होली पर कितना भी सजग रहे, लेकिन परिस्थितियां ऐसी निर्मित होती हैं कि सावधानी हटी और दुर्घटना घटी। चारों तरफ पानी और केमीकल वाले रंगे बिखरे रहने से फर्श चिकना हो जाता है, फिसलन बढ़ जाती है, बच्चे भी दौड़ते भागते रहते हैं, ऐसे में चोट लगने सी संभावनाएं बढ़ जाती हैं। त्यौहार सबका होता है इसलिए डॉक्टर का मिलना भी थोड़ा मुश्किल होता है,तो क्यों ना हम प्राथमिक उपचार की व्यवस्था घर पर रखें। इससे चोट लगने पर हमें पूरे घर में दवाई ढ़ूढ़ने का जरुरत नहीं पड़ेगी। तत्काल उपचार मिल जाने से संक्रमण की संभावना भी कम होगी,पर हां ध्यान रखिए जैसे ही सुविधा उपलब्ध हो डॉक्टर का परामर्श जरुर ले लें। हम तो यही कहेंगे सेफ होली खेंले।
होली का रंग सबसे ज्यादा चेहरे पर ही मला जाता है, ना- नुकुर में कभी-कभी ये रंग आंखों में भी चला जाता है, शरीर में आंखे बहुत संवेदनशील होती हैं। इसलिए आंखों की विशेष देभाल जरुरी है। यदि आंखों में रंग चला जाए तो तुरंत आंखों को साफ पानी से धोएं। यदि आंखें धोने के बाद भी तेज जलन हो, तो बिना देर किए डॉक्टर को दिखाएं। आंखों पर गलती से गुब्बारा लग जाए या खून निकल आए तो पहले सूती कपड़े से आंखों को ढंकें या फोहा लगाएं। इसके बाद डॉक्टर को जरूर दिखाएं। आंखें है तो रंग हैं,इसलिए होली पर आंखों की अनदेखी ना करें…
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बाजार में बिक रहे रंगों की प्रकृति को भी पहचानने की कोशिश जरुर करनी चाहिए। होली केलिए नाए जाने वाले रंगो में कॉपर सल्फेट का भी प्रयोग किया जाता है। ये कॉपर सल्पेट त्वचा को नुकसान पहुंचा सकता है। इसके इस्तेमाल से आंखों में एलर्जी, सूजन अंधापन जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं। वहीं सिल्वर चमकीले रंग का इस्तेमाल न करें तो बेहतर होगा । इसमें एल्युमीनियम ब्रोमाइड होता है, जो त्वचा के कैंसर के लिए जिम्मेदार हो सकता है। वहीं काले रंग में उपस्थित लेड ऑक्साइड किडनी को बुरी तरह प्रभावित करता है। होली खेलें पर रसायनों से नहीं बल्कि प्राकृतिक और प्रेम के रंगा से
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होली पूरे होशो-हवास में खेलें। नशा नाश करता है, ये आपके स्वास्थ्य को तो प्रभावित करता ही है, कई बार अनहोनी घटनाओं का कारण भी बनता है। होली पर्व आपसी मेल मिलाप के लिए होता हैं, दुश्मनी और अदावट भंजाने के लिए नहीं। खुद का और दूसरों के त्यौहार पर हंसी खुशी बिखरने दें। मन का मैल धो लें और खुले दिल से सभी को गले लगाएं। सभी को होली मुबारक हो।