नई दिल्ली । हर साल बड़े धूमधाम से वर्ल्ड बुक एंड कॉपीराइट डे मनाया जाता है। पुस्तक के जीवन महत्ता और उसकी आवश्यकता के प्रति जागरुक करने के लिए वर्ल्ड बुक एंड कॉपीराइट डे मनाया जाता है। इंसान के बचपन से स्कूल से आरंभ हुई पढ़ाई जीवन के अंत तक चलती है। लेकिन अब कम्प्यूटर और इंटरनेट के प्रति बढ़ती दिलचस्पी के कारण पुस्तकों से लोगों की दूरी बढ़ती जा रही है। यही कारण है कि लोगों और किताबों के बीच की दूरी को खत्म करने के लिए यूनेस्को ने ’23 अप्रैल’ को ‘विश्व पुस्तक दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय लिया। यूनेस्को के निर्णय के बाद से पूरे विश्व में इस दिन ‘विश्व पुस्तक दिवस’ मनाया जाता है।
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वर्ल्ड बुक एंड कॉपीराइट डे हर साल यूनेस्को द्वारा आयोजित किया जाता है। यह पहली बार 23 अप्रैल 1995 में मनाया गया था। यूनेस्को (UNESCO) ने विलियम शेक्सपीयर और मिगुएल सर्वेंटिस जैसे साहित्यकारों को रिस्पेक्ट देने के लिए 23 अप्रैल की तारीख को चुना था लेकिन वास्तव में इस दिन को पहली बार 1922 में स्पेनिश राइटर विसेंट क्लेव एंड्रेस ने मिगुएल सर्वेंटिस को याद करने और उन्हें सम्मान देने के मकसद से इस्तेमाल किया था। 23 अप्रैल 1995 में पेरिस में आयोजित यूनेस्को के जनरल कॉन्फ्रेंस के लिए एक नेचुरल च्वाइस थी। इस दिन पुस्तकों और लेखकों को विश्वव्यापी श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए और सभी को पुस्तकों तक पहुंचने के लिए प्रोत्साहित करने का प्रण लिया जाता है।
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विश्व पुस्तक का महत्व : आम सभा में यूनेस्को के द्वारा विश्व पुस्तक दिवस उत्सव की तारीख को निश्चित किया गया जो 1995 में पेरिस में रखा गया था। लगभग 100 देशों से अधिक इच्छुक लोग ऐच्छिक संगठनों, विश्वविद्यालयों स्कूलों, सरकारी या पेशेवर समूहों, निजी व्यापार आदि से जुड़ें। विश्व पुस्तक और कॉपीरइट दिवस उत्सव विश्व भर के सभी महाद्वीपों और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से लोगों को आकर्षित करता है। ये लोगों को नये विचार को खोजने और अपने ज्ञान को फैलाने में सक्षम बनाता है। किताबें विरासत का ख़जाना, संस्कृति, ज्ञान की खिड़की, संवाद के लिये यंत्र, संपन्नता का स्रोत आदि हैं।
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