100 days of Yogi Government 2.0: योगी सरकार के लिए चुनौती भरे रहे 100 दिन, कैसा रहा कार्यकाल पढ़ें IBC Pedia पर

सरकार बनते ही एक के बाद कई चुनौतियां सामने आती गईं। राजनीतिक तौर पर सबसे बड़ी चुनौती सदन में योगी के सामने अखिलेश यादव का होना है, विधानसभा में अबतक सीएम योगी एकमात्र और एकछत्र नेता थे उनके सामने विपक्ष का कोई नेता उस कद का नहीं था जो उनके सामने टिक पाता।

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  • Publish Date - July 4, 2022 / 01:46 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 07:49 PM IST

100 days of Yogi Government 2.0: लखनऊ। बीते 100 दिन पहले जब दो तिहाई बहुमत के साथ योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार दोबारा सत्ता में लौटी तो लगा मानो अब योगी आदित्यनाथ बेहद ही आसानी से सरकार चला लेंगे और 5 साल का उनका प्रशासनिक अनुभव उन्हें सबसे आसान कार्यकाल देने जा रहा है, लेकिन दूसरा कार्यकाल सीएम योगी के लिए कांटो भरा ताज जैसे ही रहा है। सरकार बनते ही हर दिन नई चुनौतियां योगी के सामने आईं जिससे साफ पता चला कि योगी के लिए उनका दूसरा कार्यकाल कहीं ज्यादा चुनौती भरा होने वाला है।>>*IBC24 News Channel के WhatsApp  ग्रुप से जुड़ने के लिए  यहां Click करें*<<

सबसे पहले योगी के सामने चुनौतियों की शुरुआत मंत्रिमंडल गठन से हुई, माना गया सीएम योगी के मंत्रिमंडल में योगी की नहीं चली और अपवादों को छोड़कर ये मंत्रिमंडल बीजेपी संगठन और केंद्र ने अपनी पसंद का बनाया, दोनों उपमुख्यमंत्री संगठन की पसंद और केंद्र की सहमति से बने और दिनेश शर्मा और महेंद्र सिंह जैसे नाम मंत्रिमंडल से बाहर कर दिए गए। सीएम योगी के लिए ये शुरुआती झटका इसलिए था क्योंकि दोनों ही उनके खास माने जाते रहे हैं।

पहली बैठक में योगी ने दिया मंत्रियों को संदेश

100 days of Yogi Government 2.0: केशव मौर्य को हार के बावजूद डिप्टी सीएम बनाया जाना और दिनेश शर्मा को हटाकर ब्रजेश पाठक को डिप्टी सीएम बनाना भी सीएम योगी के लिए सुखद संकेत नहीं था लेकिन सीएम योगी ने इसे खामोशी से स्वीकार कर लिया, पिछले तीन महीने में एक भी मौका ऐसा नहीं आया जब सीएम की मंत्रिमंडल को लेकर कोई शिकायत आई हो लेकिन मंत्रिमंडल की शपथ के तुरंत बाद सीएम ने अपने पहली अनौपचारिक कैबिनेट बैठक में ये साफ कर दिया था कि भले ही मंत्री चुनने में उनकी कम चली हो लेकिन मंत्रिमंडल से मंत्रियों को हटाने का अधिकार उनके ही पास है और अगर कोई गड़बड़ हुई तो अपने उस अधिकार का इस्तेमाल करने में वो कतई नहीं हिचकेंगे।

