रायपुर: Nirjala Ekadashi Muhurt निर्जला एकादशी का व्रत ज्येष्ठ माह की शुक्लपक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण की पूजा का विधान है। एकादशी का व्रत रखने वाले दशमी के सूर्यास्त से भोजन नहीं करते। एकादशी के दिन ब्रम्हबेला में भगवान कृष्ण की पुष्प, जल, धूप, अक्षत से पूजा की जाती है। इस व्रत में केवल फलों का ही भोग लगता है। यह ब्रम्हा, विष्णु, महेश त्रिदेवों का संयुक्त अंश माना जाता है।
Nirjala Ekadashi Muhurt यह अंश अच्युत के रूप में प्रकट हुआ था। यह सफलता देने वाला व्रत माना जाता है। एकादशी के व्रत में कोई भी अनाज, मसाले का प्रयोग नहीं करना चाहिए। निर्जला व्रत करना चाहिए। एकादशी के व्रत के उपरांत द्वादशी को स्नान तथा पूजन के उपरांत एक व्यक्ति का पूर्ण आहार के बराबर खाद्य सामग्री का दान करना चाहिए। उसके उपरांत अपने व्रत का पारण करना चाहिए। इसे भीमसेनी एकादशी कहते हैं। मान्यता है कि भगवान को चढ़ाये गए फल व्यक्ति के जीवन में सभी मनोरथ को पूर्ण करने वाले होते हैं।
Read More: नशा तस्कर के घर चली ताबड़तोड़ गोलियां, इलाके में मचा हड़कंप
निर्जला एकादशी की पूजा तिल, गंगाजल, तुलसी पत्र, श्रीफल बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इस दिन श्रीहरि विष्णु की पूजा के साथ मां लक्ष्मी और तुलसी की उपासना भी जरुर करें। मान्यता है तुलसी पूजा के बिना एकादशी का व्रत-पूजन अधूरा रहता है। इस दिन विष्णु जी का जल में तिल मिलाकर ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप हुए विष्णु जी का अभिषेक करें। समस्त पूजन सामग्री लक्ष्मी-नारायण को अर्पित करें। मिठाई में तुलसी दल डालकर विष्णु जी को चढ़ाएं। किसी गौशाला में गायों की देखभाल के लिए दान-पुण्य करें। गरीबों को गर्मी से राहत पाने की चीजों का दान करें। शाम को तुलसी में घी का दीपक लगाकर उसमें काला या सफेद तिल डालें। मान्यता है इससे लक्ष्मी जी प्रसन्न रहती हैं और साधक को धन-धान्य से परिपूर्ण रहने का आशीर्वाद देती है।