आज हम बात करने वाले हैं यूक्रेन में नाटो देशों का षडयंत्र और Russia Ukraine war में भारत की स्थिति पर….Russia Ukraine war के बीच भारत पर लगातार रूस का साथ छोड़कर अमरीकी खेमे में जाने के लिए दबाव बनाया जा रहा है…कहा जा रहा है कि तटस्थ रहना भी एक तरह से रूस के खेमे में जाने के बराबर है…यह अमरीकियों की परिभाषा है जिसमें वे तटस्थ होना नहीं जानते…उनको लगता है कि जो उनके साथ नहीं हैं वो उनके शत्रु के साथ हैं….इसीलिए अमरीकी अधिकारी धमकाने वाले अंदाज में बयान दे रहे हैं….गुट निरपेक्षता को पश्चिमी जगत अब स्वीकारने के मूड में नहीं दिख रहा है…वैसे बता दें कि अमरीका रूस से खुद व्यापार खत्म नहीं कर रहा है पर दुनियां से रूस से संबंध तोड़ने कह रहा है….
लेकिन भारत अमरीकी दबाव के आगे झुकने को तैयार नहीं है…
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भारत ने पिछले कुछ सालों में अपनी राजनीतिक इच्छा शक्ति से अमरीका के साथ ही काफी हद तक बाकी दुनियां को भी झुकाया है…और अपनी आर्थिक शक्ति का भी लोहा मनवाया है…आज भारत को एक महाशक्ति की तरह देखा जाता है…लेकिन काफी समय से भारत नाम की महाशक्ति को पश्चिमी जगत अपने खेमे में लाने को बेताब है… सालों से अमरीका, फ्रांस, ब्रिटेन जैसी महाशक्तियों समेत यूरोपिय देश लगातार सीधे या टेढ़े प्रयासों से भारत को उलझाने और फिर अपने खेमे में लाने की कोशिश करते रहे हैं…इधर लम्बे समय से भारत रूस के नजदीक रहा है.. वह रूस के साथ कई मोर्चे पर भागीदारी निभा रहा है…ऐसे में Russia Ukraine war के बाद वह रूस का साथ छोड़ दे यह नहीं हो सकता है… और अमरीका भी बखूबी इस बात को समझता है…रणनीतिक भागीदारी की बात है तो भारत के लोग रूस को अमरीका की तुलना में कहीं ज्यादा विश्वसनीय मानते हैं…भारत के संदर्भ में अमरीका को अभी अपनी विश्वसनीयता साबित करने की जरूरत है…क्योंकि पश्चिमी देश दूसरों से उदारवादी होने की उम्मीद करते हैं पर अपनी बारी आती है तो सारा उदारवाद भूल जाते हैं…यही अब यूक्रेन में दिख रहा है…लगता है अमरीका ने यूक्रेन का वॉर जानबूझकर शुरू कराया है और इसी बहाने वह दुनिया को अपने पाले में लाने का सपना भी देख रहा है…एशिया में उसकी दाल नहीं गल रही है….आज यहां भारत रूस और चीन ये तीनों ही देश बड़ी शक्तियां हैं और तीनों अमरीकी खेमे में नहीं हैं…हां आपसी सहयोग और व्यापार अलग बात है….इन तीनों से पंगा लेना अमरीका को बहुत भारी पड़ सकता है… अब एशिया पर दबदबे के लिए अमरीका को भारत से उम्मीदें हैं….
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इधर भारत ने रूस से तेल खरीदने की तैयारी कर ली है…तो अमरीका को मिर्ची लग रही है…उसके पास तेल की कमी नहीं है इसलिए वह रूस से खुद तेल लेने पर प्रतिबंध लगाने की बात कर रहा है पर यूरोपिय देशों को इसके लिए मना नहीं कर पा रहा है…ऐसे में भारत से यह अपेक्षा करना भी गलत है कि वह रूस से तेल न खरीदे। अमरीकी अधिकारी इन दिनों यही बयान देते फिर रहे हैं और कह रहे हैं कि भारत का कदम उसके हित में नहीं होगा…लेकिन आपको बता दें कि अमरीका का पाखंड उजागर हो गया है…
मीडिया में जो खबरें आ रही हैं उनके मुताबिक अमेरिका एक तरफ तो भारत पर दबाव डाल रहा है कि वह रूस से तेल न खरीदे लेकिन वो खुद रूस से भारी मात्रा में तेल खरीद रहा है इसकी जानकारी रूसी सुरक्षा परिषद के उप-सचिव ने हाल में रूसी मीडिया को दी है. उन्होंने बताया कि अमेरिका ने रूस से कच्चे तेल की खरीदी में पिछले एक हफ्ते में 43% की बढ़ोतरी की है. यह भी बताया जा रहा है कि अमेरिका सस्ते में खरीदा गया रूसी तेल यूरोपीय देशों को अधिक कीमतों पर बेच रहा है…यही वजह है कि अमरीका के अधिकारी अब बयान दे रहे है कि भारत रूस से तेल न खरीदे तो अमरीका उसे तेल देगा….यानी हम सीधे रूस से तेल न खरीदें बल्कि अमरीका वहां से तेल लाकर हमको बेचेगा…गजब की बात है….
