डिलिवरी के बाद ज्यादातर महिलाओं को आते हैं आत्महत्या के ख्याल, वजह जान हैरान हो जाएंगे आप

Postpartum Depression: डिलिवरी के बाद ज्यादातर महिलाओं को आते हैं आत्महत्या के ख्याल, you will be surprised to know the reason

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  • Publish Date - September 11, 2022 / 07:46 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 01:20 AM IST

Postpartum Depression: डिलिवरी के बाद महिला के शरीर में हुए बदलाव उसके मन को बुरी तरह प्रभावित कर सकते हैं। इतना अधिक कि उसे आत्महत्या के ख्याल आने लग सकते हैं। बच्चे के जन्म के बाद महिलाओं में जो डिप्रेशन संबंधी समस्या होती है, उसे पोस्टपार्टम डिप्रेशन कहते हैं। प्रेग्नेंसी के दौरान किसी महिला के शरीर में जितने बदलाव होते हैं, उतने ही बदलाव बच्चे के जन्म के बाद भी होते हैं। इस कारण हॉर्मोनल स्तर असंतुलित रहता है और महिलाओं को मानसिक और भावनात्मक समस्याओं का सामना बहुत अधिक करना पड़ता है।

क्यों होता है पोस्टपार्टम डिप्रेशन?

Postpartum Depression: यह एकदम पक्की बात है कि मां बनने के बाद महिला की जिम्मेदारी बहुत अधिक बढ़ जाती है। अगर परिजनों का अपेक्षित साथ ना मिले तो वह हर समय थकान से चूर रहती है। डिलिवरी के तुरंत बाद शरीर कमजोर होता है और सही देखभाल ना मिलने से कमजोरी बढ़ जाती है, जो चिढ़चिढ़ापन बढ़ाती है। शरीर का बेडौल हो जाना और बढ़ा हुआ वजन भी मासिक और भावनात्मक रूप से परेशान करता है। यदि महिला प्रफेशनल है तो काम और करियर की चिंता भी उसे सताती है।

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Postpartum Depression: पोस्टपार्टम डिप्रेशन के शुरुआती लक्षण

मूड और व्यवहार में बदलाव होना

मूड स्विंग्स की समस्या

मन उदास रहना

किसी से बात करने का मन ना होना

चिड़चिड़ापन बढ़ जाना

रोने का मन करना

किसी एक कोने में सबसे अलग बैठने की इच्छा

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कितने दिन रहता है पोस्टपार्टम डिप्रेशन का असर?

Postpartum Depression: विशेषज्ञों का मानना है कि पोस्टपार्टम डिप्रेशन की समस्या हर महिला को नहीं होती है। हालांकि करीब 70 % महिलाएं इस समस्या का सामना करती हैं। महिलाओं में लक्षणों का असर एक से दो महीने तक रह सकता है और फिर यह खुद ही ठीक हो जाते हैं, लेकिन यदि ये ठीक ना हुए और इन्हें नजर अंदाज किया गया तो स्थिति बिगड़ सकती है और फिर ये लक्षण ज्यादा गंभीर रूप में सामने आते हैं। नींद ना आना, भूख ना लगना, आत्महत्या के विचार मन में आना, बच्चे के रोने पर बहुत अधिक क्रोध आना, झगड़ालू प्रवृत्ति बढ़ना, खुद को चोट पहुंचाना, चीजें तोड़ना, फेंकन या पटकना इत्यादि इसके गंभीर लक्षण हैं।

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पोस्टपार्टम डिप्रेशन का इलाज क्या है?

Postpartum Depression: अगर दवाओं की बात छोड़ दें तो इस बीमारी का इलाज और बचाव एक ही तरह से होता है और वह है परिजनों का प्रेम, साथ और देखभाल। महिला के पति का रोल बहुत अधिक बढ़ जाता है, उसे हर कदम पर अपनी पत्नी को इस बात का अहसास करना चाहिए कि वो पूरी तरह उसके साथ है। खान-पान और दवाओं के अलावा महिला की पसंद और नापसंद का ध्यान रखते हुए में छोटी-मोटी चीजें होती रहने से उसे खुश और स्ट्रेस फ्री रखने में मदद मिलती है। ये सभी तरीके शुरुआती स्तर पर महिला को पोस्टपार्टम डिप्रेशन से बचाते भी हैं और यदि समस्या हो जाए तो इससे बाहर लाने में भी मदद करते हैं। यदि स्थिति गंभीर हो रही है तो आप काउंसलर की मदद ले सकते हैं। यदि हॉर्मोन्स का स्तर अधिक गड़बड़ लगेगा या काउंसल को जरूरी लगेगा कि आपको दवाएं लेनी चाहिए तो वो आपको सायकाइट्रिस्ट को रेफर कर देंगे।

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