बालोद जिले में स्थित है 11वीं शताब्दी का अनोखा शिव मंदिर, जिसके निर्माण से जुड़ा है गांव का नाम

Shiva temple of 11th century is located in Jagannathpur of Balod district बालोद जिले में स्थित है 11वीं शताब्दी का अनोखा शिव मंदिर

  •  
  • Publish Date - July 10, 2023 / 05:16 PM IST,
    Updated On - July 10, 2023 / 05:25 PM IST

Shiva temple of 11th century is located in Jagannathpur of Balod district बालोद। सावन के पहले सोमवार पर हम आज 11वीं शताब्दी के ऐसे प्राचीन व ऐतिहासिक मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिससे उसकी पौराणिक मान्यता तो है ही, ऐतिहासिक महत्व भी बढ़ जाता है। वह इसलिए क्योंकि इस मंदिर निर्माण से गांव का नाम भी जुड़ा हुआ है। हम बात कर रहे हैं बालोद जिले के बालोद ब्लाक के ग्राम जगन्नाथपुर स्थित प्राचीन शिव मंदिर की जो करीब 11 वीं शताब्दी का है। इसे पुरातत्व विभाग ने संरक्षित स्मारक घोषित किया है, लेकिन सिर्फ बोर्ड लगाकर औपचारिकता पूरी की गई है। इसके संरक्षण को लेकर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है, लेकिन गांव के युवा सरपंच इस दिशा में कारगर कदम उठा रहे हैं और लगातार यहां निर्माण कार्य सहित संरक्षण के कार्य हो रहे हैं।

Read more:  हर-हर महादेव के जयघोष से गूंजा छत्तीसगढ़ का मिनी काशी, जलाभिषेक के लिए उमड़े श्रद्धालु 

पुरी के जगन्नाथ से प्रेरित होकर गांव का नाम पड़ा जगन्नाथपुर

बालोद अर्जुन्दा मार्ग पर स्थित गांव की सीमा पर यह प्राचीन शिव मंदिर लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है। इसकी महत्ता से अधिकतर लोग अनजान है तो वही कहानी से भी। हमने इस मंदिर के ऐतिहासिक महत्व के बारे में जानकारी ली तो यह रोचक तथ्य सामने आया कि गांव का नाम जैसा कि उड़ीसा के पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर से जुड़ा है। इसके पीछे जगदलपुर के राजा का भक्ति भाव और मंदिर निर्माण का प्रयास बताया जाता है। बुजुर्गों से सुनी जा रही किवंदती अनुसार ऐसी मान्यता है कि जगदलपुर के राजा-रानी उड़ीसा के जगन्नाथ मन्दिर की यात्रा में गए थे। वहां से लौटते समय तत्कालीन ग्राम डुआ वर्तमान नाम जगन्नाथपुर में विश्राम के लिए रुके थे। यहां का माहौल पुरी की भांति भक्ति पूर्ण रहता था, जिसे देखते हुए राजा रानी के द्वारा यहां पर दो शिवलिंग मंदिर का निर्माण किया गया। जिसमें एक मंदिर नष्ट हो चुका है और एक अस्तित्व में हैं।

Read more: खत्म नहीं हो रहा बेवफाई का सितम..! अधिकारी बनते ही बदले पति के तेवर, पत्नी को दिया ऐसा सिला कि… 

जगदलपुर के राजा रानी ने किया नामकरण

जगदलपुर के राजा रानी के द्वारा ही गांव का नाम पुरी के माहौल की तरह होने के कारण डुआ से जगन्नाथपुर रखा गया। वर्तमान में पुरातत्व विभाग द्वारा इसके संरक्षण को लेकर कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। इसके चलते प्राचीन मंदिर पर खतरा भी मंडरा रहा है। यह पुरातत्व विभाग का संरक्षित स्मारक है इसलिए प्राचीन मंदिर में पंचायत प्रशासन या कोई व्यक्तिगत भी छेड़छाड़ नहीं कर सकते। इसलिए मूल मंदिर व मूर्तियों के बजाय आस-पास ही सौंदर्यीकरण कराया जा सकता है और यही काम सरपंच अरुण साहू कर रहे हैं। ताकि इस जगह की पहचान बनी रहे। महाशिवरात्रि में यहां विशेष पूजा अर्चना के लिए लोग आते हैं।

Read more: मासूम बच्चों को अपनी ओर खींच रहा ‘खूनी कुआं’, एक ही दिन में ली इतने मासूमों की जान  

11वीं शताब्दी से स्थापित है मंदिर

जगन्नाथपुर के जलाशय स्थित भगवान शिवजी व गणेशजी की मूर्ति प्राचीन काल से निर्मित है जो देखरेख के अभाव में जीर्ण शीर्ण स्थिति में अपने अस्तित्व खोता जा रहा है। ग्राम जगन्नाथपुर में तालाब पार स्थित शिवजी व गणेशजी की मन्दिर 11 शताब्दी से स्थापित है। 11वीं शताब्दी में जब जगदलपुर से राजवाड़ा से राजा रानी पुरी के भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने गए थे उस समय जब दर्शन करके वापस जगन्नाथपुर में विश्राम करने रुके थे, उस समय उन्होंने ग्राम जगन्नाथपुर का नाम प्राचीन नाम डुआ से बदलकर रखा था, उसी समय विश्राम पश्चात उन्हीं के द्वारा 2 मंदिरों का निर्माण कराया गया, उस समय राजा रानी को इस गांव का वातावरण जगन्नाथपुरी जैसा लगा। उसी समय विश्राम पश्चात उन्हीं के द्वारा छमाही रातों में दो मंदिरों का निर्माण कराया गया, जिसमें भगवान शिवजी का शिवलिंग व भगवान गणेश जी की मूर्ति का स्थापना कर प्राण प्रतिष्ठा कराया गया। इसका एक मंदिर देखरेख के अभाव में क्षतिग्रस्त होकर ढह गया है और आज जो एक मंदिर बचा हुआ है उस मंदिर पर नाग नागिन का जोड़ा वहां आज भी विचरण करते हैं।

Read more: छत्तीसगढ़ के इस जिले में सालों से विषयवार शिक्षकों की कमी, बात सामने आने पर ऐसी दलील दे रहा शिक्षा विभाग 

ऐसी है मन्दिर की बनावट 

मंदिर के ऊपर विष्णु चक्र सुदर्शन आकार का गुंबद भी बना हुआ है इसी मंदिर में सुदर्शन चक्र की तरह दो पत्थर और भी हैं। कहावत है कि जिसमें पहले कोई ग्रामीण स्नान करता तो वह पत्थर तैरते हुए बीच तालाब में ले जा कर डूबा देता था और वापस अपने स्थान पर आ जाता था वह पत्थर आज भी देवालय में रखा हुआ है। हालांकि अब ऐसे चमत्कार नही होते। ये सब किस्से कहानी हैं। मंदिर बनाते समय उसी जगह एक बड़े तालाब का भी निर्माण 11वीं शताब्दी में किया गया था, उसके बाद सन 1972 में सिंचाई विभाग द्वारा लगभग 100 एकड़ भूमि इसी तालाब से लगा बांध का निर्माण किया गया। इसके साथ ही यह मंदिर आसपास के गांव में प्रतिष्ठित पौराणिक व एक प्राचीन मंदिर के रूप में ग्राम जगन्नाथपुर प्राचीन नाम से जाने जाते है जो कि पुरातत्व विभाग की अनदेखी की वजह से अस्तित्व खो रहा है।

IBC24 की अन्य बड़ी खबरों के लिए यहां क्लिक करें