World Happiness Report: युद्ध झेल रहा यूक्रेन और गरीबी झेल रहा पाकिस्तान भी भारत से ज्यादा खुश? वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स और देश की रैंकिंग पर उठे सवाल

World Happiness Report: यह आंकड़े कई सवाल खड़े करते हैं—क्या यह रिपोर्ट वास्तव में खुशी को मापती है, या फिर इसमें पूर्वाग्रह और त्रुटियां हैं? आइए समझते हैं कि यह इंडेक्स कैसे तैयार किया जाता है और इसकी सटीकता पर क्यों संदेह किया जा रहा है।

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  • Publish Date - March 27, 2025 / 10:27 PM IST,
    Updated On - March 27, 2025 / 10:28 PM IST
World Happiness Report, image source: visualcapitalist

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HIGHLIGHTS
  • केवल 1000 लोग तय करते हैं पूरे देश की खुशी
  • भारत को जानबूझकर दी जाती है गलत रैंकिंग
  • सबसे खुशहाल देश या आंकड़ों की बाजीगरी

World Happiness Report: हाल ही में वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट जारी हुई, जिसमें 147 देशों को शामिल किया गया। इस रिपोर्ट में फिनलैंड ने लगातार आठवीं बार पहला स्थान हासिल किया, जबकि भारत को 118वें स्थान पर रखा गया। चौंकाने वाली बात यह है कि लंबे समय से युद्ध झेल रहा यूक्रेन और आर्थिक संकट से जूझ रहा पाकिस्तान भी इस सूची में भारत से ऊपर हैं। यह आंकड़े कई सवाल खड़े करते हैं—क्या यह रिपोर्ट वास्तव में खुशी को मापती है, या फिर इसमें पूर्वाग्रह और त्रुटियां हैं? आइए समझते हैं कि यह इंडेक्स कैसे तैयार किया जाता है और इसकी सटीकता पर क्यों संदेह किया जा रहा है।

कैसे तैयार होता है वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स?

यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में सस्टेनेबल डेवलपमेंट सॉल्यूशंस नेटवर्क (SDSN) द्वारा प्रकाशित की जाती है और गैलप वर्ल्ड पोल (Gallup World Poll) के डेटा पर आधारित होती है। इसका मुख्य उद्देश्य लोगों की आत्म-रिपोर्टेड जीवन संतुष्टि (life satisfaction) को मापना है। इसमें छह प्रमुख कारकों को शामिल किया जाता है:

प्रति व्यक्ति जीडीपी: आर्थिक समृद्धि को खुशी से जोड़ा जाता है, लेकिन क्या सिर्फ धन ही खुशी का पैमाना हो सकता है? भारतीय संस्कृति में आध्यात्मिकता और सामाजिक संबंध भी खुशी के महत्वपूर्ण कारक माने जाते हैं।

सामाजिक समर्थन: जीवन के कठिन समय में परिवार और दोस्तों से मिलने वाले सहयोग को मापा जाता है।

स्वस्थ जीवन प्रत्याशा: लंबी उम्र और बेहतर स्वास्थ्य को खुशी का आधार माना जाता है।

स्वतंत्रता: व्यक्तिगत निर्णय लेने की आजादी को खुशी से जोड़ा जाता है।

उदारता: समाज में दान और परोपकार की प्रवृत्ति भी इस इंडेक्स में शामिल है।

भ्रष्टाचार की धारणा: सरकार और संस्थानों में भ्रष्टाचार के स्तर को मापकर इसे खुशी से जोड़ा जाता है। हालांकि, यह पूरी तरह से लोगों की धारणा पर आधारित होता है, जो मीडिया और प्रचार से प्रभावित हो सकता है।

क्या केवल 1000 लोग तय करते हैं पूरे देश की खुशी?

गैलप वर्ल्ड पोल प्रत्येक देश में लगभग 1,000 लोगों का सर्वे करता है और उनके जवाबों के आधार पर पूरे देश की खुशी का आकलन करता है। भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में, जहां 140 करोड़ से अधिक लोग रहते हैं, क्या मात्र 1,000 लोगों की राय पूरे राष्ट्र की खुशी को दर्शा सकती है? यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है, क्योंकि इतने छोटे सैंपल साइज से संपूर्ण देश की वास्तविक खुशी को मापना मुश्किल हो सकता है।

सर्वे में शामिल लोगों की पहचान का अभाव

SDSN यह स्पष्ट नहीं करता कि जिन लोगों का सर्वे किया गया, वे कौन हैं। क्या इसमें ग्रामीण और शहरी आबादी का समान रूप से प्रतिनिधित्व होता है? यदि केवल एक विशेष वर्ग के लोग सर्वे में भाग लेते हैं, तो यह संपूर्ण समाज की वास्तविक खुशी को नहीं दर्शा सकता। भारत जैसे विविध देश में खुशी के मापदंड अलग-अलग हो सकते हैं, जिन्हें इस इंडेक्स में अनदेखा किया जाता है।

भारत को जानबूझकर गलत रैंकिंग दी जाती है?

