नई दिल्ली : Jallianwala Bagh Massacre: देश के लोग जब भी आजादी के लिए दिए गए बलिदानों को याद करते हैं तो उनके जहन में सबसे पहले जलियांवाला बाग हत्याकांड आता है। 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में जो कुछ हुआ उसकी हम केवल कल्पना कर सकते हैं। अंग्रेजों ने निहत्थे भारतीयों पर अंधाधुंध गोलियां चलाईं। आज की पीढ़ी जब जलियांवाला बाग नरसंहार के बारे में सुनती है, तो कभी रगो में खून दौड़ जाता है तो कभी गर्व से सीना फूल हो जाता है।
Jallianwala Bagh Massacre: आज का दिन भारत के इतिहास में हमेशा जिंदा रहेगा। हालांकि इस घटना को 103 साल बीत चुके हैं, लेकिन यह याद आज भी कई लोगों की आंखों में आंसू ला देती है। जानकारी के मुताबिक, अमृतसर के उपायुक्त कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है, जबकि जलियांवाला बाग में 388 शहीदों की सूची थी। वहीं अनाधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, मरने वालों की संख्या 1000 से ज्यादा बताई जाती है। आपको बता दें कि इस घटना के बाद भारत में अंग्रेजों और उनके सामानों का बहिष्कार शुरू हो गया था।
Jallianwala Bagh Massacre: रॉल्ट एक्ट के विरोध में जलियांवाला बाग में एक शांति सभा का आयोजन किया गया। जिसमें सभा को रोकने के लिए उपस्थित लोगों पर जनरल डायर नाम के एक अधिकारी ने गोली चलवा दी थी। अंग्रेजों की गोलियों से खुद को बचाने के लिए लोग कुएं में कूद गए। कुछ देर बाद ही कुएं में शवों का अंबार लगने लगा। देखते ही देखते कुछ मिनटों में जलियांवाला बाग में शव ही शव नजर आने लगे। इस दौरान करीब 1650 राउंड गोलियां चलीं थी।
Jallianwala Bagh Massacre: जलियांवाला बाग हत्याकांड में मौजूद उधम सिंह ने 21 साल बाद 1940 में लंदन में जनरल डायर को गोली मारकर बदला लिया, लेकिन लंदन की अदालत ने उन्हें मौत की सजा सुनाई। इसके बाद भारतीयों में आजादी की आग तेज हुई और फिर 15 अगस्त 1947 को हमारा देश ब्रिटिश शासन से आजाद हुआ।