह सकती है। इसके विपरीत, कुछ विकसित देशों ने डायबिटीज के मामलों में स्थिरता या गिरावट दर्ज की है। जापान, कनाडा, फ्रांस और डेनमार्क जैसे देशों में डायबिटीज के प्रसार में कम वृद्धि देखी गई है। इन देशों ने इलाज में भी प्रगति की है, जिससे इलाज में अंतर बढ़ गया है।
इम्पीरियल कॉलेज लंदन के प्रोफेसर माजिद एजाती ने कहा, “यह चिंताजनक है क्योंकि कम आय वाले देशों में डायबिटीज के मरीज अपेक्षाकृत कम उम्र के होते हैं और बिना इलाज के उन्हें गंभीर जटिलताओं का खतरा रहता है.” उन्होंने चेतावनी दी कि बिना इलाज के, इन देशों के लोगों में गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं जो वहां की स्वास्थ्य सेवाओं पर अतिरिक्त दबाव डालेंगी।
World Diabetes Day: कई क्षेत्रों में डायबिटीज के इलाज की ऊंची लागत भी एक बड़ी बाधा है। उदाहरण के लिए, सब-सहारा अफ्रीका में इंसुलिन और दवाइयों का खर्च इतना ज्यादा है कि कई मरीजों को पूरा इलाज नहीं मिल पाता।अध्ययन के निष्कर्ष बताते हैं कि डायबिटीज से निपटने के लिए एक वैश्विक रणनीति की आवश्यकता है, खासकर कम आय वाले देशों में इसमें सस्ती दवाइयों की उपलब्धता बढ़ाने, स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा देने और डायबिटीज के प्रति जागरूकता बढ़ाने जैसी पहलें शामिल हो सकती है।
विशेषज्ञ कहते हैं कि वैश्विक स्तर पर कार्रवाई और विशेष उपायों से डायबिटीज का बोझ कम किया जा सकता है और इलाज में असमानता कम की जा सकती है। हालांकि, इस लक्ष्य को हासिल करने में आर्थिक और ढांचागत चुनौतियां एक बड़ी बाधा है। प्रोफेसर माजिद एजाती ने चेतावनी दी है कि बिना उचित इलाज के, लाखों लोग गंभीर जटिलताओं का सामना करेंगे और उनकी उम्र भी कम हो सकती है।