First budget of india: नई दिल्ली। आज 31 जनवरी 2023 से बजट सत्र की शुरूआत हो गई है। कल वित्त मंत्री निर्मला सितारमण देश का बजट पेश करेंगी। बजट से आम लोगों को काफी उम्मीदें रहती है। देश का बजट सभी वर्गों के लोगों को ध्यान में रखकर तैयार किया जाता है। बजट एक ब्यौरा होता है जिससे देश चलता है। लेकिन क्या आप जानते है कि भारत दोश का पहला बजट कब औरकिसने पेश किया था। तो आज हम आपको बताएंगे कि भारत का सबसे पहला बजट कब पेश किया गया था।
First budget of india: भारत में बजट सत्र की शुरूआत 1860 में हुई थी। इन दिनों ढेरों शुरुआती क्रांतियों और विद्रोहों को दमन करते हुए ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’की हालत खराब थी। ऐसे में जरूरत थी खर्च और आमदनी का हिसाब-किताब रखने की। 1859 में क्वीन विक्टोरिया ने जेम्स विल्सन पर भरोसा कर उन्हे भारत भेज दिया था। जेम्स इस काम के लिए सबसे काबिल अंग्रेज माने गए थे। उन्हें बजट के अलावा टैक्स को लेकर कानून और भारत में कागज की मुद्रा की शुरुआत करवाने के लिए भारत भेजा गया था।
First budget of india: जेम्स विल्सन ने अपने करियर की शुरूआत टोपी बनाने और बेचने से हुआ था। लेकिन उनकी किस्मत में तो कुछ ओर ही था। धीरे-धीरे वे सफलता की सीढ़ियां चढ़ते गए और इतिहार के पन्नों मेम अपन नाम दर्ज कराया। जेम्स ब्रिटेन के संसद सदस्य और वित्त सचिव भी रह चुके थे। इतना ही नहीं भारत आने के बाद 1860 तक वे वायसराय की वित्त परिषद के सदस्य भी रहे।
First budget of india: बहरहाल, 1860 में भारत का सबसे पहला आम बजट पेश किया गया और मिली जानकारी के अनुसार ये बजट 07 अप्रैल, 1860 को शाम के 5 बजे पेश हुआ था। इसे अविभाजित भारत का पहला आम बजट माना गया। साथ ही जेम्स विल्सन को भारतीय बजट व्यवस्था का पितामह माना गया। हालांकि बजट पेश होनेके बाद वे ज्यादा दिनों तक जीवित नहीं रहे। 11 अगस्त, 1860 को भारत में ही उनकी मृत्यु हो गई थी। बता दें कि ‘स्टेंडर्ड चार्टर’ बैंक और ‘दी इकनॉमिस्ट’ न्यूज़पेपर जेम्स की ही देन है। वे इन दोनों के संस्थापक थे। आज उनकी कब्र कोलकाता के प्रसिद्ध चौरंगा लेन के पास स्थित है।
First budget of india: 1860 का भारत का पहला बजट ब्रिटिश मॉडल पर बेस्ड था। इसमें ज़्यादातर प्रावधान और समीक्षाएं सैनिकों और सैन्य बल को लेकर थे। इसमें वित्त मंत्री के जॉब प्रोफ़ाइल की भी रूपरेखा तय हुई थी। जेम्स विल्सन ही वो व्यक्ति थे, जो भारत में पहली बार इनकम टैक्स क़ानून भी लेकर आए थे। जिसका ‘छिटपुट’ विरोध भी हुआ था। एक आर्टिकल के अनुसार- ब्रिटिश शासित भारत के बेहतरीन सिविल सर्वेंट्स में से एक चार्ल्स ट्रेवेलियन ने तब सवाल उठाया था कि राज्य उन लोगों पर कर कैसे लगा सकता है जिनका सरकार में कोई प्रतिनिधित्व ही नहीं है। सत्तारूढ़ अभिजात वर्ग ट्रेवेलियन से नफरत करने लगा कि वो मूल निवासियों के बारे में क्यों बात कर रहे हैं। लेकिन प्रबुद्ध अंग्रेजों और भारतीयों ने उनकी बहसों से प्रेरणा ली। जल्द ही, ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ जैसे संगठनों का जन्म हुआ। जो सरकार में भारतीयों को अधिक प्रतिनिधित्व देने की मांग रखने लगे।