आज हम यूपी चुनाव में आए एक नए एंगल पर बात करेंगे… आखिरकार यूपी का चुनाव जैसे जैसे नजदीक आता जा रहा है बड़बोले नेताओं की पोल खुलने लगी है…कल तक बीजेपी छोड़कर अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी में गए स्वामी प्रसाद मौर्य बड़े-बड़े दावे कर रहे थे…समाजवादियों को जीत दिलाने और बीजेपी का सफाया करने की धमकी दे रहे थे…लेकिन समय का पहिया ऐसा घूमा है कि चुनौती देते फिर रहे स्वामी प्रसाद मौर्य अपनी ही सीट से अब भागे- भागे फिर रहे हैं….बीजेपी से हारने के डर से उन्होंने अपनी सीट बदल ली है….और अब ज्यादा सुरक्षित मानी जा रही सीट पर पहुंच गए हैं…..इधर हार के डर से अखिलेश और उनके चाचा ने भी कांग्रेस से मदद ले ली है….
तो पहले बात करते हैं अखिलेश और कांग्रेस के समझौते की…हम पहले ही बता चुके हैं कि इस बार यूपी में विपक्षी दलों ने एक साथ गठबंधन करके लड़ने की जगह अलग अलग लड़ने का फैसला इसीलिए किया है, क्योंकि पिछली बार उनके गठबंधन फेल हो चुके हैं…जनता ने इनको पसंद नहीं किया….इसलिए अब ये सब अलग अलग लड़ रहे हैं… और सरकार बनाने की कोई संभावना बनी… तो सब एक साथ आ जाएंगे… ऐसी इनके बीच अंदर से सहमति है….अब हमारी इस बात की पुष्टि खुद अखिलेश यादव ने कर दी है… पुरानी सांठगांठ के चलते कांग्रेस ने मदद करते हुए अखिलेश के साथ ही उनके चाचा शिवपाल यादव के खिलाफ प्रत्याशी खड़ा नहीं किया है….जाहिर है कांग्रेस ने कुछ हजार वोट भी काट दिए तो चाचा भतीजे को लेने के देने पड़ जाएंगे…. इसके साथ ही लोकदल पार्टी ने भी अखिलेश और उनके चाचा के खिलाफ प्रत्याशी नहीं उतारने का फैसला किया है…आपको पता है कि अखिलेश यादव ने सबसे सुरक्षित सीट मानी जा रही यादव बहुल करहल से चुनाव लड़ने का फैसला किया है… अखिलेश ने इस सीट का चुनाव सर्वे के बाद किया है…यहां पर उनका मुकाबला करने के लिए बीजेपी ने केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल को उतार दिया है…कहा जाता है कि बघेल का राज्य के पिछड़ा वर्ग में प्रभाव है… अखिलेश और उनकी पार्टी के पास अभी तो सिर्फ जातिवाद और मुस्लिम कार्ड है…लेकिन इसके जवाब में बीजेपी जातिवाद के साथ ही हिन्दुत्व, राष्ट्रवाद, राष्ट्रनिर्माण और विकास जैसे नारे भी लेकर आ गई है…बीजेपी के दांव से घबराए अखिलेश ने कांग्रेस से मदद मांगी है और कांग्रेस ने पूर्व की तरह ही मदद दे दी है…कांग्रेस ने करहल से प्रत्याशी घोषित करने के बाद भी अपने प्रत्याशी को नहीं उतारा….कांग्रेस ने अपनी पहली ही सूची में करहल सीट से एक महिला प्रत्याशी ज्ञानवती यादव को टिकट दे दिया था. तब तक अखिलेश यादव यहां से प्रत्याशी नहीं बने थे … जैसे ही अखिलेश यहां से उतरे कांग्रेस ने अपने प्रत्याशी को चुनाव लड़ने से रोक दिया है…. पुरानी सांठगांठ अभी भी जारी है और कांग्रेस ने अखिलेश के साथ ही उनके चाचा शिवपाल यादव की जसवंतनगर सीट पर भी अपना प्रत्याशी खड़ा नहीं किया…यानी चाचा भतीजा दोनों को एक तरह से वॉकओवर दे दिया है….