अखिलेश यादव ने योगी के खिलाफ संभाला मोर्चा

सरकार बनते ही एक के बाद कई चुनौतियां सामने आती गईं। राजनीतिक तौर पर सबसे बड़ी चुनौती सदन में योगी के सामने अखिलेश यादव का होना है, विधानसभा में अबतक सीएम योगी एकमात्र और एकछत्र नेता थे उनके सामने विपक्ष का कोई नेता उस कद का नहीं था जो उनके सामने टिक पाता। पूरे पांच साल योगी आदित्यनाथ सदन में छक्के दर छक्के लगाते रहे और विपक्ष धार विहीन दिखाई दिया लेकिन अखिलेश यादव ने संसद से इस्तीफा देकर सदन में उनके लिए चुनौती खड़ी कर दी। अब चाहे सदन में सवाल जबाब हो या पक्ष- विपक्ष की बहस, अखिलेश यादव एक चुनौती के तौर पर उभरे हैं, चाहे केशव मौर्य पर अखिलेश यादव का बिफरना हो या पल्लवी पटेल का हमला, सदन के भीतर 124 सदस्यों वाले सपा गठबंधन ने दिखा दिया कि बेशक वो सत्ता में नहीं आ पाए लेकिन सदन में वो आसानी से अब काबू में आने वाले नहीं हैं।

ज्ञानवापी विवाद ने खड़ी की चुनौती

इन 100 दिनों में काशी ज्ञानवापी मस्जिद में कथित शिवलिंग का मिलना और इस पर दोनों पक्षों की भावनाओं को काबू में करना भी आसान नहीं था जब ऐसा लगा कि अदालत के आदेश के बावजूद ज्ञानवापी का सर्वे नहीं हो पायेगा और मुस्लिम पक्ष ने सर्वे मस्जिद में नहीं होने देने की ठान ली और प्रशासन के हाथ पांव फूल गए तब प्रस्तावित सर्वे के एक दिन पहले सीएम योगी ने काशी विश्वनाथ मंदिर का रूख किया और तब जाकर प्रशासन को विश्वास आया और फिर जाकर ये सर्वे हो पाया।

नूपुर शर्मा को लेकर यूपी में हुए हिंसक प्रदर्शन

बड़ी चुनौती का एक स्वरूप नूपुर शर्मा के विवादित टिप्पणी के बाद आया जब प्रदेश भर में जुमे की नमाज के बाद कई जिलों में पत्थरबाजी की घटनाएं हुईं, कानपुर प्रयागराज और अमरोहा में हालात काबू से बाहर होते नजर आये तो योगी सरकार ने कड़ा रुख अख्तियार कर लिया।

चुनौती कानपुर में इसलिए ज्यादा थी क्योंकि जिस दिन प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति कानपुर में थे, उसी दिन कानपुर में पत्थरबाजी से दंगे जैसे हालात बन गए, लेकिन कानपुर से लेकर प्रयागराज तक योगी ने सख्त तेवर अपना लिए, कानपुर में चंद्रेश्वर हाता पर पत्थरबाजी और प्रयागराज में पुलिस पर हमला हो या पुलिस वैन जलाया जाना। योगी सरकार ने कड़ा रुख अपनाते हुए सख्त कार्रवाई की, ताबड़तोड़ गिरफ्तारियों के बाद हिंसा के मुख्य आरोपी जावेद मोहम्मद उर्फ जावेद पंप के दो मंजिला घर को तीन बुलडोजर लगाकर ढहा दिया गया।

ऐसे चला बाबा का बुलडोजर

प्रयागराज विकास प्राधिकरण ने जावेद पंप के घर को ढहाने की घटना को जायज ठहराते हुए कहा कि जावेद पंप का घर नाजायज तौर पर बिना किसी पास नक्शे पर बनाया गया था इसलिए इसे ढहा दिया गया और इसका हिंसा से कोई ताल्लुक नहीं है लेकिन जावेद पंप की जेएनयू में पढ़ने वाली बेटी आफरीन ने इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय बना दिया और सरकार को अपनी बात सिद्ध करने में मुश्किल हो रही है। हालांकि, सीएए और एनआरसी की तर्ज पर योगी प्रशासन ने इसे भी लगभग कुचल दिया और पीडीए ने भी जावेद पंप के घर को अदालत में अवैध घोषित कर दिया।

