India China Conflicts in Tawang Youngste: ड्रैगन अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। एक बार फिर उसने भारत के खिलाफ सिर उठाने की कोशिश की हैं। अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले के यांग्से में आज यानी सोमवार को भारत चीन के सैनिकों में झड़प हुई है। बताया जाता है कि 20 से 30 सैनिक (दोनों तरफ) के कई सैनिक घायल हुए हैं। इसमें 6 जवानों का गुवाहाटी के अस्पताल में इलाज चल रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक झड़प 9 दिसंबर को हुई थी। वहीं रक्षा मंत्रालय के अनुसार ये घटना 9 दिसंबर 2022 की बताई जा रही है।
खबरों के अनुसार चीन की पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी LAC तक पहुंच गए थे। चीनी सैनिकों के इस कदम का भारतीय सैनिकों ने करारा जवाब दिया है। इस झड़प के बाद भारत के कमांडरों ने शांति बहाल करने के लिए चीन के कमांडर के साथ फ्लैग मीटिंग की है।
Indo-China soldiers clash in Tawang Arunachal : बता दें कि दोनों देशों की सेना के बीच तल्खी पैदा होने का ये पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी गलवान में दोनों देशों के सैनिकों के बीच खूनी संघर्ष हो चुका है। अक्टूबर 2021 में अरुणाचल प्रदेश के यांगसे में भी दोनों देशों के सैनिकों में विवाद हुआ था। 15 जून, 2020 की घटना के बाद यह अपनी तरह की पहली घटना है। तब लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ हुई हिंसक झड़प में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे और कई अन्य घायल हो गए थे। इस झड़प में चीन के भी कई सैनिक मारे गए थे।
India China Faceoff: बता दें कि अरुणाचल प्रदेश में तवांग सेक्टर में एलएसी के साथ कुछ क्षेत्रों में दोनों पक्ष अपने दावे की सीमा तक क्षेत्र में गश्त करते हैं। 2006 से यही चलन है। क्षेत्र में गश्त करते समय भारतीय और चीनी सैनिकों का अक्सर आमना-सामना होता है। दोनों देशों के बीच पिछले 17 महीने से तनाव जारी है।
आइए जानने की कोशिश करते हैं कि इस संघर्ष की नौबत क्यों आ रही है? दोनों देशों के बीच आखिर बार-बार झड़प क्यों होती है? साल 1962 में दोनों के बीच युद्ध क्यों हुआ था? 1962 के बाद कब-कब दोनों देशों में तनाव चरम पर रहा?
दरअसल, भारत और चीन के बार्डर की पूरी तरह से मैपिंग नहीं हुई है। यह दुनिया की ऐसी सबसे बड़ी सीमा भी मानी जाती है, जिसकी पूरी तरह से मैपिंग नहीं हो सकी है। भारत मैकमोहन लाइन को वास्तविक सीमा मानता है, जबकि चीन इसे सीमा नहीं मानता। इसी लाइन को लेकर 1962 में भारत और चीन के बीच जंग भी हुई थी, क्योंकि चीन ने लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश समेत कई जगहों पर भारतीय जमीन पर कब्जा कर लिया था। चीन का यह कब्जा 59 साल बाद आज भी कायम है। जहां तक चीन का कब्जा है, वहां तक की सीमा लाइन ऑफ ऐक्चुअल कंट्रोल (LAC) या वास्तविक नियंत्रण रेखा के नाम से जानी जाती है।
पेट्रोलिंग के दौरान कुछ चीनी सैनिक भारतीय सीमा में घुस आए। चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के सैनिकों को भारतीय सैनिकों ने वापस खदेड़ दिया। दोनों देशों के बीच पूर्वी सीमा पर लद्दाख में होने वाली हाई-लेवल मिलिट्री मीटिंग से पहले इस घटना के बारे में जानकारी बाहर आई। कोर कमांडर लेवल की ये बातचीत अगले तीन से चार दिन में होनी है। सेना से जुड़े सूत्रों का कहना है कि कुछ घंटे चला तनाव आपसी बातचीत से बाद खत्म हो गया। वैसे इस तनाव में भारतीय डिफेंस को किसी तरह का नुकसान नहीं हुआ है।
चीन ने 20 अक्टूबर 1962 को भारत हमला बोल दिया था। बहाना- विवादित हिमालय सीमा ही थी, लेकिन मुख्य वजह कुछ और मुद्दे भी थे। इनमें सबसे प्रमुख 1959 में तिब्बती विद्रोह के बाद दलाई लामा को शरण देना था। चीन ने लद्दाख के चुशूल में रेजांग-ला और अरुणाचल के तवांग में भारतीय जमीनों पर अवैध कब्जा कर लिया था। इसके साथ ही चीन ने भारत पर चार मोर्चों पर एक साथ हमला किया। यह मोर्चे- लद्दाख, हिमाचल, उत्तराखंड और अरुणाचल थे। इस जंग में चीन को जीत मिली थी। हालांकि, तब भारत युद्ध के लिए तैयार ही नहीं था। चीन ने एक महीने बाद 20 नवम्बर 1962 को युद्ध विराम की घोषणा कर दी।
1967- नाथू ला दर्रे के पास टकराव
