Open Window Special: अपने मन को जानने के ये चार तरीके, अगर बनना है सफल तो आयु के इन संधिकालों के समय रहें ज्यादा सावधान, Psycho analysis

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  • Publish Date - June 20, 2022 / 01:41 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 07:54 PM IST

बरुण सखाजी

एसोसिएट एक्जेक्यूटिव एडिटर,आईबीसी-24

जीवन में चार बार ऐसा होता है जब हम बड़े बदलावों से गुजरते हैं। यह आयु के संधिकाल होते हैं। इस दौरान जीवन डिट्रैक करता है। पहला चरण तब आता है जब हम बालपन से किशोर अवस्था में प्रवेश करते हैं। इसका दूसरा चरण किशोर अवस्था से जवानी में प्रवेश के समय आता है। तीसरा समय जवानी के ढलान पर आता है और चौथा समय जवानी से बुढ़ापे में प्रवेश के समय आता है। आध्यात्मिक भाषा में इसे आश्रमों में विभाजित करके देखने की कोशिश की गई है। मनोविज्ञान इसे शारीरिक बदलावों  से परखता है। इन आयुवर्गों में अति सावधानी की जरूरत होती है। मन के भीतर की इन घटनाओं और अभिविचारों को सिंक्रोनाइज करके बाह्य शिक्षा या मार्गदर्शन का एक ब्लेंड बना दिया जाए तो ये कालखंड रोचक और संकट मोचक हो सकते हैं।

बालपन से कैशोर्य की उम्र

इस आयु को मनोविज्ञान की भाषा में मातृ नियंत्रित काल माना गया है। इस दौरान शारीरिक बदलाव से अभिप्रेरित विचार काम करते हैं। इसे अध्यात्म और मस्तिष्क के व्यवहार विज्ञान में जिज्ञासा का उत्थान काल भी कहा जाता है। इस समय का सदुपयोग हो तो यह जीवन की नींव बनकर उभरता है। इसी समय अधिकतर बच्चों में दुर्गुण भी आते हैं। इस दौरान सबसे ज्यादा सावधानी के साथ अगर सही गुण भी इन्सर्ट किए जाएं तो जीवन संवर सकता है।

किशोर से जवानी का संधिकाल

यह आयु का सबसे अहम संधिकाल होता है। इस दौरान ऊर्जा और ऊर्जा की खपत दोनों के विकल्प खुलते हैं। जैसे हम भारी तनख्वा की नौकरी भी करें और बाजार भी हमारे सामने खुला हो। इस कालखंड में ऊर्जा का एल्गोरिदम काम करता है। वह किस दिशा में सिंक्रोनाइज होगा, कहा जाना संभव नहीं हो पाता। अगर इस समय पर ऊर्जा का सही उपयोग और दिशा मिल जाए तो समझिए जीवन  में आण्विक रूप से बढ़त मिलनी शुरू होती है।

जवानी का ढलान काल

यह सबसे खतरनाक होता है। हम बालपन से कैशोर्य में आए जिज्ञासा हुई। कैशोर्य से जवानी में आए तो उर्ध्व ऊर्जा का खंड आया। इस समय आपने अपने आपको बनाया। लेकिन जब ढलान काल आया तो उपलब्धियों की पूंजी होती है। ढलान काल फिर से जवानी में ले जाकर यौन भावनाओं को प्रेरित करता है। यहीं से भी गिरने की पूरी संभावना रहती है। इस गिरावट से बच निकले तो समझिए स्थापित सफल व्यक्ति बन जाएंगे।

जवानी से बुढ़ापे में प्रवेशकाल

इस संधिकाल में निराश और न कर पाने के अफसोस घेरते हैं। अगर हमने इन पर विजय हासिल कर ली तो समय अच्छा। क्योंकि यह समय  अपने संघर्ष को जस्टीफाइ करके फलीभूत न हो पाने के बहाने खोजता है। इन बहानों के रूप में निराशा स्पाई बनकर हमें घेरती है। हमारे मन को ताकती है। अगर यह समय ठीक से संभाल लिया जाए तो अंत बहुत  अच्छा होगा।

जीवन के  इन चार अवसरों को सुअवसरों में बदलने का हुनर अगर हममें है तो समझिए हम बहुत आसानी से अपने जीवन की सार्थकता को प्राप्त हो सकते हैं।