आजम खान अखिलेश के लिए बने मुसीबत

आजम खान का जेल से बाहर आना योगी सरकार के लिए चुनौती से कहीं ज्यादा उनके लिए मुफीद साबित हुआ, क्योंकि जेल से बाहर आकर आजम खान ने योगी सरकार से कहीं ज्यादा अखिलेश के लिए मुश्किलें बढ़ा दी, आजम योगी पर तो चुप रहे लेकिन अखिलेश और मुलायम पर निशाना साधते रहे और इसी का नतीजा था कि राज्यसभा, एमएलसी चुनाव और आजमगढ़ और रामपुर चुनाव में अखिलेश योगी के लिए ज्यादा मुसीबत नहीं बन सके और योगी आदित्यनाथ ने आसानी से सपा को इन चुनावों में हरा दिया।

पहले राज्यसभा चुनाव को देखिए यहां आजम खान ने 3 में से 2 सीटें हथिया लीं, जो अखिलेश यादव को भारी पड़ा, कपिल सिब्बल जिन्होंने आजम खान को बेल दिलाई उन्हें अखिलेश यादव ने राज्यसभा भेजा जबकि आजम के ही एक और करीबी जावेद अली को भी सपा ने राज्यसभा भेजा, इन दोनों पर आजम खान का टैग था लेकिन जैसे ही तीसरी सीट के लिये डिंपल यादव का नाम आया, सिर्फ नाम ही नहीं आया बल्कि अखिलेश यादव सचमुच डिंपल को राज्यसभा भेजना चाहते थे, उनके पर्चे खरीदकर तैयार किये जा चुके थे लेकिन जयंत चौधरी ने आखिरी वक्त में जो दबाव बनाया उसने अखिलेश को डिंपल यादव का पर्चा वापस लेने को मजबूर कर दिया। कुछ ऐसा ही विधान परिषद चुनाव में भी हुआ जब 4 में से 2 आजम खान के कोटे में चली गई, जो आजम खान जेल से आने के बाद योगी के लिए मुसीबत बनने के बजाय अखिलेश यादव के लिए ही सिरदर्द बन गए जिसने योगी को नई ऊर्जा दे दी, रही सही कसर आजमगढ़ और रामपुर उपचुनाव के नतीजों ने निकाल दी।

चुनौतियों को ताज बनाया योगी ने

आजमगढ़ से निरहुआ का चुनाव जीतना योगी आदित्यनाथ की निजी जीत और अखिलेश यादव की निजी हार के तौर पर देखा जा रहा है क्योंकि निरहुआ के सामने अखिलेश यादव ने अपने सबसे विश्वस्त चेहरे और भाई धर्मेंद्र यादव को उतारा था, उधर दिनेश लाल यादव निरहुआ योगी की पसंद थे, जिन्हें जिताकर सीएम योगी ने साबित कर दिया कि संगठन कौशल में भी उन्हें महारत है और संगठन से इतर अपने उम्मीदवार को जिताने का कौशल भी है।

अग्निवीर योजना : छात्रों पर नरम दिखी सरकार

जब योगी सरकार के 100 दिन पूरे होने वाले थे तभी देशभर में अग्निवीर योजना के खिलाफ सेना के अभ्यर्थियों का अभियान जोर पकड़ गया, बिहार, यूपी और आंध्र प्रदेश में ट्रेनों में आगजनी तोड़फोड़ और देशव्यापी बंद का सिलसिला जोर पकड़ने लगा। ऐसा लगा कि ये आंदोलन पूरे देश को अपनी चपेट में ले लेगा, बिहार से सटे बलिया और जौनपुर में ट्रेन और बसों में आग की घटनाएं अचानक ही योगी सरकार के लिए चुनौती बनकर उभरीं, जलती हुए ट्रेन और बसों के दृश्य डराने वाले थे, लेकिन यहां भी योगी आदित्यनाथ पास हो गए और कई मोर्चों पर इस चुनौती को उन्होंने सामने से लिया। कुछ सख्ती और पुलिस अधिकारियों को फील्ड पर उतारने की रणनीति काम आई।

