नई दिल्ली । रमजान को रमदान भी कहा जाता है। मुस्लिम समुदाय में इस महीने को सभी महीनों में से सबसे पवित्र मानागया है। इस पवित्र माह रमजान में मुस्लिम समुदाय उपवास रखता हैए और अल्लाह की इबादत करता है। इस्लाम धर्म में 5 बुनियादी स्तम्भ हैं जिसमें से रमजान एक है।रमजान का महीना मुस्लिम समुदाय के लिए काफी महत्व रखता है। इसमें लोग पूरे महीने रोजा रखते हैं और अल्लाह की इबादत करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस महीने में अल्लाह की इबादत करने से लोगों के सारे गुनाह माफ हो जाते हैं। रोजे की शुरुआत हजरत दुनिया के पहले इंसान हजरत आदम अलै। के जमाने से ही हो गई थी। – रिवायत से पता चलता है कि ‘अयामे-बीज’ यानी हर महीने की 13, 14 और 15 तारीख के रोजे फर्ज थे। – यहूद और नसारा भी रोजे रखते थे, यूनानियों के यहां भी रोजे का वजूद मिलता है।
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रमजान का महत्व
इस्लाम धर्म में रमजान के महीने का महत्व बताते हुए कहा गया है, इस महीने की गई इबादत से अल्लाह खुश होते हैं और रोजा रखकर मांगी गई हर दुआ कुबूल होती है। ऐसा विश्वास है, अन्य दिनों के मुकाबले रमजान में की कई इबादत का फल 70 गुना अधिक होता है। रमजान का रोजा 29 या 30 दिनों का होता है। इस्लाम धर्म में रोजा रखने के लिए सहरी खाना (रात के आखिरी हिस्से में कुछ खा-पी लेना) मसनून है और हदीस शरीफ में सहरी की बड़ी फजीलत आई है। आप सल्ल. का इरशाद है कि यहूद-नसारा और मुसलमानों में यही फर्क है कि वह सहरी नहीं खाते और मुसलमान खाते है। रोजे-सहरी के सदके में ही पूरे रमजान माह में अल्लाह की ओर से हर चीज मे बरकत पैदा कर दी जाती है।
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