वैसे यह तो तय है कि अमरीका रूस से दो पैसे कम पर भी तेल देगा तो भी भारत रूस का साथ नहीं छोड़ेगा…इसे दूसरी तरफ से ऐसा समझें कि गुट निरपेक्ष भारत फिलहाल रूस के साथ ही दिखेगा और दुनियां आने वाले दिनों में जिस तरफ जाती हुई दिख रही है उसमें अमरीका का साथ देना कोई बहुत अक्लमंदी की बात नहीं होगी…खासकर तब जब यह साफ दिखता है कि अमरीका अपने फायदे के लिए अपने सहयोगियों का इस्तेमाल करता है…अफगानिस्तान और यूक्रेन में यह दिख गया है। चीन के खिलाफ लामबंदी के लिए यदि अमरीका भारत को सहयोग कर रहा है तो उसका भी स्वार्थ है…
यूक्रेन को भड़काकर युद्ध में धकेल देने के बाद अमरीका की अगली चाल ये है कि भारत उसके अपने खेमे में आ जाए या कम से कम रूस का विरोध कर दे…अमरीका इस मौके को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना चाहता है पर इस बार उसकी दाल नहीं गली है….भारत सरकार ने साफ कर दिया है कि वह युद्ध का तो विरोध करती है पर रूस का नहीं…वह अमरीका का समर्थन तो करती है पर इसके लिए रूस का विरोध नहीं करेगी…वह अमरीकी प्रतिबंधों को जहां संभव हो नहीं मानेगी और इसके लिए अपना अहित नहीं करेगी…हाल में यूक्रेन में हिंसा की बहुत सारी जानकारियां आई हैं और Russia पर आरोप लग रहे हैं…भारत ने हिंसा की निंदा तो की है पर स्वतंत्र जांच की भी मांग की है…इससे पता चलता है कि भारत आंख बंद करके अमरीकी पिच पर नहीं खेलेगा…
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अब एक सवाल उठता है कि चीन भी रूस को सहयोग कर रहा है और भारत भी ऐसा कर रहा है….इधर चीन और भारत के बीच तनाव है…रूस भी इस तनाव को कम कराने में नाकाम रहा है…चीन भारत के एक हिस्से पर जिसे अक्साई चीन कहते हैं कब्जा जमाए बैठा है….लद्दाख के हिस्से पर और कब्जा करना चाहता है…ऐसे में अमरीका से दूरी बनाना भी भारत के लिए ठीक नहीं है… तो अब भारत के पास क्या रास्ता है? रूस के साथ रहने पर अमरीका से दूरी तो नहीं बढ़ जाएगी…? इसका एक ही जवाब अभी दिखता है कि अमरीका के नेता मीडिया पर बयान भले ही देते रहें पर अमरीका भारत का साथ कभी नहीं छोड़ेगा…खासकर जब तक चीन से उसे चुनौती मिलती रहेगी तब तक वह भारत को अपने साथ ही रखना चाहेगा…एक सवाल यह भी हो सकता है कि क्या कभी भारत चीन और रूस मिलकर एक साथ चलेंगे और पश्चिम की दादागिरी का जवाब बनेंगे ….तो फिलहाल यही दिख रहा है कि ऐसा नहीं हो पाएगा…एक संभावना है कि अमरीकी वर्चस्व के खिलाफ चीन और रूस जरूर मिलकर गठबंधन बना लें पर ये भी साफ है कि रूस भारत के हितों के खिलाफ जाकर चीन का साथ नहीं देगा और यह भी रूस जानता है कि चीन विश्वसनीय साथी नहीं हो सकता है…
आपको बता दें कि अमरीका तभी तक भारत के साथ रहना चाहेगा जब तक चीन अमरीका के विरोध में है…एक और संभावना है कि अगर इस युद्ध में रूस कमजोर हुआ तो चालबाज चीन कभी भी एशिया पर दबदबे के लिए दावा ठोक सकता है…यह बात अभी जरा दूर की कौड़ी लगती है पर ऐसा हो सकता है….ऐसे में हो सकता है कि भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति आगे चलकर खत्म हो जाए और भारत रूस के साथ रणनीतिक गठबंधन कर ले….यानी गुटनिरपेक्षता छोड़ना ही है तो भारत दूर बैठे देश अमरीका को नहीं बल्कि पड़ोस के रूस को चुनेगा इसकी संभावना ही ज्यादा है….
कहा तो यह भी जाता है कि अमरीका में बायडेन की जीत में चीन ने भूमिका निभाई थी अगर ये सच है तो अमरीकी प्रशासन भले ही चीन का विरोध करे पर बायडेन उससे संबंध बना सकते हैं…फिलहाल रशिया यूक्रेन वार में अमरीका और नाटो देश जैसी भूमिका निभा रहे हैं उससे तो यही लगता है वे सब मिलकर रूस को कमजोर भी करना चाहते थे और साथ ही रूस की ताकत को भी परखना चाहते थे इसके लिए इन पश्चिमी देशों ने यूक्रेन की बलि चढ़ाई है और उसके साथ ही हजारों जानें ली हैं और लाखों लोगों को बेघर कर दिया है…
तो आगे आने वाले दिनों में दुनियां में कई बड़े समीकरण और बनेंगे- बिगड़ेंगे देखें क्या विश्व युद्ध होता है या फिर शांति होती है.