1967 का टकराव तब शुरू हुआ जब भारत ने नाथू ला से सेबू ला तक तार लगाकर बॉर्डर की मैपिंग कर डाली। 14,200 फीट पर स्थित नाथू ला दर्रा तिब्बत-सिक्किम सीमा पर है, जिससे होकर पुराना गैंगटोक-यातुंग-ल्हासा सड़क गुजरती है। 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान चीन ने भारत को नाथू ला और जेलेप ला दर्रे खाली करने को कहा। भारत ने जेलेप ला तो खाली कर दिया, लेकिन नाथू ला दर्रे पर स्थिति पहले जैसी ही रही। इसके बाद से ही नाथू ला विवाद का केंद्र बन गया। भारतीय सीमा पर चीन ने आपत्ति की और फिर सेनाओं के बीच हाथापाई व टकराव की नौबत आ गई। कुछ दिन बाद चीन ने मशीन गन से भारतीय सैनिकों पर हमला किया और भारत ने इसका जवाब दिया। कई दिनों तक ये लड़ाई चलती रही और भारत ने अपने जवानों की पोजिशन बचाकर रखी। चीनी सेना ने बीस दिन बाद फिर से भारतीय इलाके में आगे बढ़ने की कोशिश की। अक्टूबर 1967 में सिक्किम तिब्बत बॉर्डर के चो ला के पास भारत ने चीन को करारा जवाब दिया। उस समय भारत के 80 सैनिक शहीद हुए थे, जबकि चीन के 300 से 400 सैनिक मारे गए थे।
चीन ने 1975- अरुणाचल के तुलुंग में अटैक किया
1967 की शिकस्त चीन कभी हजम नहीं कर पाया और लगातार सीमा पर टेंशन बढ़ाने की कोशिश करता रहा। ऐसा ही एक मौका 1975 में आया। अरुणाचल प्रदेश के तुलुंग ला में असम राइफल्स के जवानों की पेट्रोलिंग टीम पर अटैक किया गया। इस हमले में चार भारतीय जवान शहीद हो गए। भारत ने कहा कि चीन ने LAC पर भारतीय सेना पर हमला किया, लेकिन चीन ने भारत के दावे को नकार दिया।
तवांग में 1987 में दोनों देशों के बीच टकराव
1987 में भी भारत-चीन के बीच टकराव देखने को मिला, ये टकराव तवांग के उत्तर में समदोरांग चू इलाके में हुआ। भारतीय फौज नामका चू के दक्षिण में ठहरी थी, लेकिन एक IB टीम समदोरांग चू में पहुंच गई, ये जगह नयामजंग चू के दूसरे किनारे पर है। समदोरंग चू और नामका चू दोनों नाले नयामजंग चू नदी में गिरते हैं। 1985 में भारतीय फौज पूरी गर्मी में यहां डटी रही, लेकिन 1986 की गर्मियों में पहुंची तो यहां चीनी फौजें मौजूद थीं। समदोरांग चू के भारतीय इलाके में चीन अपने तंबू गाड़ चुका था, भारत ने चीन को अपने सीमा में लौट जाने के लिए कहा, लेकिन चीन मानने को तैयार नहीं था। भारतीय सेना ने ऑपरेशन फाल्कन चलाया और जवानों को विवादित जगह एयरलैंड किया गया। जवानों ने हाथुंग ला पहाड़ी पर पोजीशन संभाली, जहां से समदोई चू के साथ ही तीन और पहाड़ी इलाकों पर नजर रखी जा सकती थी। लद्दाख से लेकर सिक्किम तक भारतीय सेना तैनात हो गई। हालात काबू में आ गए और जल्द ही दोनों देशों के बीच बातचीत के जरिए मामला शांत हो गया। हालांकि, 1987 में हिंसा नहीं हुई, न ही किसी की जान गई।
2017- डोकलाम में 75 दिन तक सेनाएं आमने-सामने डटी रहीं
डोकलाम की स्थिति भारत, भूटान और चीन के ट्राई-जंक्शन जैसी है। डोकलाम एक विवादित पहाड़ी इलाका है, जिस पर चीन और भूटान दोनों ही अपना दावा जताते हैं। डोकलाम पर भूटान के दावे का भारत समर्थन करता है।
जून, 2017 में जब चीन ने यहां सड़क निर्माण का काम शुरू किया तो भारतीय सैनिकों ने उसे रोक दिया था। यहीं से दोनों पक्षों के बीच डोकलाम को लेकर विवाद शुरू हुआ था भारत की दलील थी कि चीन जिस सड़क का निर्माण करना चाहता है, उससे सुरक्षा समीकरण बदल सकते हैं। चीनी सैनिक डोकलाम का इस्तेमाल भारत के सिलिगुड़ी कॉरिडोर पर कब्जे के लिए कर सकते हैं। दोनों देशों के सीमाएं 75 दिन से ज्यादा वक्त तक आमने-सामने डटी रहीं, लेकिन कोई हिंसा नहीं हुई थी।
2020 गलवान में 10 महीने चले टकराव के बाद पीछे हटी सेनाएं
मई-जून 2020 में दोनों देशों के सैनिकों के बीच टकराव शुरू हुआ। चीन ने 27 साल पुराने समझौते को तोड़ा। कुछ जगहों पर हिंसक झड़प भी हुई। करीब 45 साल बाद दोनों देशों के बीच खूनी संघर्ष देखने को मिला, जिसमें भारत के बीस जवान शहीद हुए। इस झड़प में 40 चीनी सैनिक भी मारे गए। 10 महीने बाद दोनों देशों के बीच अपनी सेनाओं को पीछे हटाने को लेकर सहमति बनी। दोनों देशों ने अप्रैल 2020 से पैंगॉन्ग लेक के नॉर्थ और साउथ बैंक पर जो भी कंस्ट्रक्शन किए थे, उन्हें हटाने और पहले की स्थिति कायम करने को राजी हुए।
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