लैलूंगा विधानसभा सीट के विधायकजी का रिपोर्ट कार्ड, देखिए जनता का मूड मीटर
लैलूंगा विधानसभा सीट के विधायकजी का रिपोर्ट कार्ड, देखिए जनता का मूड मीटर
रायगढ़। विधायकजी के रिपोर्ट कार्ड में आज बारी है छत्तीसगढ़ के लैलूंगा विधानसभा सीट की। रायगढ़ जिले की अहम विधानसभा सीटों में शामिल है लैलूंगा, जिसे बीजेपी की हाई प्रोफाइल सीट कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस सीट से जहां पूर्व में विधायक रह चुके सत्यानंद राठिया मंत्री पद पर काबिज रह चुके हैं तो वहीं वर्तमान में इस सीट पर उनकी पत्नी सुनीति राठिया काबिज हैं और संसदीय सचिव हैं। खास बात ये है कि इतने बड़े ओहदे पर होने के बाद भी इस विधानसभा क्षेत्र में विकास नजर नहीं आता। इलाके के लोग सड़क पानी बिजली जैसी मूलभूत समस्याओं से जूझ रहे हैं
लैलूंगा विधानसभा की सियासी नब्ज को टटोलते हुए हमारी टीम पहुंची विधानसभा क्षेत्र के डीपापारा गांव। जितना खूबसूरत ये गांव है। उतने ही बदतर हालात में यहां के लोग अपनी जिंदगी काट रहे हैं। इस गांव में तकरीबन 1200 लोगों की आबादी रहती है। दरअसल डीपापारा गांव केलो डैम के डुबान एरिया से प्रभावित हैं, लेकिन जब डैम के लिए जमीन का अधिग्रहण हुआ था तो इस गांव का अधिग्रहण ये कहकर नहीं किया गया कि ये आंशिक प्रभावित है। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। डुबान एरिया में आने के कारण इस गांव का मुख्य रास्ता 7 से 8 महीने बंद रहता है और जब डैम में पानी भरता है तो आसपास की 300 हैक्टेयर जमीन खेत खलिहान पानी में जलमग्न हो जाते हैं। हमारी टीम ने जब गांव वालों से बातचीत की तो उनका दर्द जुबान पर आ गया।
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गांववालों से बातचीत के बाद जब हमने पूरे मामले को लेकर विधायक सुनीति राठिया से भी चर्चा की और जवाब मांगने की कोशिश की। लेकिन सिवाय आश्वासन के कुछ नहीं मिला। जाहिर है विपक्ष इस मुद्दे को लेकर बीजेपी विधायक को घेरने के फिराक में है।
कुल मिलाकर इलाके में विकास के नाम पर केवल राजनीति ही हो रही है। लैलूंगा ने राज्य की सियासत को बड़ी-बड़ी हस्तियां दी हैं। लेकिन बदले इसे वो नहीं मिला है जिसका वो हकदार है। केवल डीपापारा गांव ही नहीं, बल्कि विधानसभा क्षेत्र के दूसरे इलाकों में भी दुश्वारियों की कोई कमी नहीं है। शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में भी पिछड़ा नजर आता है। आलम ये है कि सड़क, पानी, बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए भी इलाके के लोग जद्दोजहद कर रहे हैं।
तकरीबन 55 वर्ग किलोमीटर में फैले लैलूंगा विधानसभा क्षेत्र भौगोलिक दृष्टिकोण से छत्तीसगढ़ की बड़ी सीटों में से एक है, जितनी बड़ी ये सीट है। उससे कहीं ज्यादा यहां लोगों की दुश्वारियां उतनी ही ज्यादा यहां के लोगों की समस्याएं हैं। वैसे मुद्दों की बात की जाए तो रायपुर से लैलूंगा को जोड़ने वाले एकमात्र राज्यमार्ग की हालत इतनी खराब है कि बीते 4 सालों से लोग धूल के गुबार और गढ्ढों से होकर गुजरने को मजबूर हैं। वहीं यहां तहसील कोर्ट की मांग लंबे समय से की जा रही है..जो अब तक पूरा नहीं हुआ है, जाहिर है आने वाले चुनाव में ये मुद्दे नेताओँ की परीक्षा जरूर लेंगे।
