प्रयागराजः Mahant Ravindra Puri on Sadhvi Harsha Richhariya, प्रयागराज के महाकुंभ में चर्चित मॉडल और एंकर हर्षा रिछारिया को लेकर अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी ने एक अहम बयान दिया। उन्होंने हर्षा को मां भगवती का स्वरूप बताते हुए कहा कि वह उत्तराखंड की बेटी हैं और उनके प्रति कोई भी गलत टिप्पणी करना अनुचित होगा। महंत ने कहा कि साध्वी बनने की प्रक्रिया लंबी होती है और इसमें समय लगता है। किसी को तुरंत संत मान लेना या निर्णय लेना सही नहीं है, क्योंकि कई बार साधु बनने की चाह रखने वाले गृहस्थ जीवन में लौट जाते हैं।
महंत ने यह भी कहा कि हर्षा रिछारिया साध्वी बनेंगी या विवाह करके घर बसाएंगी, यह उनका निजी निर्णय है और इसे उन्हीं पर छोड़ देना चाहिए। उन्होंने जोर दिया कि वैराग्य अलग-अलग कारणों से आ सकता है, जैसे गरीबी, अमीरी, किसी परिजन की मृत्यु, या कभी-कभी क्षणिक प्रेरणा से। उन्होंने स्वामी विवेकानंद, गौतम बुद्ध और भगवान महावीर के उदाहरण देकर बताया कि वैराग्य किसी भी परिस्थिति में जन्म ले सकता है।
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ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती द्वारा परम धर्म संसद में सनातन संरक्षण परिषद (सनातन बोर्ड) के गठन की घोषणा पर महंत रवींद्र पुरी ने विरोध जताया। उन्होंने स्पष्ट किया कि उन्हें इस बोर्ड के बारे में कोई जानकारी नहीं है और यह उनकी निजी पहल हो सकती है।
महंत ने कहा कि सनातन बोर्ड का उद्देश्य मठ-मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराना होना चाहिए। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि बोर्ड में सभी अखाड़ों को शामिल किया जाना चाहिए और इसमें ईमानदार सदस्य होने चाहिए। महाकुंभ के दौरान 27 जनवरी को होने वाली धर्म संसद में इस मुद्दे पर चर्चा होगी। उन्होंने कहा कि जल्दबाजी में बोर्ड का गठन करना उचित नहीं होगा, बल्कि साधु-संतों से चर्चा के बाद इसका स्वरूप तय किया जाना चाहिए।
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के मकर संक्रांति पर प्रयागराज के महाकुंभ में न जाकर हरिद्वार में गंगा स्नान करने को लेकर भी महंत रवींद्र पुरी ने अपनी राय दी। उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव भले ही प्रयागराज न आए हों, लेकिन हरिद्वार में गंगा में स्नान कर आस्था व्यक्त करना भी सराहनीय है। महंत ने कहा, “अखिलेश यादव एक अच्छे इंसान हैं, और गंगा स्नान कर अपने पाप धोने का उनका निर्णय स्वागत योग्य है।”
इस प्रकार, महाकुंभ में उठ रहे विभिन्न मुद्दों पर महंत रवींद्र पुरी ने अपने विचार साझा किए और संत समाज को संयम और सोच-समझकर निर्णय लेने की सलाह दी।
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