The Big Picture With RKM : द बिग पिक्चर विथ आरकेएम में पिछले दिनों से हम लगातार चर्चा कर रहे है। अभी कल ही मैने बताया था कि गठबंधन सरकार की अपनी कुछ व्यवस्थाएं होती हैं मजबूरी होती है। सरकार बन तो गई लेकिन कल जो पहली पिक्चर आई थी जिसका विश्लेषण हमने बेहतरीन तरीके से किया था उसके 24 घंटे हुए हैं और अब नंबर के लिए जरूरी साथियों ने मंत्रिमंडल को लेकर डिमांड्स शुरू कर दी सबके मन में एक ही सवाल है आखिर कैसी होगी मोदी कैबिनेट?
देखिए हम पहले भी चर्चा कर रहे थे कि गठबंधन सरकार को चलाने में किस तरीके के चैलेंज या मजबूरियां होती है। वह आज दिखना शुरू हो गया, सबसे पहले तो जो मुख्य गठबंधन जो कि जेडीयू और टीडीपी है उन्होंने मीडिया के जरिए अपनी जो विश लिस्ट है वो बताना शुरू कर दी। तो सबसे पहले टीडीपी की तरफ से इस तरह की मंशा सामने आई कि वो कम से कम छह मंत्री चाहते हैं क्योंकि उनके साथ पवन कल्याण की जनसेना भी है उसके भी दो लोग जीते हैं तो वो मिलाकर छह मंत्री पद वो चाहते हैं और साथ में स्पीकर की पोस्ट भी चाहते हैं और अभी यह मांग आई नहीं है, लेकिन पहले लगातार टीडीपी इस बात की मांग करती रही है कि उनके राज्य के लिए एक स्पेशल पैकेज मिलना चाहिए जब से वह तेलंगाना से अलग हुआ है तो उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं रही है। जब टीडीपी की ये डिमांड सामने आई तो जेडीयू क्यों पीछे रहती उन्होंने कहा जी हमें भी चार मंत्री चाहिए और क्योंकि उनके भी 12 लोग हैं , अब इसके अलावा जो दल है बाकी छोटे-छोटे हैं तो उसके बाद फिर एक ये फार्मूला भी सामने आया कि जो चार एमपी हैं उस पर एक मंत्री बनाया जाए। लेकिन यह गठबंधन है अब बीजेपी अपने अकेले बलबूते पर तो सरकार बना नहीं सकती तो यह जो मांगे हैं ये बनती रहेंगी, सामने आती रहेंगी और तब तक आती रहेंगी जब तक कि पूरा मंत्रिमंडल का गठन नहीं हो जाता, लेकिन बीजेपी की तरफ से भी मीडिया के जरिए ही एक बात साफ की गई कि जो मंत्री पद या जो मंत्री सीसीएस यानी कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी उसमें होते हैं वो पद वो अपने किसी भी घटक दलों को देने के फेवर में नहीं है।
अब CCS में कौन-कौन होते हैं सीसीएस में प्रधानमंत्री तो होते ही होते हैं साथ में उसमें होम मिनिस्टर होते हैं उसमें रक्षा मंत्री होते हैं उसमें वित्त मंत्री होते हैं और उसमें आपके जो एक्सटर्नल अफेयर मिनिस्टर होते हैं विदेश मंत्री वो उसके मेंबर होते हैं पांच मेंबर्स की ये कमेटी होती है। कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी देश के बड़े सुरक्षा से रिलेटेड जो भी बड़े निर्णय होते हैं या सुरक्षा की जो बड़ी खरीदारियां होती हैं वह इस कमेटी में ही चर्चा के बाद उस पर जब निर्णय लिया जाता है तभी मान्य होता है। यह सबसे पावरफुल एक कमेटी होती है किसी भी सरकार