ऑस्ट्रेलियन समाजशास्त्री सैल्वाटोर बाबोनेस ने एक साक्षात्कार में बताया कि कई अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग और इंडेक्स पूर्वाग्रह से ग्रस्त होते हैं। उन्होंने दावा किया कि वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट में भारत को जानबूझकर कम आंका जाता है। उन्होंने कहा कि इस तरह के सर्वेक्षणों में अक्सर एनजीओ, मानवाधिकार संगठन और बौद्धिक वर्ग से जुड़े लोगों की राय ली जाती है, जिससे निष्कर्ष पक्षपातपूर्ण हो सकते हैं।

क्या इंडेक्स बनाने वाली संस्थाएं किसी एजेंडे के तहत काम कर रही हैं?

इस रिपोर्ट को तैयार करने वाली संस्थाओं की फंडिंग के स्रोतों पर भी सवाल उठते हैं। SDSN को बिल गेट्स फाउंडेशन और रॉकेफेलर फाउंडेशन जैसे संगठनों से वित्तीय सहायता मिलती है, जिन पर अक्सर भारत विरोधी नैरेटिव को बढ़ावा देने के आरोप लगते रहे हैं। यह प्रश्न उठता है कि क्या इस रिपोर्ट का उद्देश्य निष्पक्ष रूप से खुशी मापना है, या फिर यह किसी विशेष एजेंडे के तहत काम कर रही है।

फिनलैंड: सबसे खुशहाल देश या आंकड़ों की बाजीगरी?

फिनलैंड को लगातार आठ वर्षों से सबसे खुशहाल देश बताया जा रहा है, लेकिन वहां के मानसिक स्वास्थ्य के आंकड़े कुछ और ही कहानी बयान करते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, फिनलैंड में 16-20% लोग मानसिक विकारों से जूझ रहे हैं और 7% लोग गंभीर अवसाद के शिकार हैं। वहां का तलाक दर 61% है, जबकि भारत में यह मात्र 1-2% है। क्या मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं और सामाजिक विघटन खुशी के संकेतक नहीं होने चाहिए?

क्या भारत की रैंकिंग अधिक होनी चाहिए?

कई भारतीय विश्लेषकों और नेताओं का मानना है कि यह इंडेक्स भारत की वास्तविक स्थिति को नहीं दर्शाता। SBI Ecowrap की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की रैंकिंग 126 की बजाय 48 होनी चाहिए थी। यह स्पष्ट करता है कि यह इंडेक्स भारतीय समाज की सांस्कृतिक और पारिवारिक संरचना को पूरी तरह से नजरअंदाज करता है।

क्या वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स विश्वसनीय है?

वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट के मानकों और निष्कर्षों को लेकर गंभीर सवाल खड़े होते हैं। यह रिपोर्ट पश्चिमी नजरिए से खुशी को मापती है और भारत जैसे सांस्कृतिक रूप से समृद्ध देश की वास्तविकता को अनदेखा करती है। क्या इसे एक सटीक मापदंड माना जा सकता है, या फिर यह केवल एक और पूर्वाग्रह से ग्रस्त रैंकिंग है? यह बहस जारी रहेगी, लेकिन भारत को अपने सांस्कृतिक और सामाजिक मूल्य के आधार पर खुशी को मापने के नए पैमाने विकसित करने की आवश्यकता है।

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वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स कैसे तैयार किया जाता है?

वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र समर्थित सस्टेनेबल डेवलपमेंट सॉल्यूशंस नेटवर्क (SDSN) द्वारा प्रकाशित की जाती है। यह गैलप वर्ल्ड पोल के डेटा पर आधारित होती है, जिसमें छह प्रमुख कारकों—प्रति व्यक्ति जीडीपी, सामाजिक समर्थन, स्वस्थ जीवन प्रत्याशा, स्वतंत्रता, उदारता और भ्रष्टाचार की धारणा—के आधार पर देशों की रैंकिंग तय की जाती है।

क्या केवल 1,000 लोगों का सर्वे पूरे देश की खुशी को माप सकता है?

नहीं, यह एक विवादास्पद पहलू है। प्रत्येक देश में केवल 1,000 लोगों से ही सर्वेक्षण किया जाता है, जो भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में संपूर्ण आबादी की खुशी को मापने के लिए अपर्याप्त हो सकता है।

भारत की रैंकिंग इतनी कम क्यों है?

विश्लेषकों का मानना है कि भारत की रैंकिंग कई कारणों से प्रभावित होती है, जिनमें पश्चिमी मापदंडों पर आधारित मूल्यांकन, छोटे सैंपल साइज, और कुछ संस्थाओं द्वारा जानबूझकर पूर्वाग्रह शामिल हो सकते हैं। भारतीय समाज की सांस्कृतिक और पारिवारिक संरचना को भी इस इंडेक्स में पर्याप्त महत्व नहीं दिया जाता।

क्या वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट विश्वसनीय है?

इसकी विश्वसनीयता पर बहस जारी है। यह रिपोर्ट केवल आत्म-रिपोर्टेड डेटा पर आधारित होती है, जिसमें व्यक्तिगत धारणाओं की भूमिका अधिक होती है। इसके अलावा, रिपोर्ट को तैयार करने वाली संस्थाओं की फंडिंग और उनके निहित स्वार्थों को लेकर भी सवाल उठाए जाते रहे हैं।