कहने को तो इलाके में केलो डैम है। जब ये डैम बनाया जा रहा था, लोगों को भरोसा दिलाया गया था कि बांध के बन जाने के बाद क्षेत्र में सिंचाई सुविधाएं बढ़ जाएंगी लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं नजर आया। डैम बनने के बाद नहर नहीं बनने की वजह से उन इलाकों में भी पानी पहुंचना बंद हो गया। जहां पहले पानी आता था। लिहाजा किसान सूखे की मार झेलने को मजबूर हैं। वहीं इलाके में 4 हजार से अधिक टमाटर उत्पादक किसान हैं, जिन्हें हर साल फूड प्रोसेसिंग यूनिट और कोल्ड स्टोरेज नहीं होने की वजह से अपने टमाटर को फेंकना पड़ता है।
इतना ही नहीं शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में भी लैलूंगा पिछड़ा हुआ है। यहां हॉस्पिटल पुराने भवन में संचालित है। वहीं डॉक्टरों की कमी भी बड़ी समस्या है। कुल मिलाकर लैलूंगा में एक बार फिर आगामी चुनाव में पुराने मुद्दों का गूंजना तय है।
लैलूंगा सीट को शख्सियतों ने ही खास बनाया है और इस खास सीट का इतिहास भी बेहद दिलचस्प रहा है। यहां मतदाताओं का मिजाज हमेशा से ही प्रत्याशी को देखकर बदलता रहा है। यहां कभी बीजेपी तो कभी कांग्रेस पर अपना विश्वास जताते आई है। लिहाजा इस सीट को किसी भी पार्टी की सुरक्षित सीट नहीं कहा जा सकता है।
इन नजारों को देख कर आपको लग सकता है कि हम किसी एडवेंचर ट्रिप पर हैं। लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं हैं। बल्कि इस समय हम रायगढ़ जिले में आने वाली लैलूंगा विधानसभा की सियासी समीकरण को समझने की कोशिश कर रहे हैं। चुनाव नतीजों पर गौर करें तो आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित इस सीट पर कभी पार्टी महत्वपूर्ण नहीं रहा है बल्कि प्रत्याशी देखकर जनता वोट करती आई है।
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वैसे सीट के सियासी इतिहास की बात की जाए तो1990 से 2003 तक यहां आदिवासी नेता प्रेम सिंह सिदार यहां विधायक रहे। लेकिन अजीत जोगी के संपर्क में आने के बाद उन्होंने बीजेपी का दामन छोड़कर कांग्रेस का हाथ थाम लिया। 2003 के विधानसभा चुनाव में उन्हें इस गलती का खामियाजा भुगतना पड़ा। बीजेपी के टिकट पर सत्यानंद राठिया ने उन्हें शिकस्त दी। लेकिन 2008 में इस विधानसभा में मतदाताओं का मिजाज बदला और उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी हदयराम राठिया को अपना नेता चुना।
2013 के विधानसभा चुनाव की बात की जाए तो बीजेपी ने सत्यानंद राठिया की पत्नी और जिला पंचायत सदस्य सुनीति राठिया को टिकट दिया, जिन्होंने हृदयराम राठिया को हराया।
इस चुनाव में बीजेपी को जहां 75093 वोट मिले। वहीं कांग्रेस महज 60892 वोट ले सकी। इस तरह जीत का अंतर 14201 रहा। सियासी जानकारों की मानें तो सीट पर विकासके साथ प्रत्याशी की व्यक्तिगत छवि हमेशा ही नतीजों को प्रभावित करती है। ऐसे में इस बार बीजेपी विधायक की जीत की राह इतनी आसान नहीं रहेगी। कुल मिलाकर लैलूंगा की सियासत में अभी तक शख्सियतें मुद्दों पर हावी होती आई हैं, लेकिन इस बार जनता के दिल में क्या है। कोई नही जानता। हालांकि इस बार लोगों का ध्यान शख्सियतों से हट कर मुद्दों पर केंद्रित होता दिख रहा है ।
लैलूंगा विधानसभा सीट पर एक ओर जहां सुनीति सत्यानंद राठिया बीजेपी से दूसरी पारी खेलने की तैयारी में हैं तो वहीं कांग्रेस में भी दावेदारों की लंबी फेहिरिस्त है। इतना ही नहीं जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ ने यहां से कांग्रेस के विधायक रह चुके हृदयराम राठिया को चुनावी मैदान में उतारा है तो वहीं आम आदमी पार्टी ने भी अपने प्रत्याशी की घोषणा कर दी है। ऐसे में इस सीट पर घमासान मचना तय है।