पुलिस अधिकारी समझाते ज्यादा और डराते कम नजर आये, गिरफ्तारी में भी संवेदनशीलता बरती गई, सेना के अभ्यर्थियों को जो किसी पार्टी से जुड़े नहीं थे उन्हें पुलिस ने समझाने पर जोर दिया और पुलिसिया कार्रवाई से उन्हें अलग रखा, धीरे धीरे योगी का ये फार्मूला काम आया, नाराजगी के बावजूद सेना के अभ्यर्थियों ने आंदोलन से दूरी बना ली और राजनीतिक आंदोलन से योगी सरकार ने आसानी से निपट लिया।

लाउडस्पीकर पर काम आई रणनीति

कुल मिलाकर योगी के 100 दिन चुनौतियों भरे जरूर रहे लेकिन इसने एक योगी की नई तस्वीर सामने आई जो कहीं ज्यादा समावेशी है। धार्मिक स्थलों से लाउडस्पीकर हटाने में योगी की देशभर में तारीफ हुई, क्योकि मस्जिदों के लाउडस्पीकर पर हाथ लगाने के पहले योगी ने गोरखपुर के अपने मठ गोरक्षनाथ पीठ के लाउडस्पीकर को हटाया फिर मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि के लाउडस्पीकर को हटवाया उसके बाद पूरे प्रदेश के मस्जिदों और मंदिरों से लाउडस्पीकर हटाना आसान हो गया। महज कुछ दिनों के अभियान से ही 55 हजार लाउडस्पीकर धार्मिक स्थलों से उतार लिए गए।

 

बता दें कि यूपी में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार मार्च 2017 में पहली बार आई थी। 2017 से 2022 तक पांच साल के कार्यकाल में सरकार की ओर से दावा किया गया था कि उसने इस कार्यकाल में बेहतर कानून-व्यवस्था और अपराधियों पर नकेल कसने के अपने एजेंडे को पूरा किया। अपराधियों की गोली का जवाब गोली से देने की छूट हो या फिर अपराधियों की संपत्ति पर बुलडोजर चलाना हो, इस उपलब्धि को सरकार ने इस साल के फरवरी-मार्च में हुए विधानसभा चुनाव में लोगों के सामने रखा। मार्च 2022 में योगी आदित्यनाथ दूसरी बार यूपी के सीएम बने, अब सरकार अपने दूसरे कार्यकाल के भी 100 दिन पूरे करने जा रही है, इन 100 दिनों में कानून व्यवस्था और अपराध नियंत्रण के प्रयास किस तरह से किए गए हैं इस पर एक नजर डालते हैं।

100 दिनों में पुलिस मुठभेड़ के आंकड़े (25 मार्च 2022 से 1 जुलाई 2022 तक)

– कुल एनकाउंटर 525
– गिरफ्तार अपराधी 1034
– पुलिस मुठभेड़ में घायल बदमाश 425
– पुलिस मुठभेड़ में मारे गए 5 बदमाश
– बदमाशों से मुठभेड़ में 68 पुलिसकर्मी भी घायल हुए.

जोनवार मुठभेड़ के आंकड़े इस प्रकार हैं

– मेरठ जोन 193
– बरेली जोन 62
– आगरा जोन 55
– लखनऊ जोन 48
– लखनऊ कमिश्नरी 6
– वाराणसी जोन 36
– गोरखपुर जोन 37
– नोएडा कमिश्नरी 44

मुठभेड़ में घायल हुए इतने पुलिस कर्मी

– मेरठ जोन में 27
– बरेली जोन 16
– गोरखपुर जोन में 10
– लखनऊ जोन में 9
– कानपुर जोन में 2
– वाराणसी जोन में 3
– लखनऊ कमिश्नरी में 1

