Shiv Shmashaan Holi Story | Image Source | Devotioanl Image
Shiv Shmashaan Holi Story: कैलाश पर्वत पर ध्यानमग्न भगवान शिव के मुख पर असीम शांति और दिव्य मुस्कान थी। यह देखकर माता पार्वती ने पूछा, “स्वामी! यह कौन सा आनंद है जो त्रिलोक में केवल आपको प्राप्त हुआ है? आप ध्यान में हैं, फिर भी आपके मुख पर संतोष है, न कोई लालसा, न कोई इच्छा। क्या यह आनंद धरती के प्राणियों को भी मिल सकता है?”
Shiv Shmashaan Holi Story: शिवजी ने आँखें खोलीं और मंद-मंद मुस्काते हुए बोले, “देवी! इस आनंद का रहस्य एक कथा में समाया है। सुनो—मैं मंदिर में राम-राम जप रहा था, दिन चढ़ा, शाम ढली और रात आई। पुजारी ने कहा, ‘अब रामजी विश्राम करेंगे,’ और मंदिर के द्वार बंद कर दिए। मैं राम की खोज में भटकने लगा। गंगा किनारे बैठा रहा। सुबह हुई, तो मैंने देखा कि एक अर्थी जा रही थी और उसके साथ लोग कह रहे थे, ‘राम नाम सत्य है।’ मैं इस धुन में बहता हुआ श्मशान तक जा पहुँचा। वहाँ मैंने देखा कि जो राम घर, मंदिर, जंगल, पर्वत, नदी और सागर में नहीं मिले, वे श्मशान की राख में व्याप्त थे। तब मुझे सत्य का बोध हुआ।” शिव आगे बोले, “श्मशान में जलती चिता, भस्म होती देह—इन सबमें मुझे राम ही राम मिले। तब मैंने निश्चय किया कि मैं इसी राख में रमूँगा। राख ही सत्य है, मृत्यु है, मुक्ति है, और यही मोक्ष का द्वार भी खोलती है। यही चेतना है, यही चिंतन है। इस एक सफेदी में मैंने जीवन के सारे रंग पा लिए हैं, और यही मेरे आनंद का कारण भी है।”
Shiv Shmashaan Holi Story: शिव ने आगे कहा, “देवी! धरती पर रहने वालों के लिए यह आनंद नया नहीं है। वे अपने संघर्षों में भी मस्त रहते हैं। जो प्रतिदिन अपने जीवन का संग्राम लड़ते हैं, जो जन्म और मृत्यु के चक्र में जीते हैं, वे सच्चे आनंद को जानते हैं। उनका सुख माता-पिता के आशीर्वाद, पत्नी के प्रेम, बच्चों के संतोष और मित्रों की संगति में बसा है। कभी-कभी तो मैं सोचता हूँ कि शिव मैं हूँ या वे! वे भी विष पीकर जी रहे हैं और फिर भी मुस्कुरा रहे हैं। यही मेरी मुस्कान का रहस्य है। मैं उनके रंग में रंग जाता हूँ, उनकी भाँति भस्म से लिपट जाता हूँ और श्मशान में होली खेलता हूँ।”
Shiv Shmashaan Holi Story: पार्वती ने कहा, “स्वामी! इसे और विस्तार से समझाइए।” शिव बोले, “प्रिये! वैसे तो सभी उत्सवों का आध्यात्मिक पक्ष गहन है, परंतु होली का महत्व अत्यंत अनोखा है। यह दो धाराओं में विभाजित है—एक कृष्ण और राधा की प्रेममयी होली, और दूसरी मेरी, श्मशान की होली। जब मैं श्मशान में बैठता हूँ, त्रिशूल अलग रख देता हूँ, वासुकि को शांत करता हूँ, गंगा को पुनः जटा में समाहित कर लेता हूँ, तब मेरी मुद्रा त्रिभंगी हो जाती है। मैं हाथ उठाकर उसे धरती के समानांतर करता हूँ और फिर धीरे-धीरे हृदय की ओर लाता हूँ। यह आत्माओं के जागरण की मुद्रा है। जब आत्माएँ इस संकेत को समझती हैं, तो उल्लास से भर उठती हैं। फिर वे आनंद कैसे प्रकट करें? तब मैं अपनी भस्म उठाकर आकाश में उछाल देता हूँ और स्वयं को राख में लपेट लेता हूँ। मेरे गण भी यही करते हैं और सब अवधूत बन जाते हैं। यही तो होली है! यहाँ भक्त भी भगवान बन जाते हैं और भगवान भी उन्हीं के रंग में रंग जाते हैं। यह आत्मा के जागरण का पर्व है।” शिव बोले, “देखो, संसार में आत्माएँ होली खेल रही हैं। यही श्मशान की होली है—जहाँ जीवन और मृत्यु एक ही रंग में मिल जाते हैं, जहाँ राख में समाहित चेतना परमानंद का अनुभव कराती है।”