वॉक ओवर लेने के बाद हो सकता है कि चाचा भतीजा दोनो जीत जाएं पर अभी बड़ी बड़ी बातें करने के बाद जिस तरह से वॉक ओवर उन्होंने मांगा है उससे तो यही संदेश जा रहा है कि अखिलेश ने चुनाव से पहले ही हार मान ली है…. आप जानते ही मुलायम परिवार और कांग्रेस के बीच पहले से ही सांठगांठ रही है अपने- अपने परिवार के सदस्यों को हार से बचाने के लिए दोनों दल ऐसी सहायता एक दूसरे को करते हैं…समाजवादी पार्टी सोनिया और राहुल गांधी के खिलाफ रायबरेली और अमेठी संसदीय सीट पर अपना उम्मीदवार नहीं उतारती है. सपा यह काम 2009 के लोकसभा चुनाव से कर रही है। इस बार चाचा भतीजे के वाक ओवर वाले दांव ने बाकी समाजवादी प्रत्याशियों के बीच असंतोष को भी जन्म दे दिया है…क्योंकि उन्हें कांग्रेस से जूझना होगा….इसका क्या नतीजा निकलेगा यह अभी नहीं कहा जा सकता है….पर भविष्य में जरूर यह अखिलेश के लिए गले की हड्डी बनेगा….
खैर अब एक और बड़बोले नेता स्वामी प्रसाद मौर्य की बात कर लेते हैं…आपको याद होगा पांच साल बीजेपी सरकार में मंत्री पद का मजा लेने के बाद जब इनको लगा कि बीजेपी उनका टिकट काट सकती है तो ये समाजवादी बन गए और बीजेपी को धूल चटाने का दावा कर रहे थे…लेकिन आज बीजेपी के ही डर से अपना पुराना निर्वाचन क्षेत्र छोड़कर भाग खड़े हुए हैं…. स्वामी प्रसाद मौर्य को उनकी नई पार्टी ने इस बार उनकी परंपरागत सीट पडरौना की जगह कुशीनगर के फाजिलनगर से टिकट दिया है…. दरअसल पडरौना सीट से स्वामी प्रसाद मौर्य पिछले 2 चुनाव जीते थे ऐसे में अभी एंटी इनकंबेंसी का डर उनको सता रहा है ऊपर से कांग्रेस नेता और इस इलाके के राज परिवार के सदस्य आरपीएन सिंह बीजेपी में शामिल हो गए हैं….सिंह के पडरौना विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की लगातार चर्चा चली थी इसी कारण बड़ी बड़ी बातें करते रहे स्वामी प्रसाद मौर्य ने सेफ लग रही सीट फाजिलनगर में पनाह ली है…।
आपको बता दें कि आरपीएन सिंह कांग्रेस में रहते हुए 1996 से लेकर 2009 तक 3 बार पडरौना से विधायक रह चुके हैं और 2009 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर स्वामी प्रसाद मौर्य को ही हराया था, तब मौर्य BSP प्रत्याशी थे। बहरहाल इन बड़े बड़े दावे करने वाले नेताओं की सेफ सीट की तलाश ने यह तो साफ कर दिया है कि शुरू शुरू में समाजवादियों के लिए कुछ आसान दिख रहा यूपी चुनाव अब उतना आसान नहीं रह गया है….। बीजेपी ने इन कुछ दिनों में जातिवाद और राष्ट्रवाद के नारों के साथ ही पिछड़ा वर्ग को साधने के लिए जो चालें चली हैं उससे कांग्रेस के सहयोग के बाद भी चाचा- भतीजा अखिलेश और शिवपाल की जान फंसी हुई है…स्वामी प्रसाद का सीट छो़ड़कर भाग जाना भी बता रहा है कि उनके दावे में कितना दम था…खैर अब आपको ये भी बता दें कि
स्वामी प्रसाद मौर्य के लिए फाजिलनगर से चुनाव लड़ना भी आसान नहीं होगा… क्योंकि दो बार से यहां बीजेपी का दबदबा रहा है। फाजिलनगर विधानसभा सीट से बीजेपी ने पुराने विधायक गंगा सिंह कुशवाहा के बेटे सुरेन्द्र सिंह कुशवाहा को टिकट दिया है। यह सीट कुशवाहा बाहुल्य के रूप में जाने जानी जाती है। 2012 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के गंगासिंह कुशवाहा सपा की लहर होने के बावजूद लगभग पांच हजार वोटों से जीते थे… 2017 में सपा के प्रत्याशी को उन्होंने लगभग 42 हजार वोटों से हराया…..
स्वामी प्रसाद मौर्य जिस कारण से अपनी सीट छोड़कर भागे हैं उनको लगता है कि उसी कारण से यानी एंटी इनकंबेंसी से बीजेपी यहां हार सकती है और वे सफल हो सकते हैं…..अब देखना होगा अखिलेश से लेकर स्वामी प्रसाद तक ने जिस तरह से कमजोरी दिखाई है उसका फायदा बीजेपी को होता है या नहीं….