पुरी: True Story Of Jagannath देशभर में आज जगन्नाथ रथ यात्रा का पर्व धूम धाम से मनाया जा रहा है। इस अवसर पर देशभर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा की रथ यात्रा निकाली जा रही है। रथ यात्रा के अवसर पर पुरी स्थित भगवान जगन्नाथ के मंदिर से भव्य रथ यात्रा निकाली जाती है, जिसके लिए कई महीने पहले से तैयारी शुरू हो जाती है। वहीं, अनुमान लगाया जा रहा है कि इस साल जगन्नाथ रथ यत्रा में शामिल होने के लिए करीब 25 लाख श्रद्धालु पुरी पहुंचेंगे। लेकिन क्या आपको पता है कि पुरी जगन्नाथ मंदिर की ध्वजा को रोज शाम को बदला जाता है। इसके पीछे भी एक बड़ी कहानी है, तो चलिए रथ यात्रा के अवसर पर आपको बताते हैं कि क्यों रोजाना जगन्नाथ मंदिर का ध्वज बदला जाता है?
True Story Of Jagannath बता दें कि मंदिर के गुंबद पर लगा ध्वज परिवर्तन रोज किया जाता है। यह रोजाना शाम को किया जाता है। यह ध्वजा समंदर की तरफ से आनेवाली हवाओं से लहराता रहता है। ऐसी मान्यता है कि अगर एक दिन के लिए भी झंडा नहीं बदला गया तो मंदिर 18 साल के लिए बंद हो जाएगा। यह 20 फीट का ट्रायएंगुलर ध्वज होता है जो हर रोज बदला जाता है। इसे बदलने का जिम्मा चोला परिवार पर है वह इसे 800 साल से करती चली आ रही है। जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर जो ध्वज लगा है वो काफी दूर से नजर आता है। मंदिर के शिखर पर एक सुदर्शन चक्र भी है। इस चक्र को किसी भी दिशा से खड़े होकर देखने पर ऐसा लगता है कि चक्र का मुंह आपकी ओर है।
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पुरानी कथाओं की मानें तो जगन्नाथ मंदिर की ध्वजा उल्टी लहराने का सीधा संबंध हनुमान जी से है। बताया जाता है कि भगवान विष्णु को समुद्र की लहरों के तेज आवाज की वजह से सोने में दिक्कत हो रही थी। इस बात की जानकारी जब हनुमान जी को लगी तो उन्होंने समुद्र देवता से हवा दिशा उल्टी करने का निवेदन किया। लेकिन समुद्र देवता ने असमर्थता जताते हुए कहा कि ये मेरे बस में नहीं है, इसके लिए आपको अपने पिता पवन देव से निवेदन करना होगा। यह ध्वनि उतनी ही दूर तक जाएगी जितनी हवा की गति जाएगी। समुद्र देव से निवेदन के लिए हनुमान जी पवन देव के पास पहुंचे और आह्वान किया कि हवा मंदिर की दिशा में न बहे। पवनदेव ने कहा कि यह संभव नहीं है और इसके लिए उन्होंने हनुमान जी को एक उपाय बताया।
अपने पिता के बताए उपाय के अनुसार हनुमान जी ने अपनी शक्ति से स्वयं को दो भागों में बांट लिया और फिर वे हवा से भी तेज गति से मंदिर की परिक्रमा करने लगे। इससे हवा का ऐसा चक्र बना कि समुद्र की आवाज मंदिर के अंदर न जाकर मंदिर के चारों ओर घूमती रहती है और श्री जगन्नाथ जी मंदिर में आराम से सो जाते हैं। इसी वजह से मंदिर की ध्वजा भी हवा के विपरीत दिशा में लहराता है।