गुरु हरगोबिंद सिंह ने शुरू की थी 2 तलवारें रखने की परंपरा, सिक्खों के छ्ठें गुरु की जयंती पर जानें उनके बारे में कई बातें

Guru Hargobind Birth Anniverary Guru Hargobind Singh Jayanti 2023: हरगोबिंद सिंह जिन्होंने अकाल तख्त का निर्माण कराया!

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  • Publish Date - June 19, 2023 / 10:35 AM IST,
    Updated On - June 19, 2023 / 10:35 AM IST

Guru Hargobind Birth Anniverary: मुगल बादशाह जहांगीर द्वारा शारीरिक प्रताड़नाओं से शहीद हुए गुरु अर्जन देव सिंह के पुत्र और सिख समाज के छठे गुरु हरगोबिंद ऐसे पहले सिख थे, जिन्होंने शांति के साथ-साथ शौर्य का भी प्रदर्शन किया था। वह पहले गुरु थे, जिन्होंने युद्ध में तलवारें भांजी, वे पहले सिख थे जिन्होंने अकाल तख्त का निर्माण कराया, वह पहले गुरु थे, जिन्होंने दो तलवारें रखने की परंपरा शुरू की थी।

Guru Hargobind Birth Anniverary: गुरु हरगोबिंद का जन्म आषाढ़ मास कृष्ण पक्ष की द्वितीया (19 जून 1595) को वडाली गांव में हुआ था। गुरु अर्जन देव सिंह की इकलौती संतान और सिख धर्म के छठवें गुरू हरगोबिंद बचपन से विज्ञान, खेल और धर्म आदि में रुचि रखते थे। काफी कम उम्र में वह युद्ध कला में प्रवीण हो गये थे। वह कुशल तलवारबाज, पहलवान एवं घुड़सवारी में माहिर थे। उन्होंने ही सिखों को अस्त्र-शस्त्र का भी प्रशिक्षण लेने के लिए प्रोत्साहित किया था। उन्होंने अपने प्रथम गुरू गुरू नानक देव जी के मूल सिद्धांतों का पालन करते हुए अन्याय और प्रताड़ना का जवाब शस्त्रों से देने का सुझाव दिया था।

क्या था मीरी और पीरी?

Guru Hargobind Birth Anniverary: सिख धर्म के छठे गुरु, हरगोबिंद सिंह ने पिता अर्जन सिंह की शहादत के बाद, अपने आध्यात्मिक अधिकार के साथ मीरी और पीरी (लौकिक और आध्यात्मिक) की अवधारणा का सृजन किया था, क्योंकि गुरु अर्जन सिंह की प्रताड़ना भरी शहादत के बाद रक्षात्मक सैन्य शक्ति की सख्त आवश्यकता थी, ताकि मुगलों के शोषण, अत्याचार और अन्याय को मुंहतोड़ जवाब दिया जा सके। हरगोबिंद सिंह ने सिखों को अपनी रक्षा के लिए सशस्त्र और मार्शल प्रशिक्षण की सख्त आवश्यकता के बारे में बताया। उन्होंने शपथ लेते हुए कहा था कि आज से मैं अपने पास दो तलवार रखूंगा। एक तलवार शक्ति (शक्ति) का प्रतीक होगी और दूसरी भक्ति (ध्यान) की। इसमें एक को मिरी टेम्पोरल पॉवर और दूसरी को पीरी आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक बताया।

सैन्य शक्ति को सशक्त बनाने का मिशन

गुरु अर्जन देव जी की गिरफ्तारी, यातना और शहादत ने सिखों के प्रति राजनीतिक भावना में बदलाव का संकेत दिया। उन्होंने इस मिशन में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। गुरू हरगोविंद सिंह ने अपनी सैन्य शक्ति को बढ़ाते हुए 700 घोड़ों, 300 घुड़सवारों, 60 तोपधारियों और 500 पैदल सेना का अधिग्रहण का सेना को प्रशिक्षित किया। उन्होंने अमृतसर में स्टील के किले (लोहगढ़) का निर्माण किया और गरजने वाले ड्रम (नगाड़े) के निर्माण का निर्देश दिया, जिसका उपयोग संचार के लिए किये जाने का निर्देश दिया।

अकाल तख्त की शुरुआत

Guru Hargobind Birth Anniverary: गुरु हरगोबिंद ने 1606 में हरमंदिर साहिब के सामने अकाल तख्त (भगवान का सिंहासन) का निर्माण किया। उन्होंने राजसी कपड़े पहने। हरमंदिर साहिब आध्यात्मिक अधिकार की सीट थी जबकि अकाल तख्त उनके लौकिक (सांसारिक) अधिकार की सीट थी। इसने सिख सैन्यीकरण की शुरुआत को चिह्नित किया, साथ ही संतत्व के प्रतीकों में छत्र और कलगी सहित संप्रभुता के चिह्न भी जोड़े। उन्होंने एक राजा की तरह शासन किया, उन्होंने हरगोविंदपुर, करतारपुर, गुरुसर और अमृतसर में हुई लड़ाइयों में खूब हिस्सा लिया। युद्ध लड़ने वाले वह पहले सिख गुरु थे। लेकिन हरगोविंद सिंह ने अपने प्रथम गुरु नानक के अच्छे चरित्र को कभी नहीं छोड़ा। उन्होंने अपने शासनकाल में पुरस्कार के साथ सजा का भी प्रावधान रखा था।

गुरु हरगोविंद सिंह से क्यों भयभीत था जहांगीर?

Guru Hargobind Birth Anniverary: जहांगीर गुरु हरगोबिंद की सशस्त्र नीति से भयभीत होकर उन्हें कैद कर लिया। हरगोविंद सिंह के कैद करते ही जहांगीर को खबर मिली की पांचवे गुरु की शहादत के कारण बहुत सारे लोग हरगोविंद सिंह के साथ हैं, अगर उन्हें जल्दी रिहा नहीं किया गया तो तख्तापलट तक की संभावना थी, क्योंकि उस समय ग्वालियर के जेल में 52 हिंदू राजा कैद थे, जिनके अनुयायी उन्हें रिहा कराने के लिए कृतसंकल्प होकर तैयारी में लगे हुए थे। लिहाजा जहांगीर ने भयभीत होकर गुरु हरगोविंद सिंह को बाइज्जत बरी करने के लिए मजबूर होना पड़ा।

निधन

Guru Hargobind Birth Anniverary: पुत्र की असामयिक मृत्यु के पश्चात 14 वर्षीय हर राय सिंह को गुरु हरगोबिंद ने सातवें सिख गुरू के रूप में नियुक्त किया था। इसके बाद 28 फरवरी 1644 को गुरु हरगोबिंद का निधन हो गया।

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