Dussehra 2024: यहां पुतला दहन नहीं बल्कि ईष्ट देवता के रूप में पूजा जाता है रावण, माना जाता है गांव का रक्षक, जानें क्या है इसके पीछे की वजह

Dussehra 2024: यहां पुतला दहन नहीं बल्कि ईष्ट देवता के रूप में पूजा जाता है रावण, माना जाता है गांव का रक्षक, जानें क्या है इसके पीछे की वजह

  • Reported By: Arun Srivastava

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  • Publish Date - October 11, 2024 / 05:46 PM IST,
    Updated On - October 11, 2024 / 05:46 PM IST

रायगढ़। Dussehra 2024: जहां देश भर में दशहरे का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के तौर पर रावण दहन के साथ मनाया जाता है। वहीं मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले के गांव भाटखेड़ी में रावण को पूजनीय माना जाता है और यहां पर रावण के पुतले का दहन न करते हुए यहाँ के लोग रावण की पूजा करते है। यहां के ग्रामीण करीब 100 वर्षों से रावण की पूजा करते आ रहे हैं। ग्रामीणों का ऐसा दावा है कि रावण उनकी मन्नतों को पूरी करता है। ग्रामीणों ने बताया कि, जब कभी गांव में कोई विपत्ति आती है तो वे लोग रावण के पास मन्नते करते हैं और रावण उन विपत्तियों को दूर करता है।

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दरअसल, राजगढ़ जिले के इस गांव भाटखेड़ी में रावण की पूजा के बारे में जब हमने ग्रामीणों से बात की तो ग्रामीणों ने बताया कि, करीब 100 वर्षों से यह परंपरा उनके गांव में पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। जहां दशहरे पर रावण का पुतला दहन ना करते हुए । रावण की पूजा की जाती है और ऐसा इसलिए किया जाता है, क्योंकि बिलकुल ऐसा ही उनके पूर्वज भी किया करते थे। कुछ ग्रामीणों ने बताया कि रावण प्रखंड पंडित था और जब रामेश्वरम से लंका तक राम भगवान को रामसेतु बनाने के पूर्व भगवान रामेश्वरम की पूजा अर्चना करनी थी। तो शास्त्रों के अनुसार उन्होंने भी रावण को ब्राह्मण के तौर पर पूजा के लिए बुलाया था और रावण शास्त्रों का ज्ञाता वहां एक विद्वान पंडित था इसी वजह से इस गांव भाटखेड़ी के लोग रावण की पूजा अर्चना करते हैं।

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Dussehra 2024: वहीं ग्रामीणों ने बताया कि, जब कभी गांव पर भी कोई भी पति आती है या गांव में किसी प्रकार का संकट आता है और वे सभी देवी देवताओं के यहां पर जब अपनी अर्जी लगा लेते हैं और फिर भी यदि वह संकट नहीं टलता तो यह ग्रामीण इस रावण की प्रतिमा के पास आकर अपनी मन्नत मांगते हैं और ग्रामीणों का दावा है कि वह मन्नत रावण पूरी भी करता है। ग्रामीणों ने अपनी मान्यताओं से जुड़े कई किस्से यहां पर बताएं। ग्रामीणों ने बताया की हर साल परंपरा के मुताबिक दशहरे के दिन गांव के अंदर बने राम मंदिर से रामलीला और राम जी की पालकी का जुलूस शुरू होता है और रावण कुंभकरण की प्रतिमा के पास पहुंचता है। जहां पर रामलीला का मंचन किया जाता है। अलग-अलग पत्र बनाए जाते हैं और उसे रामलीला के समाप्त होने के बाद गांव के बाहर बने रावण और कुंभकरण की प्रतिमाओं की पूजा विधि विधान से की जाती है जहां पर रावण को अलग-अलग तरह की मिठाइयों के भोग लगाए जाते हैं। आसपास के आने को गांव के लोग यहां रावण के सामने माथा टेक अपनी मनोकामना रखते हैं।

 

 

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