की इसको कभी-कभी सुपर कैबिनेट भी कहते हैं। तो यह बीजेपी ने साफ कर दिया, लेकिन इससे ज्यादा जो पेचीदा मुद्दा है वह है स्पीकर का। देखिए स्पीकर जो होता है वो गठबंधन की सरकार में बहुत महत्त्वपूर्ण पोस्ट हो जाती है, क्योंकि लोकसभा में अगर नो कॉन्फिडेंस मोशन आ जाए या दलबदल की स्थिति आ जाए या जो अगर संसद को ढंग से चलाना हो इस सब की जिम्मेदारी लोकसभा स्पीकर के पास ही होती है और ऐसे में बीजेपी नहीं चाहेगी कि यह पद किसी और को जाए। क्योंकि यह देश उस क्षण को भूला नहीं है कि जब अटल बिहारी वाजपेई ने अपनी जब नो कॉन्फिडेंस मोशन में केवल एक वोट से अटल बिहारी वाजपेई हारे थे और वो वोट था गिरधर गमांग का जो कि उड़ीसा के मुख्यमंत्री बनाए जा चुके थे। कांग्रेस के थे लेकिन तब भी उन्होंने पार्लियामेंट में आके वोट दिया और जीएमसी बालयोगी ने उसको रोका नहीं वो भी टीडीपी के थे बड़ी इंटरेस्टिंग बात है उसको रोका नहीं और वाजपेई की सरकार गिर गई तो यह बीजेपी को यह याद अभी भी होगा।
इसलिए बीजेपी नहीं चाहती कि स्पीकर का पद किसी दूसरे दल को दिया जाए। लेकिन अभी यह सब चलता रहेगा। हम लगातार इस बात को डिस्कस कर रहे थे यह गठबंधन की मजबूरियां हैं ये इसके चैलेंज हैं, इस तरह की डिमांड आती रहेगी। अब तो यह बीजेपी के ऊपर है क्योंकि सबसे बड़ा दल वही है। उसी के प्रधानमंत्री हैं कि वो इन सबको अपने साथ कैसे लेकर चलें। उनकी कितनी मांगों को माने या ना माने किस तरीके से एडजस्ट करें क्योंकि अगर हम दूसरी तरफ अब देख रहे हैं तो जो बड़ा कोर एजेंडा है बीजेपी का उसके ऊपर भी ये पार्टियां जो हैं अपना-अपना स्टैंड दिखाने बताने लगी है, जैसे कि जनता दल यूनाइटेड ने आज कहा कि भाई अग्निवीर की समीक्षा होनी चाहिए। अब बड़ी धर्म संकट की बात है क्योंकि अग्निवीर की समीक्षा की बात विपक्ष भी करता है, कांग्रेस भी करते हैं राहुल गांधी भी करते हैं तो अगर वो क्या ये मान लेंगे तो क्या यह माना जाएगा कि जो विपक्ष का एजेंडा है वो सरकार मान के चला रही है और इसी तरीके से यूसीसी का है। उन्होंने कहा कि यूनिफॉर्म सिविल कोड जिसमें उन्होंने कहा कि ठीक है हम इसमें मानते हैं लेकिन इस पर सबसे चर्चा होनी चाहिए।
तो अब ये बड़ी असमंजस की स्थिति होगी बीजेपी के लिए कि किस तरीके से इन सब चीजों को आपस में एडजस्ट किया जाए। या तो ये होगा कि वो अपने कोर एजेंडा को अलग रख दे और एक सीएमपी कॉमन मिनिमम प्रोग्राम बनाए जिसके ऊपर वह शासन चलाएं। गठबंधन सरकारों में पिछले सालों में ऐसा होता रहा है एक सीएमपी बनता है, कॉमन मिनिमम प्रोग्राम बनता है जिसके पर 5 साल सरकारें चलती हैं तो यह बड़ा इंटरेस्टिंग होने वाला है यह बड़ा दिलचस्प होने वाला है कि आगे यह किस तरफ जाता है और आखिर किस तरीके से यह सरकार स्मूथ रूप से चलती है।
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