दूसरे कार्यकाल में यूपी पुलिस ने माफिया के चिन्हिकरण की संख्या भी बढ़ा दी, प्रदेश स्तर के 50 चिन्हित माफिया के साथ-साथ डीजीपी मुख्यालय ने भी 12 माफिया को चिन्हित किया और उनके खिलाफ कार्रवाई का दौर शुरू किया गया। गैंगस्टर एक्ट में 25 मार्च 2022 से जून 2022 तक कुल 192 करोड़ 40 लाख 34 हजार 582 रुपये की संपत्ति जब्त की गई है।

– सहारनपुर के खनन माफिया और बसपा सरकार के पूर्व एमएलसी हाजी इकबाल की 127 करोड़, 93 लाख, 4 हजार, 180 रुपये की संपत्ति जब्त।
– बलरामपुर में पूर्व सांसद रिजवान जहीर की 14 करोड़ 30 लाख की संपत्ति जब्त।
– मुख्तार अंसारी की गाजीपुर और मऊ में 14 करोड़, 31 लाख की संपत्ति जब्त।
– संजीव माहेश्वरी उर्फ जीवा की मुजफ्फरनगर में 4 करोड़ की संपत्ति जब्त ।
– गैंगस्टर खान मुबारक की अंबेडकरनगर में 1 करोड़ 93 लाख की संपत्ति जब्त ।
– अतीक अहमद की प्रयागराज में 5 करोड़ की संपत्ति जब्त।
– भदोही में विजय मिश्रा की 4 करोड़, 11 लाख, 38 हजार 780 रुपये की संपत्ति जब्त।
– आजमगढ़ में ध्रुव सिंह उर्फ कुंटू सिंह की 4 करोड़, 80 लाख 9 हजार रुपये की संपत्ति जब्त।

प्रदेश स्तर के 50 माफिया के अलावा मुख्यालय स्तर पर भी 12 गैंगस्टर की 92 करोड, 18 लाख, 96 हजार, 700 रुपये की संपत्ति जब्त की जा चुकी है। इस तरह प्रदेश में चिन्हित कुल 62 माफिया की अब तक 284 करोड़, 59 लाख, 31 हजार 282 रुपये की संपत्ति जब्त की जा चुकी है।

माफिया पर दर्ज केस के ताजा आंकड़ें इस प्रकार हैं—

– चिन्हित बदमाश व माफिया 2,433
– केस दर्ज हुए 17,169
– गिरफ्तार किए गए 1,645
– कोर्ट में सरेंडर 134
– 15 के खिलाफ कुर्की की कार्रवाई की गई
– 36 लोगों पर एनएसए लगाया गया
– 788 के खिलाफ गैंगस्टर एक्ट लगा
– 618 पर गुंडा एक्ट लगा
– 47 के लाइसेंस कैंसिल हुए
– 719 पेशेवर अपराधियों की हिस्ट्री शीट खोली गई

वर्तमान में अगर चिन्हित माफियाओं की बात करें तो,

– 619 माफिया जेल में हैं।
– 1744 जमानत पर हैं।
– 18 माफिया मारे गए हैं।
– 52 चिन्हित माफिया की तलाश की जा रही हैं।

दूसरे कार्यकाल की सरकार में प्रदेश का मुख्यालय स्तर से चिन्हित 62 अपराधिक माफिया के अलावा अन्य क्षेत्र के माफिया को भी चिन्हित किया गया है, इनमें 30 खनन माफिया, 228 शराब तस्करी माफिया, 168 पशु तस्कर माफिया, 347 भू-माफिया, 18 शिक्षा माफिया और 359 अन्य माफिया शामिल हैं जिनको चिन्हित किया गया है।

योगी आदित्यनाथ सरकार के दूसरे कार्यकाल में इन एक्शन के बावजूद कई ऐसी चर्चित घटनाएं थीं, जो उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था और पुलिसिंग पर सवाल भी खड़े कर रही थी।