पिछले कुछ दिनों में लैलूंगा विधायक सुनीति राठिया की व्यस्तता कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है। किसी के घर कुछ आयोजन हो या फिर लोगों की समस्याएं सुनकर उनका निदान करना। जाहिर है, वे आगामी चुनाव की तैयारी में जुट गई हैं। लैलूंगा में पिछली बार सुनीति राठिया ने कांग्रेस प्रत्याशी को चुनाव में पछाड़ कर बड़ी सफलता पाई थी। अब उनका दावा है कि अपने कार्यकाल में उन्होंने अच्छा काम किया है लिहाजा पार्टी उन्हें इस बार भी मौका देगी।
हालांकि सियासी गलियारों मे ये भी चर्चा है कि वो अपने पति सत्यानंद राठिया के लिए सीट छोड़ सकती है। सत्यानंद राठिया 2003 में यहां से चुनाव जीत चुके हैं। मुख्यमंत्री रमन सिंह के करीबी माने जाने वाले सत्यानंद राठिया को 2008 में एंटी इंकमबेंसी फैक्टर के चलते हार का सामना पड़ा था। इस बार कयास लगाया जा रहा हैकि सत्यानंद राठिया पर बीजेपी दांव लगा सकती है। वहीं इस बार बीजेपी के ही कद्दावर आदिवासी नेता पनत राम राठिया भी टिकट की मांग कर रहे हैं। पनत राम राठिया की आदिवासी समाज में अच्छी पकड़ है और इस इलाके में 40 फीसदी मतदाता आदिवासी हैं। उनका कहना है कि अगर पार्टी मौका देती है तो वे चुनाव जरुर लड़ेंगे।
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दूसरी ओर कांग्रेस भी इस बार इस सीट पर हर हाल में जीत हासिल करने की कोशिश में है। लिहाजा वो किसी मजबूत कैंडिडेट को चुनावी मैदान में उतार सकती है। कांग्रेस के संभावित उम्मीदवारों की बात की जाए तो कांग्रेस के कद्दावर नेता प्रेम सिंह सिदार की बहू विद्यावती कुंजबिहारी सिदार का नाम सूची में सबसे आगे है। वर्तमान में जनपद सदस्य विद्यावती अपने क्षेत्र में काफी सक्रीय है। इसके अलावा लैलूंगा के कद्दावर आदिवासी नेता चक्रधर सिदार भी टिकट के लिए दावेदारी कर रहे हैं। चक्रधर सिदार लंबे समय से इस क्षेत्र में आदिवासी समाज का प्रतिऩिधित्व कर रहे हैं। पिछले चुनाव में भी उनकी दावेदारी थी लेकिन वे किसी कारणो से चूक गए थे। इस बार फिर से वे टिकट की जुगत लगा रहे हैं।
लैलूंगा में इस बार बीजेपी और कांग्रेस को जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ और आम आदमी पार्टी से भी कड़ी टक्कर मिलने वाली है। जनता कांग्रेस ने यहां काफी पहले ही हृदयराम राठिया को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया है। हृदयराम राठिया साल 2008 में इसी सीट से सत्यानंद राठिया को हराकर कांग्रेस के विधायक रह चुके हैं। लिहाजा इस सीट पर वे काफी मजबूत स्थिति में हैं तो वहीं आम आदमी पार्टी ने भी हाल ही मे कुंती सिदार को अपना केंडीडेट घोषित किया है।
कुल मिलाकर जेसीसीजे और आम आदमी पार्टी ने यहां प्रत्याशी घोषित कर शुरूआती बढ़त लेने की कोशिश की है। जबकि बीजेपी और कांग्रेस में दावेदारों की लिस्ट में काट छांट करना ही पार्टी के आलाकमान का सबसे बड़ा सिरदर्द है। ये भी तय है कि शार्टलिस्टिंग में जो जितनी सावधानी बरतेगा लैलूंगा से उसके सफलता के चांस ज्यादा होंगे।
वेब डेस्क, IBC24

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