– ललितपुर के पाली थाने में गैंगरेप पीड़िता से थाने में रेप।
– चंदौली में दबिश के दौरान पुलिस की बर्बरता से युवती की पिटाई और फिर संदिग्ध मौत।
– प्रयागराज में एक ही परिवार के 5 लोगों की बेरहमी से हत्या।
– ऐसी आपराधिक घटनाओं के साथ-साथ दूसरे कार्यकाल में कानून व्यवस्था को बिगाड़ने की भी घटनाएं सामने आईं।
– ईद से पहले अयोध्या में आपत्तिजनक मांस व धार्मिक पुस्तक को फाड़ कर माहौल बिगाड़ने की कोशिश की गई।
– कानपुर में जुमे की नमाज के बाद हिंसा में पथराव और तोड़फोड़।
– 3 जून के बाद 10 जून को प्रयागराज, सहारनपुर, अंबेडकर नगर, मुरादाबाद समेत कई शहरों में जुमे की नमाज के बाद हिंसा हुई।
– अग्निपथ योजना के विरोध में भी बिहार से सटे बलिया जौनपुर चंदौली समेत कई शहरों में छात्रों ने प्रदर्शन किया, हिंसा हुई।

हालांकि हर बवाल पर पुलिस ने समय रहते कार्रवाई भी की और बलवाइयों को गिरफ्तार कर जेल भी भेजा। जुमे की नमाज के बाद हुई हिंसा में 10 जिलों में कुल 20 एफआईआर दर्ज की गई और अब तक 424 लोग गिरफ्तार कर जेल भेजे जा चुके हैं। अग्निपथ योजना के विरोध में 31 जिलों में कुल 82 एफआईआर दर्ज हुई जिनमें कुल 1562 पर कार्रवाई की गई, 498 को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया।

दूसरे कार्यकाल के पहले 100 को विपक्ष ने बताया खराब

कांग्रेस का कहना है कि पुरानी सरकार नई पैकिंग और रैपिंग में आई है, इस सरकार के मंत्री ही अपनी सरकार के कामों की बखिया उधेड़ रहे हैं। मौजूदा सरकार में उपमुख्यमंत्री दवा गोदाम में छापा मारते हैं तो करोड़ों की दवाई एक्सपायरी डेट की मिलती है, यह करोड़ों की दवाई पिछले बीजेपी सरकार के ही कार्यकाल में खरीदी गई थी, जो अस्पतालों तक नहीं पहुंचाई गई। कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि प्रयागराज, गोरखपुर में हुए सामूहिक हत्याकांड पुलिस के इकबाल पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं। मौजूदा बीजेपी सरकार में जो संविधान को मानता है, वो असुरक्षित है जबकि जो बीजेपी के नियम कायदे मानता है, वही सुरक्षित है। बुलडोजर के दम पर अदालतों और संविधान को ध्वस्त किया जा रहा है।

वहीं, सपा प्रवक्ता अनुराग भदौरिया की माने तो उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सरकार प्रोपेगेंडा सरकार है, मार्केटिंग वाली सरकार है। इन्वेस्टर्स समिट करते हैं लेकिन इन्वेस्टमेंट कहां हुआ यह पता नहीं, कानपुर में जब प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री मौजूद थे तो वहां बवाल हो गया, पत्थरबाजी हुई हिंसा हुई। खुफिया तंत्र और पुलिस की विफलता का सबसे बड़ा नमूना सामने आया, सपा प्रवक्ता ने कहा कि एक सप्ताह बाद लाख दावों के बीच अगले जुमे की नमाज के बाद सहारनपुर, प्रयागराज, अंबेडकर नगर समेत कई जिलों में हिंसा हुई। सड़कों पर प्रदर्शन हुए बवाल हुआ, यह इनका लॉ एंड ऑर्डर है। यह विकास की राजनीति नहीं, नफरत की राजनीति करने वाले लोग हैं।

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